23 जून, 1985 : नीमा संग राजेश : सेंधवा,मप्र |
1986 : होशंगाबाद |
और यह सच भी है। सत्ताईस में से लगभग साढ़े तेईस साल हम साथ रहे हैं। फिर ऐसा समय आया कि दूर-दूर रहने को विवश होना पड़ा।
आजीविका के पीछे मैं बंगलौर चला आया और नीमा रह गईं वहीं भोपाल में बेटों के साथ।
1996 : नीमा,राजेश,उत्सव, कबीर भोपाल में |
पिछले साल तक उम्मीद थी कि अगले बरस से हम
दोनों फिर से एक छत के नीचे रहने लगेंगे। लेकिन छोटे बेटे उत्सव ने जबलपुर
इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश लिया तो यह उम्मीद जाती रही। वह एक महीना एक प्राइवेट
हॉस्टल में रहा, लेकिन बात जमी नहीं। अंतत: नीमा ने निर्णय लिया कि वे उसके साथ
रहेंगी। और वे वहीं हैं। बड़ा बेटा कबीर भोपाल में है। चार जनों का परिवार तीन जगह बंटा हुआ।
1999 : भोपाल |
यह दूसरा मौका है जब हम इस
तथाकथित शहीदी दिवस पर साथ नहीं है। नीमा इसे शहीदी दिवस ही कहती हैं। साथ ही वे यह
कहने से भी नहीं चूकतीं कि खुद तो शहीद हुए ही मुझे भी इस घर-गृहस्थी के पचड़े
में डाल दिया। अच्छी भली कॉलेज में पढ़ा रही थी।
2010 : वृंदावन गार्डन मैसूर |
2009 में जब बंगलौर आया था तो उस बरस की पहली ऐसी
सालगिरह थी जब हम अलग-अलग जगह थे। नीमा भोपाल में थीं और मैं उसी दिन बंगलौर
से उधमसिंह नगर की यात्रा पर था दिल्ली होते हुए। लेकिन 2010 में नीमा खुद बंगलौर
चलीं आईं थीं। और 2011 में हम एक बार फिर भोपाल में साथ थे।
2009 : भोपाल |
आमतौर पर यह दिन हमने घर में परिवार के साथ रहकर ही
गुजारा। हर साल इस दिन घर में दाल बाटी,बैंगन का भरता और टमाटर की चटनी बनती। और मीठे
में चमचम आती। यह तय मेन्यू था। इसमें कोई बहस,विवाद नहीं होता था और न ही इसकी
गुजांइश होती थी। एक बरस भोपाल में हमने तय किया कि बहुत हो गया, इस बार कहीं बाहर
जाकर खाना खाते हैं। बड़े बेटे ने साथ जाने से मना कर दिया। हम दोनों छोटे बेटे को
लेकर होशंगाबाद रोड पर बने एक आधुनिक ढाबे में जा पहुंचे। नीमा और बेटे ने खाने
में अपनी पसंद बता दी। उन्हें वेज बिरयानी खानी थी। मुझे मेन्यू में दाल मखानी
नजर आई। मैंने वही अपने लिए बुलवा ली। मेरा ख्याल था कि दाल मखानी यानी तूअर दाल
और मक्खन को मिलाकर बना कोई व्यंजन होगा। लेकिन जब वह सामने आई तो पता चला कि
दाल मखानी यानी उड़द की दाल में मक्खन। उड़द की दाल मुझे बिलकुल पसंद नहीं थी। पर
चूंकि वह सामने आ गई थी तो मन मारकर मुझे खानी ही पड़ी। नीमा और छोटे बेटे को मुझे
छेड़ने के लिए एक अच्छा विषय मिल गया। वे आज तक मुझे दाल मखानी कहकर चिढ़ाते हैं।
उसके बाद जब-जब यह दिन आया इस घटना की याद भी चली आई। आज भी मैं इसे ही याद करके मुस्करा
रहा हूं।
2010 : भोपाल |
नीमा कहती हैं, 'तुम्हें चकमक (जिस पत्रिका का मैं
संपादन करता था) पसंद थी और मुझे चमचम।' हालांकि अब तो वे मीठे से परहेज करने लगी हैं। कभी
लगता था कि चकमक से मैं कभी अलग रह भी पाऊंगा या नहीं। पर वो दिन भी आया, जब मैं
चकमक की जिंदगी से निकल गया। और बिना उसके रह भी पा रहा हूं। ठीक ऐसे ही नीमा भी
सोचतीं थीं कि कभी वे चमचम के मोह से मुक्त हो पाएंगी या नहीं। पर उन्होंने भी
अपने इस मोह पर विजय पा ली है।
2010 : निसर्गधाम,मैसूर |
फोन पर नीमा और हम दोनों एक-दूसरे को अग्रिम शुभकामनाएं दे रहे थे तो नीमा ने कहा कल फिल्म ‘शोला और शबनम’ का यह गीत जरूर सुन लेना। नीमा को यह गीत बहुत पसंद है। शायद इसीलिए क्योंकि यह गीत जीवन पर विजय पा लेने का संदेश देता है। कैफी आज़मी जी के शब्द , ख़य्याम साहब के संगीत, मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर की आवाज में यूटयूब के सौजन्य से इस लिंक पर इसे सुन सकते हैं- जीत ही लेंगे बाजी हम तुम
2011 : भोपाल |
अगर आपने वह न पढ़ी हो तो यहां उनकी लिंक भी मौजूद है-
- शादी के लड्डू- एक
- शादी के लड्डू- दो
- शादी के लड्डू - तीन
- शादी के लड्डू-चार
- शादी के लड्डू - पांच
- शादी के लड्डू – छह
- शादी का सातवां फेरा
0 राजेश उत्साही
आत्म विश्वास और सहजता की झलक क्रमशः बढ़ती दिखती है.
