Saturday, November 14, 2009

एक जन्‍मदिन ऐसा भी


साल 2000 के अक्‍टूबर के दिन थे। एकलव्‍य का कार्यालय अरेरा कालोनी के ई-1/25 में था।  शाम के साढ़े सात बजे रहे थे। बाकी सब लोग जा चुके थे। मैं रोज की तरह अपने काम में व्‍यस्‍त था। मैंने अपने कमरे के दरवाजे पर एक मधुर और विनम्र आवाज सुनी,’क्‍या हम अंदर आ सकते हैं।‘ मैंने देखा एक उम्रदराज पुरूष और महिला वहां खड़े हैं। मैंने कहा आइए और अभिवादन के साथ उन्‍हें बैठने का इशारा किया।

औपचारिक बातचीत के बाद उन्‍होंने आने का मकसद बताया। वे थे प्रेम सक्‍सेना और उनकी पत्‍नी श्रीमती शंकुलता सक्‍सेना। प्रेमजी बीएचईएल से सेवानिवृत हैं और शंकुतला जी कार्मेल कान्‍वेट स्‍कूल में अध्‍यापिका थीं। अब वे भी सेवानिवृत हो गई हैं।

Sunday, November 8, 2009

अलविदा बिस्‍वास साहब !

हिमांशु बिस्‍वास यानी एचके बिस्‍वास यानी बिस्‍वास साहब यानी बाबा नहीं रहे। 7 नवम्‍बर की सुबह भोपाल से कार्तिक ने मोबाइल पर यह सूचना दी। 6 नवम्‍बर की रात लगभग दस बजे से साढ़े दस बजे के बीच उन्‍होंने आखिरी सांस ली। पिछले कुछ समय से वे बीमार चल रहे थे। इस 20 नवम्‍बर को वे 86 साल पूरे करके 87 वें वर्ष में प्रवेश करते।

1980 के आसपास वे भोपाल के भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड से वे प्रिटिंग मैनेजर के पद से सेवानिवृत हुए थे। स्‍क्रीन प्रिटिंग उनका शौक भी था और आय का साधन भी। वे घर में ही विजिटिंग कार्ड बनाया करते थे। बस उसी सिलसिले में एक दिन घूमते हुए एकलव्‍य, भोपाल के कार्यालय जा पहुंचे। तब एकलव्‍य अरेरा कालोनी के ई-1 में अर्जुन तरण पुष्‍कर के सामने 208 में होता था। एकलव्‍य में किसी ने विजिटिंग कार्ड  बनवाने में रूचि नहीं दिखाई। पर हां, बिस्‍वास साहब में जरूर दिखाई। उन दिनों यानी 1985 में चकमक पत्रिका निकालने की तैयारी चल रही थी। चकमक के प्रशासनिक कामों खासकर वितरण और मार्केटिंग के  लिए एक अनुभवी व्‍यक्ति की जरूरत थी। बस वे भी चकमक का हिस्‍सा हो गए।