Thursday, June 30, 2011

शेष कहानी : वह जो शेष है !


वह दरवाजे के पास ही बैठा था। बस में ज्‍यादा लोग नहीं थे। यही कोई 20-22 लोग रहे होंगे। आशा के विपरीत बस अपने निश्चित समय पर रवाना हो गई थी। 
हाथ में बैंक काम्‍पटीशन गाइड जरूर थी पर हिचकोलों के कारण वह ठीक से पढ़ नहीं पा रहा था। वैसे ध्‍यान भी बराबर वाली सीट पर बैठी दो लड़कियों की ओर था। उम्र में एक-दो साल के अंतर वाली वे लड़कियां बात भी कुछ ऐसी ही कर रहीं थीं, कि किसी को भी सुनने में दिलचस्‍पी हो सकती थी। छोटी दिखने वाली लड़की बड़ी को मौसी कहकर संबोधित कर रही थी। वह कनखियों से उन्‍हें देख लेता और फिर गाइड पलटने लगता।

Tuesday, June 28, 2011

कहानी : वह जो शेष है !


वह दरवाजे के पास ही बैठा था। बस में ज्‍यादा लोग नहीं थे। यही कोई 20-22 लोग रहे होंगे। आशा के विपरीत बस अपने निश्चित समय पर रवाना हो गई थी।

Wednesday, June 22, 2011

100 वीं पोस्‍ट .... 26वीं पर 25वीं की याद

पिछली 23 जून को हमारे (नीमा और राजेश)  विवाह की पच्‍चीसवीं वर्षगांठ थी और आज है छब्‍बीसवीं। तेईस वर्षगांठ  हमने होशंगाबाद या भोपाल में ही मनाई थीं। चौबीसवीं वर्षगांठ पर कुछ ऐसा संयोग हुआ था कि हम साथ नहीं थे। और जो हुआ था उस पर मैंने एक पोस्‍ट ही लिख डाली थी। चाहें तो आप आज भी पढ़ सकते हैं - सालगिरह याद रखने के सत्रह सौ साठ बहाने । लेकिन पच्‍चीसवीं पर संयोग कुछ ऐसा हुआ कि हम साथ-साथ थे । नीमा मेरे कहने पर अकेले ही भोपाल से 1600 किलोमीटर का लंबा रेल सफर करके बंगलौर आ गई थीं। 23 को हम मैसूर में मित्र सरस्‍वती के घर थे। उनकी बेटी (जो हमारी भी है) राधा ने एक अनोखा आयोजन हमारे लिए किया। उसने एक-एक गुलाब हमको दिया और आग्रह किया कि हम उसे एक-दूसरे को दें। और कहा कि कसम लें कि अगले पच्‍चीसों साल तक इसी तरह लड़ते-झगड़ते रहेंगे, पर रहेंगे एक साथ ही।  हमने राधा की गवाही में ऐसी ही कुछ कसम ली भी ।
इस साल मैं भोपाल में हूं। सब कुछ वैसा ही है। बस कमी है तो बाबूजी की। वे अब नहीं हैं।  बीते बरसों में कई बार हम इस दिन आमने-सामने होते थे। पांव छूते और आर्शीवाद मिलता। और जब नहीं होते तो हम फोन पर पांव छूते और वे फोन की मार्फत ही अपना आर्शीवाद  दे देते। आज सुबह होशंगाबाद से मां ने फोन पर वही कहा जो वे हर बरस कहती रहीं हैं-खुश रहो। आवाज नहीं सुनाई दी तो वह केवल बाबूजी की। बहरहाल उनका आर्शीवाद तो साथ है ही। आज ही छोटे भाई अनिल और रानी की शादी की वर्षगांठ भी है।
                                                                                                                               0 राजेश उत्‍साही


Saturday, June 11, 2011

99....शादी का सातवां फेरा : समापन किस्‍त

तो लीजिए अपनी भी शादी हो गई। छोटी बहन से लेकर दादी तक सब खुश। सबके तरह तरह के अरमान थे हमारी शादी से जुड़े हुए। शादी के सातवें और अंतिम फेरे यानी सातवीं किस्‍त में कुछ और यादें।
अगर आपने इसके पहले की छह किस्‍तें नहीं पढ़ीं हों तो यहां उनकी लिंक है-

Friday, June 3, 2011

98....कोलम्‍बसी खोज यात्रा का समापन - शादी के लड्डू : 6


2010 की 23 जून को विवाह को पच्‍चीस बरस हो चुके हैं। इस अवसर पर मैंने गुल्‍लक पर एक शृंखला शुरू की थी-शादी के लड्डू । इसमें मैं अपने विवाह से जुड़े विभिन्‍न अनुभवों को आप सबके साथ बांटने की कोशिश कर रहा था। अपरिहार्य कारणों से यह शृंखला अधूरी रह गई थी। 23 जून फिर आ रही है। तो शेष रही कहानी पूरी करने की कोशिश कर रहा हूं। आप चाहें तो इन शृंखलाओं को फिर से पढ़ सकते हैं। लिंक यहां है-