Saturday, April 4, 2009

मेरा फोटो, फोटो की कहानी

कभी-कभी कोई छोटी-सी घटना अपने में गर्भ में कितनी सारी बातें छुपाए रहती है, इसका उदाहरण है मेरा यह फोटो। यह फोटो जो आप यहां देख रहे हैं। आपमें से कुछ लोग सोच रहे होंगे उत्‍साही जी को और कुछ नहीं सूझा तो अपना बड़ा-सा फोटो लगा के ही बैठ गए।(पहले यह फोटो ब्‍लाग के नाम के साथ था।) एक-दो ने ब्‍लाग देखा तो पहली सलाह यही दी फोटो छोटा करो। जैसे हम किसी बच्‍चे को तेज आवाज में डेक बजाते देखकर कहते हैं आवाज कम करो। क्‍या सुन रहे हो, वह कर्णप्रिय है या नहीं बाद में देखेंगे। बेचारा बच्‍चा भले ही उस्‍ताद जाकिर हुसैन का तबला वादन क्‍यों न सुन रहा हो। कुछ ने फोटो की खूबसूरती को पहचाना और पहली प्रतिक्रिया यही दी कि फोटो बहुत सुंदर है। ऐसी प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करने वालों में मेरे गुरु सुरेश मिश्र भी हैं।

अब आप माने या न मानें, मेरा इतना खूबसूरत फोटो मैंने भी कभी नहीं देखा। खूबसूरत इस मायने में कि चेहरे पर प्रसन्‍नता का जो भाव है और होंटों पर मुस्‍कराहट। वह विरली है। बस इसके पहले यह एक और फोटो में मुझे नजर आई थी। वह 1998 के आसपास किसी ने खींचा था। उसमें मेरे साथ मनोज निगम थे। उस समय एकलव्‍य में कम्‍प्‍यूटर के नए मॉडल यानी कि विकसित मॉडल आए ही थे। मनोज ने उस फोटो को कम्‍प्‍यूटर पर डालकर उसके साथ प्रयोग किया। अपना फोटो एडिट कर दिया और मेरे फोटो को एक रेगिस्‍तान की पृष्‍ठभूमि में सुंदर तरीके से डालकर उसे मेरे जन्‍मदिन पर भेंट किया। फोटो में दूर एक सूरजमुखी का फूल भी है। यह फोटो मुझे बहुत पसंद आया। इस पर मैंने एक ग़ज़ल भी लिखी। जिसका एक शेर है - जब भी मुस्‍कराया है कोई देखकर मुझको, मैंने अपनी शख्‍शियत का नया मायना देखा । यह फोटो पिछले दस साल से एकलव्‍य में मेरी टेबिल के सामने थर्मोकोल पर लगा ही रहा है। अब सिस्‍टम के डेस्‍कटाप पर है। धन्‍यवाद मनोज। उसके बाद मैं खुद ऐसे फोटो के लिए तरस गया। खैर जिन लोगों ने फोटो छोटा करने की सलाह दी उनका भी धन्‍यवाद, जिन्‍होंने चुपचाप झेल लिया उनका भी शुक्रिया।

मेरा यह कथित ‍फोटो एक दिन अचानक ही एकलव्‍य भोपाल के बगीचे में टहलते हुए एकलव्‍य भोपाल के मेरे साथी राकेश खत्री ने डिजीटल कैमरे से खींचा था। 2008 के जून या जुलाई महीने की बात रही होगी। असल में राकेश नए आए हुए किसी कैमरे की ट्रायल ले रहे थे, ऐसा मुझे याद है। संभव है कैमरा उन अर्चना रस्‍तोगी जी का था जो मुझे हमेशा ऐसे याद करती हैं, ‘राजेश जी को मैंने कभी मुस्‍कराते नहीं देखा।’ मुझे मुस्‍कराते देखने की उनकी चाहत इतनी बढ़ गई कि एक दिन उन्‍होंने आकर कहा, ‘ मैंने कल रात आपको सपने में मुस्‍कराते हुए देखा।’ उनकी यह बात सुनकर मैंने भी संतोष की सांस ली थी कि चलो कम-से-कम उन्‍हें यह यकीन तो हुआ कि मैं मुस्‍कराता भी हूं। तो यह फोटो अर्चना जी को समर्पित किया जा सकता है। चलो किया।

पर जनाब कहानी अभी पूरी नहीं हुई। राकेश भाई ने यह फोटो अपने सिस्‍टम पर डाल दिया। मैं भी भूल-भाल गया। तब यह फोटो बहुत अच्‍छा नहीं लगा था। माथे पर बिखरे बाल,शर्ट के बटन खुले हुए,चेहरे पर सफेद दाढ़ी के खूंटे। मैंने फोटो देखकर हमेशा की तरह अफसोस जताया था कि अपना तो चेहरा ही ऐसा है, उसमें बेचारा कैमरा या कैमरे वाला क्‍या करेगा।

