Monday, September 14, 2009

शिक्षा की खलनायिका : दो और टिप्‍पणियां

इस लेख का आशय यह कतई नहीं है कि शिक्षक समुदाय को नीचा दिखाया जाए। उद्देश्‍य केवल यह है कि हम सब इस बात के प्रति संवेदनशील रहे हैं कि शिक्षा प्राप्‍त करने वाले बच्‍चों के कोमल मन पर कौन सी बातें चोट पहुंचाती हैं। विडम्‍बना यह है कि ये चोट जीवन भर सालती है। मेरी यह टिप्‍पणी जनसंवाद में प्रसारित हुई थी। प्रतिक्रिया में वहां मारीशस से मधु गजाधर एक टिप्‍पणी आई थी जिसे मैं जनसंवाद से साभार प्रस्‍तुत कर रहा हूं। दूसरी टिप्‍पणी मेरे मेल बाक्‍स में आई है,जिसे भोपाल की पारुल बत्रा ने भेजा है। संयोग कुछ ऐसा है कि पारुल के पिता गुरवचनसिंह स्‍वयं एक शिक्षक हैं। फिर भी पारुल ने यह आवश्‍यक समझा कि वह थोथे आदर्श को छोड़कर एक कड़वे सच को सामने रखे। पारुल ने अपने स्‍कूल का नाम भी लिखा था। लेकिन मैंने उसे हटा दिया है। क्‍योंकि यह किसी स्‍कूल विशेष की बात नहीं है,यह एक ऐसी समस्‍या है जो कहीं भी हो सकती है।

Sunday, September 6, 2009

असंवेदनशीलता : शिक्षा की खलनायिका

इस शिक्षक दिवस पर हर बार की तरह मुझे मेरे वे शिक्षक एक बार फिर याद आए जिनकी दी हुई शिक्षा की बदौलत मैं यहां तक पहुंचा। पर ये शिक्षक केवल स्‍कूल में नहीं थे। स्‍कूल के बाद और उसके बाहर की दुनिया में मैंने बहुत कुछ जाने अनजाने कई सारे लोगों से सीखा। वे सब मेरे शिक्षक हैं। सबको मेरा प्रणाम। कभी विस्‍तार से इनके बारे में जरूर लिखूंगा।