Thursday, February 4, 2010

नसीम अख्‍तर की कविताओं के बहाने


नसीम अख्‍तर की कविताओं के बहाने से मैं कुछ ऐसा कहना चाहता हूं, जो मेरे मन में वर्षों से दबा है। मुझे याद है अपना वो समय जब मैंने कविताएं लिखना शुरू किया था। यह समय था अस्‍सी के दशक का। होशंगाबाद जैसे कस्‍बे में नई कविता पर बात करने वाले दो-चार लोग ही थे। कविता पर टिप्‍पणी करने या एक उस्‍ताद की तरह सलाह देने वालों का तो दूर दूर तक नामों निशान नहीं था। तब जानी मानी पत्रिका पहल के संपादक ज्ञानरंजन जी से अपनी एक कविता के सिलसिले में छह माह तक लंबी बहस चली थी। यह एक पूरी अलग कहानी है। बहरहाल मैंने महसूस किया कि अगर नवोदित लेखकों को कोई ठीक से सलाह देने वाला हो तो उनकी प्रतिभा निखरकर सामने आती है। मैंने अपने तई यह बीड़ा उठाया। मेरे संपर्क में जो साथी आए या जिन्‍होंने मुझसे सलाह मांगी, उन्‍हें मैंने दी। इसमें कोई शक नहीं कि जितना मुझे आता था उतना मैंने उन्‍हें बताया। यह जो ‘आता था’ वह मैं अपने अनुभव से सीख रहा था और अब भी सीख रहा हूं।