Saturday, April 4, 2009

धूप के तेवर

तीखे धूप के तेवर हुए
गमछे गले के जेवर हुए

जेठ की तपन अभी बाकी
दिवस चैत्र के देवर हुए

चिटकती धूप में कहां पानी
सड़क पर खेल सेसर हुए

प्‍यास का मन अत़ृप्‍त रहा
सुराही-घड़े सब सेवर हुए

देह नदी बही कुछ इस तरह
अपरिचित सुवास केसर हुए

मोहित हम जिन नक्‍श पर
रंग उन सबके पेवर हुए

अपने नीम की छांव भली
हाय ऐसे मौसम में बेघर हुए
राजेश उत्‍साही
सेसर=छल, सेवर=अधपके मिट्टी के बर्तन
पेवर=पीला

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