ReplyDeleteशुक्रिया राहुल जी।
Deleteआपको अतिशय शुभकामनायें...आपके वैवाहिक जीवन में सदा ही आनन्द छिटकता रहे।
ReplyDeleteशुक्रिया प्रवीण जी।
Deleteबधाई राजेश भाई, भविष्य मंगलमय हो ...
ReplyDeleteशुक्रिया सतीश भाई।
Deleteबधाई बधाई.............................
ReplyDeleteअनंत शुभकामनाएं आप दोनों को....
सादर
अनु
शुक्रिया अनु जी।
Deleteविवाह के सत्ताईसवी सालगिरह की आप दोनों को बधाई !
ReplyDeleteशुक्रिया अंशुमाला जी।
Deleteइन खूबसूरत हौसले से पूर्ण साथ और भी परिपक्व हों .... शुभकामनायें आपदोनों को
ReplyDeleteआभारी हूं कि आपकी शुभकामनाएं साथ हैं।
Deleteवैवाहिक जीवन के सत्ताइश साल बहुत बहुत मुबारक हों .
ReplyDeleteअनंत शुभकामनायें राजेश जी .
डॉक्टर साहब शुक्रिया।
Deleteसुन्दर तस्वीरें
ReplyDeleteवैवाहिक वर्षगाँठ की अनेकों शुभकामनाएं
धन्यवाद रश्मि जी।
Deleteतस्वीरों का बढ़िया संग्रह , बस इसी तरह से आप ये वर्षगाँठ मनाते रहे और हमें शामिल करते रहें. आप दोनों को ईश्वर हमेश स्वस्थ और सानंद रखे मेरी यही दुआ है.
ReplyDeleteशुक्रिया रेखा जी।
Deleteशादी की सालगिरह की ढेरों शुभकामनाएं
ReplyDeleteनरेंद्र मौर्य
नरेन्द्र भाई शुक्रिया।
Deleteशुभकामनाएं....शुभकामनाएं...शुभकामनाएं....
ReplyDeleteशुक्रिया,धन्यवाद,आभार।
Deleteबहुत ही शुभकामनाएं....शादी की 27वीं सालगिरह दिल्ली में भी मना लेते तो हम भी शामिल हो जाते पार्टी में.....
ReplyDeleteआपको शादी की सत्ताईसवीं सालगिरह की बहुत बहुत शुभकामनायें...दो दिन लेट से शुभकामना देने आया हूँ, तो माफ कर दीजियेगा..तस्वीरें बहुत पसंद आई...और शादी के लड्डू वाली कड़ी मैंने पढ़ी नहीं थी, तो सहेज कर रख लिया है..पढूंगा आराम से!
ReplyDeleteशुक्रिया रोहित भाई। भैया अपने लिए दिल्ली बहुत दूर है। सत्ताईस सालों में कल दूसरा मौका होगा जब मैं यहां अकेला बंगलौर में होंऊंगा और श्रीमती जी जबलपुर में। ऐसा पहला मौका तीन साल पहले 2009 में भी आया था।
ReplyDeleteविवाह की वर्षगांठ पर अनेकानेक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteईश्वर से कामना है कि अगली बार इस दिन आप सब साथ हों।
दाल बाटी, बेंगन का भर्ता, टमाटर की चटनी बने। चमचम आए, नीमा भाभी परहेज तोड कर खाएं।
और हम फेस बुक पर इस नजारे के फोटो देखें।
पुनः बधाई व मंगलकामनाएं।
हम भी यही कामना करते हैं कि आपकी इच्छा पूरी हो। शुक्रिया।
Deleteराजेश जी,
ReplyDeleteशहीदी दिवस की शुभकामनायें ! हर कोई शहीद होना चाहता है न !
अनुपमा तिवाड़ी
बच्चों की शिक्षा के कारण घर, अलग-अलग शहरों में रहने लगा है। यह आधुनिक जीवन शैली की सच्चाई बन चुकी है। सुंदर तरीके से आपने इस अवसर पर अपने अनुभव बांटे। 27 वर्ष के सुखी जीवन की बहुत-बहुत बधाई, अशेष शुभकामनाएँ..
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