Thursday, September 23, 2010

अनुयायी : एक लघुकथा

वह आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक था। बहुत सारे अनुयायी थे उसके। कुछ पक्के सिद्धांतवादी और कुछ कोरे अंध-भक्त। वे सब उसकी एक आवाज पर मर मिटने को तैयार रहते।
वह कहता,’...............।‘ सब हा‍थ उठाकर उसका समर्थन करते।

*** 

उन सबकी यानी उसकी प्रगति  की राह में एक खाई थी। मंजिल पर पहुंचने के लिए उस खाई को पाटना जरूरी था।

उसने  कहा, ‘यह खाई हमारी प्रगति में बाधा नहीं बन सकती। हमारी हिम्मत और दृढ़ निश्चय के आगे यह टिक नहीं सकेगी। साथियो, देखते क्या हो आगे बढ़ो।‘

देखते ही देखते वे सब उस खाई में समा गए।

उसने मुस्कराकर एक नजर लाशों से पटी खाई पर डाली और फिर उन पर चलते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ गया।
                                                                                                                            0 राजेश उत्साही
(प्रज्ञा,साहित्यिक संस्था , रोहतक द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता 1980-81 में पुरस्कृत । प्रज्ञा द्वारा प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘स्वरों का आक्रोश’ में संकलित ।)

Tuesday, September 7, 2010

भाषा और शब्‍द : तीन कविताएं

आज साक्षरता दिवस है। यहां प्रस्‍तुत हैं तीन कविताएं। एक वरिष्‍ठ कवि त्रिलोचन की, दूसरी मेरे अत्‍यंत प्रिय कवि शरद बिल्‍लौर की, और तीसरी मेरी। त्रिलोचन जी और भाई शरद के साथ अपनी कविता देने की धृष्‍टता के लिए क्षमा चाहता हूं।  मैं इस दिन को कुछ अलग तरह से याद करना चाहता था, इसलिए यह प्रयास।

Saturday, September 4, 2010

जीवन शिक्षा

दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर कक्षा में आए। उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं।
उन्होंने एक कांच की बडी़ बरनी को मेज पर रखा।  उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालना शुरू किया और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची। उन्होंने छात्रों से पूछा , ‘ क्या बरनी पूरी भर गई ?’
‘ हां ..।‘. आवाज आई।
*