Thursday, March 29, 2012

भवानी प्रसाद मिश्र की तीन कविताएं


          29 मार्च कवि भवानी प्रसाद मिश्र का जन्‍मदिन है। प्रस्‍तुत हैं उनकी तीन कविताएं।

अबके
मुझे पंछी बनाना अबके
या मछली
या कली
और बनाना ही हो आदमी
तो किसी ऐसे ग्रह पर
जहां यहां से बेहतर आदमी हो

कमी और चाहे जिस तरह की हो
पारस्परिकता की न हो !
             ***
अपमान
अपमान का
इतना असर
मत होने दो अपने ऊपर

सदा ही
और सबके आगे
कौन सम्मानित रहा है भू पर

मन से ज्यादा
तुम्हें कोई और नहीं जानता
उसी से पूछकर जानते रहो

उचित-अनुचित
क्या-कुछ
हो जाता है तुमसे

हाथ का काम छोड़कर
बैठ मत जाओ
ऐसे गुम-सुम से !

       ***
ऐसे कौंधो 
बुरी बात है
चुप मसान में बैठे-बैठे
दुःख सोचना , दर्द सोचना !
शक्तिहीन कमज़ोर तुच्छ को
हाज़िर नाज़िर रखकर
सपने बुरे देखना !
टूटी हुई बीन को लिपटाकर छाती से
राग उदासी के अलापना !

बुरी बात है !
उठो , पांव रक्खो रकाब पर
जंगल-जंगल नद्दी-नाले कूद-फांद कर
धरती रौंदो !
जैसे भादों की रातों में बिजली कौंधे ,
ऐसे कौंधो ।
0 भवानी प्रसाद मिश्र

Wednesday, March 14, 2012

बंगलौर में : 'वह, जो शेष है'

बाएं से दाएं : आजवंती भारद्वाज,निराग दवे,नितिन लक्ष्‍मणा,जयकुमार मरिअप्‍पा,राजेश उत्‍साही,शंकरन एस,राजकिशोर,मुजाहिद-उल-इस्‍लाम ,रवि बाबू और बैठे हुए जूनी के विल्‍फ्रेड
उदयपुर की यात्रा से 6 मार्च को जब कार्यालय पहुंचा तो मेरे पास संग्रह की केवल 9 प्रतियां थीं,देखते ही देखते 7 प्रतियां साथियों ने खरीद लीं। मेरी टीम के साथियों ने संग्रह को ठीक उसी तरह हाथों हाथ लिया,जैसे किसी नवजात शिशु को लिया जाता है। जाहिर है कि फिर यह तो होना ही था। एजूकेशनल टेक्‍नॉलॉजी एंड डिजायन (ईटीडी) नाम है मेरी टीम का। टीचर्स ऑफ इंडिया पोर्टल टीम भी इसका हिस्‍सा है। तमिल भाषी शंकरन जी मेरा संग्रह देखकर इतने अधिक उत्‍साहित थे, कि उन्‍होंने भी एक प्रति खरीद ली। वे हिन्‍दी पढ़ नहीं पाते हैं, पर सुनकर समझने की कोशिश करते हैं। मेरी इस उप‍लब्धि का जिक्र उन्‍होंने अपनी अंग्रेजी पत्रिका ई-टच में किया है।
                                                                                                                      0 राजेश उत्‍साही 

Tuesday, March 6, 2012

अभिषेक की नज़र में : वह, जो शेष है


अगर सही सही याद करूँ तो राजेश उत्साही जी से मेरा पहला परिचय उनके ब्लॉग "गुलमोहर" के जरिये हुआ था. उन दिनों मैं ब्लॉग्गिंग में नया था और इनकी कुछ कविताओं वाली पोस्ट पढ़ने के बाद इनके ब्लॉग पर अनियमित हो गया.इस बीच इनकी टिप्‍पणी हमेशा कई ब्लॉग पर दिखाई देती रही. बाकी टिप्पणियों से अलग मुझे इनकी टिप्‍पणी हमेशा गंभीर और बिलकुल मुद्दे पर लगती थी.पिछले साल इनके ब्लॉग से मैं फिर से जुड़ा और तब से इनके ब्लॉग का नियमित पाठक हूँ.ये उन चंद ब्लोग्गर्स में से हैं जिनकी हर पोस्ट अपने आप में अलग सी होती है.चाहे वो इनके आत्मीय संस्मरण हों या संवेदनशील कवितायें या कोई प्रेरक आलेख या यायावरी ब्लॉग पर लिखे इनके यात्राओं के लेख और बाकी अनुभव.



कुछ दिनों पहले मुझे पता चला कि उनकी किताब का विमोचन पुस्तक मेले में होने वाला है.ये खबर सुनते ही मेरी राजेश जी की किताब के प्रति दिलचस्पी बढ़ गयी.मुझे लगा था की वो भी आयेंगे पुस्तक मेले में.बैंगलोर से आते वक्त इनसे मुलाकात नहीं हो पायी थी, तो सोचा की दिल्ली में मुलाकात हो जायेगी लेकिन सलिल चचा से मालुम चला की वो दिल्ली नहीं आ पायेंगे.इनकी किताब के विमोचन के वक्त मैं वहाँ मौजूद था.उस दिन जल्दबाजी में मैं इनकी किताब खरीद न सका, दो तीन दिन बाद इनकी किताब खरीदने के उद्देश्य से फिर से पुस्तक मेले में गया.समीर चचा,शिखा वार्ष्णेय दी के बाद राजेश जी तीसरे ऐसे लेखक हैं जिन्हें किताब पढ़ने के पहले से मैं जानता था.



"वह,जो शेष है" एक कविता-संग्रह है जिसमे राजेश जी की 48 चुनिन्दा कवितायें संकलित हैं.सबसे अच्छी बात किताब की ये है की सभी कवितायें किसी एक विषय पे ना होकर, हर विषय पर लिखी गयी हैं.चाहे वो प्रेम-कवितायें हो या सामजिक हालातों पर लिखी कवितायें..कटाक्ष करती कवितायें हो या राजेश जी के व्यक्तिगत अनुभवों वाली कवितायें.हर एक कविता अपने आप में एक कहानी कहती है और बहुत प्रेरक भी है. 
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यह अंश है अभिषेक जी द्वारा लिखी गई समीक्षा का। मेरे कविता संग्रह पर कहीं भी प्रकाशित होने वाली पहली समीक्षा। शुक्रिया अभिषेक । पूरी समीक्षा पढ़ने के लिए अभिषेक के ब्‍लाग मेरी बातें  पर जाएं।