ज्योतिपर्व प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित मेरे कविता संग्रह ‘वह, जो शेष है’ पर मित्रों ने अपने ब्लागों पर समीक्षाएं
लिखीं हैं और उसके बहाने से कुछ और चर्चाएं भी कीं हैं। संभव है कि उनकी ये पोस्ट
आपकी नज़र में आ गई हों। जिन्होंने न देखीं हों उनकी सुविधा के लिए लिंक
यहां दे रहा हूं। कृपया एक बार अवश्य देखें और अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करें।
- सलिल वर्मा यानी ‘चला बिहारी ब्लागर बनने' ने संग्रह पर विस्तृत समीक्षा की है-तीन दशक और वह, जो शेष है।
- मनोज कुमार जी ने ‘राजभाषा हिन्दी’ पर पुस्तक परिचय शृंखला में संग्रह की समीक्षा की है- वह, जो शेष है।
- मनोज जी ने अपने एक अन्य ब्लाग ‘फुरसत में’ मेरे संग्रह की एक कविता ‘इतनी जल्दी नहीं मरूंगा’ को आधार बनाते हुए अपनी कुछ यादें सबके साथ बांटी हैं।
- अभिषेक ने अपने ब्लाग ‘मेरी बातें’ पर सबसे पहले संग्रह की समीक्षा की थी- 'वह, जो राजेश जी को कहना है' । इसे आप पढ़ ही चुके हैं।
- विवेक रस्तोगी भी अपने ब्लाग 'कल्पतरू यानी कल्पनाओं के वृक्ष' पर राजेश उत्साही से एक मुलाकात में संग्रह के बारे में कुछ कह रहे हैं।
- सतीश सक्सेना जी ने अपने ब्लाग 'मेरे गीत' पर शारदा पुत्र : राजेश उत्साही शीर्षक से संग्रह की चर्चा की है।
कुछ मित्र संग्रह अभी पढ़ रहे हैं। उन्होंने वादा किया है कि वे भी जल्द ही
उस पर प्रतिक्रिया लिखेंगे।
0 राजेश उत्साही
मैं भी एक हूँ, राजेश भाई ....
ReplyDeleteसलिल(चला बिहारी ...) के ब्लॉग पर बेहतरीन प्रतिक्रियाएं आ रही हैं फिलहाल मैं उनका आनंद ले रहा हूँ, उसके बाद मैं भी कुछ लिखूंगा ...
इस प्रकाशन के लिए अरुण चन्द्र राय का आभार !
आपकी समीक्षा का इंतजार रहेगा।
Deleteसभी ब्लोग्गेर्स की समीक्षाएँ पढ़ लीं....अब सिर्फ किताब पढ़ना शेष है....
ReplyDelete:-)
अनु
सभी ब्लोग्गेर्स की समीक्षाएँ पढ़ लीं....अब सिर्फ किताब पढ़ना शेष है....
ReplyDelete:-)
तीनों समीक्षायें पढ़ी हैं और अब पुस्तक पढ़ने का मन है।
ReplyDeleteगुरुदेव और अग्रज हैं आप मेरे.. मेरी यह पोस्ट आपकी रचना धर्मिता, आपकी ईमानदारी, आपके विषय, आपका संघर्ष, आपकी अभिव्यक्ति और उस प्रेरणा के नाम है जो आपने सदा मुझे प्रदान की है... 'साखी' पर यदि आपने मुझे आमंत्रण न दिया होता तो मुझे स्वयं यह ज्ञात न होता कि मैं ग़ज़लों पर इतनी अच्छी प्रतिक्रया दे सकता हूँ और न ही मुझे उन गुरुजन के अनुभवों का लाभ मिल पाता...
ReplyDeleteमैं तो इसे समीक्षा मानता भी नहीं क्योंकि उसकी क्षमता नहीं है मुझमें और न समुचित ज्ञान है.. मैं इसे एक ईमानदार प्रतिक्रया, एक लंबी टिप्पणी और आपके प्रति अपना आभार मानता हूँ!!
पुस्तक प्रकाशन की बधाई । पढने की उत्सुकता बढ़ रही है ।
ReplyDeleteमैंने भी पढ़ी है मनोज जी की समीक्षा और सलिल चाचा की समीक्षा..
ReplyDeleteसलिल चाचा के ब्लॉग पर तो बहुत ही विस्तृत और अच्छी टिप्पणियां भी आई हैं :)
हम सलिल जी, मनोज जी और अभिषेक जी तक तो पहुंच ही चुके हैं.
ReplyDeleteकल्पनाओं के वृक्ष पर विवेक रस्तोगी जी भी तो हैं.
ReplyDeleteअभिषेक और विवेक जी के लेखों से रू-ब-रू न हो पाया था, जाता हूं यहां से सीधे वहीं।
ReplyDeletehit hai aapki kitab
ReplyDeletebahut achha likhte hai aap
aap hai lajawab!
आपका लिखा और समीक्षा सभी लाजवाब हैं ...
ReplyDeleteये काव्य-संग्रह है ही चर्चा में रहने लायक...
ReplyDeleteसभी समीक्षाएं पढ़ीं...बहुत उम्दा लिखा है सबने...