तीखे धूप के तेवर हुए
गमछे गले के जेवर हुए
जेठ की तपन अभी बाकी
दिवस चैत्र के देवर हुए
चिटकती धूप में कहां पानी
सड़क पर खेल सेसर हुए
प्यास का मन अत़ृप्त रहा
सुराही-घड़े सब सेवर हुए
देह नदी बही कुछ इस तरह
अपरिचित सुवास केसर हुए
मोहित हम जिन नक्श पर
रंग उन सबके पेवर हुए
अपने नीम की छांव भली
हाय ऐसे मौसम में बेघर हुए राजेश उत्साही
सेसर=छल, सेवर=अधपके मिट्टी के बर्तन
पेवर=पीला
गमछे गले के जेवर हुए
जेठ की तपन अभी बाकी
दिवस चैत्र के देवर हुए
चिटकती धूप में कहां पानी
सड़क पर खेल सेसर हुए
प्यास का मन अत़ृप्त रहा
सुराही-घड़े सब सेवर हुए
देह नदी बही कुछ इस तरह
अपरिचित सुवास केसर हुए
मोहित हम जिन नक्श पर
रंग उन सबके पेवर हुए
अपने नीम की छांव भली
हाय ऐसे मौसम में बेघर हुए राजेश उत्साही
सेसर=छल, सेवर=अधपके मिट्टी के बर्तन
पेवर=पीला
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जनाब गुल्लक में कुछ शब्द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...