समय बीतता गया। असल में तो वह बीतता ही है। मैंने अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में आने का फैसला किया। मुझे 2 मार्च,2009 को बंगलौर में ज्‍वाइन करना था। 28 फरवरी को मैं भोपाल से निकलने वाला था। 25 फरवरी को मुझे फाउंडेशन से एक ईमेल मिला कि अपनी एक पासपोर्ट साइज फोटो तुरंत भेजूं। संयोग से एक दिन पहले ही मैंने स्‍टूडियो में पासपोर्ट फोटो खिंचवाई थी। यह जानते हुए भी कि फोटो से पहले मैं स्‍वयं ही बंगलौर पहुंचूंगा , मैंने कूरियर से फोटो की एक नहीं तीन प्रतियां रवाना कर दीं। 27 फरवरी को मुझे फाउंडेशन से फोन आया कि आपने अब तक फोटो नहीं भेजा। मैंने निवेदन किया कि रास्‍ते में है, बस पहुंचने वाला ही है। (ये फोटो मेरे बंगलौर पहुंचने के एक हफ्ते बाद पहुंचे।) फोन पर फाउंडेशन की ओर से जैनी थीं। उन्‍होंने कहा आपके पास किसी फोटो की साफ्ट कापी नहीं है। वह भेज दीजिए। मुझे लगा मामला गंभीर है, मेरे पहुंचने से पहले मेरे फोटो का पहुंचना जरूरी है। मैंने कहा देखता हूं।

तब मुझे याद आया कि राकेश के सिस्‍टम पर एक फोटो पड़ा है। बस उसे ढूंढा। कमलेश यादव और जीतेंद्र ठाकुर ने मिलकर उसको कुछ-कुछ किया और फिर मैंने जैनी को ईमेल में जड़कर भेज दिया। 2 मार्च को जब बंगलौर में सुबह-सुबह फाउंडेशन के दफ्तर पहुंचा तो ये फोटो वाले राजेश उत्‍साही वहां पहले से विराजमान थे और मेरा मुंह चिड़ा रहे थे। फाउंडेशन के स्‍वागत कक्ष में एक बड़े-से बोर्ड पर एक बड़ी-सी कार्डशीट पर 6 बाई 6 के आकार में एक कोने में ये चिपके हुए थे। कार्डशीट पर मेरा परिचय लिखा हुआ था। आने वाला हर बंदा और बंदी स्‍वागत में अपने भाव उस पर लिखकर व्‍यक्‍त कर रहा था। सच मानो तो मुझे भी वहां चिपके हुए राजेश उत्‍साही मुझसे ज्‍यादा अच्‍छे लगे। धन्‍यवाद राकेश भाई। लोगों ने क्‍या लिखा वह अलग कहानी है।

बंगलौर पहुंचकर मैंने पहली छुट्टी मिलते ही अपने ब्‍लाग को सक्रिय करने का काम किया। यह बनाया तो दो साल पहले था,पर ज्‍यादा कुछ किया नहीं था। तो सबसे पहले फोटो डालने की सूझी। तो यही इकलौता फोटो मेरे पास साफ्ट कापी के रूप में था। संयोग से यहां बंगलौर में मेरे पास जो सिस्‍टम है, उसमें फोटोशॉप नहीं है। मुझे भी फोटो को छोटा-बड़ा करने की ज्‍यादा तकनीक नहीं मालूम। जब पहली बार ब्‍लाग पर फोटो आया तो मुझे ही लगा कि यह तो कुछ ज्‍यादा-ही बड़ा हो गया है। सब प्रयास कर लिए,फिर सोचा अभी ऐसे ही जाने दो बाद में देखेंगे।

अब सोचता हूं देखना क्‍या है, आप लोग तो देख ही रहे हैं। तो देखते रहिए, हम तो ऐसे ही हैं भैय्या।
राजेश उत्‍साही

10 comments:

  1. Rajesh

    Maza aa gaya tumhara blog parh kar. Photo to tumhe sahi accha laga aur tumne bina kisi laag lapet ke apne muskurate hue chehre ki taraf hum sab ka dhyan itni pyari tarah kheenca.

    aisa kum hi dekhne mein aya hai ki koi bina sankoch ke apne chehre ke bhavon ke bare mein likh raha ho. zaroor yeh bhi ek kala hi hogi jo itne acche se nikhar aayi hai tumhare blog mein, yani is vishaya par likhna khud mein hee kala hai, aisa lagta hai
    Teji

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  2. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  3. आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .आपका लेखन सदैव गतिमान रहे ...........मेरी हार्दिक शुभकामनाएं......12:06 AM 4/6/2009

    amitjain</a 12:06 AM 4/6/2009

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  4. बहुत सुंदर….आपका स्‍वागत है|अच्छे लेखन हेतु बधाई|लिखते रहें |हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  5. बहुत सुंदर….आपका स्‍वागत है|अच्छे लेखन हेतु बधाई|लिखते रहें |हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  6. आपके फोटो के किस्से तो बड़े लाजवाब निकले ....मज़ा आ गया ..वैसे आपकी मुस्कराहट सचमुच कमाल की लग रही है ...

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  7. स्वागत है.. आपका हिंदी ब्लॉग की दुनिया में...

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  8. achchha hai. Chaliye kuchh din ke liye maiN bhi apna PHOTU aapke blog par chep deta hun.

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  9. हिन्दी चिटठा जगत में आपका स्वागत है , ऐसे ही अपनी लेखनी से हमें परिचित करते रहें

    धन्यवाद
    मयूर दुबे
    अपनी अपनी डगर
    sach much bahut achha hai

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