मेरा पहला कविता संग्रह 'वह, जो शेष है' विश्वपुस्तक मेला,2012 में 27 फरवरी की शाम (बाएं से दाएं) कथाकार संजीव, लेखक-चिंतक राजेन्द्र अग्रवाल,व्यंग्यकार डॉ.शेरजंग गर्ग, वरिष्ठ कवि मदन कश्यप और लेखक उपेन्द्र कुमार जी के हाथों विमोचित हुआ।
इसे संभव बनाया ज्योतिपर्व प्रकाशन की संचालक ज्योति रॉय और ब्लागर मित्र अरुण चंद्र रॉय ने। विमोचन कार्यक्रम का संचालन किया ब्लागर मित्र सलिल वर्मा(चला बिहारी ब्लागर बनने) ने। कार्यक्रम में ब्लागर मित्र बलराम अग्रवाल भी मौजूद थे। फोटो उनके सौजन्य से ही प्राप्त हुए हैं।
इस संग्रह में मेरी 48 कविताएं शामिल हैं। संग्रह का आवरण जाने-माने डिजाइनर देव प्रकाश चौधरी ने बनाया है।
मैं इस अवसर पर वहां उपस्थित नहीं हो सका। मैं बंगलौर में प्रारम्भिक शिक्षक शिक्षा पर आयोजित एक राष्ट्रीय सेमीनार में भाग ले रहा था। यहां मेरे एक मित्र ने टिप्पणी की, ' अब तक आप छिपे हुए कवि थे, अब आप छपे हुए हो गए हैं।'
0 राजेश उत्साही
बधाई हो राजेश जी !
ReplyDeleteएक ना एक दिन यह तो होना ही था....:)
छिपे हुये कवि से छपे पुये कवि, भई वाह...
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो राजेश जी।
ReplyDeleteढेर सारी बधाइयां ... यह तो शुरुआत है
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाइयाँ ………
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई !!
ReplyDeleteबधाई राजेश जी .
ReplyDeleteलगता है प्रगति मैदान में ब्लोगर्स का बोलबाला रहा .
गुरुदेव!! आपकी यह पुस्तक मैंने समारोह के उपरांत स्टॉल से खरीदी... पहली बार एक ऐसा एहसास हुआ कि मैं व्यक्त करने में स्वयं को असमर्थ पा रहा हूँ.. आपसे तुरत फोन पर बात की, आपको पूरी रिपोर्ट दी... फिर अपने मित्रों चैतन्य आलोक और मनोज भारती को सूचित किया!!
ReplyDeleteबधाई बहुत छोटा लफ्ज़ है.. मगर रस्मे दुनिया भी है, मौक़ा भी है, दस्तूर भी है.. सो स्वीकारें!!
प्रकटीकरण की अवस्था प्राप्त करने पर ढेरों बधाइयाँ! किताब- वह अभी पढ़ना शेष है...!!
ReplyDeleteबधाई, वैसे आपकी साहित्यिकता छुपी हुई तो न थी.
ReplyDeleteआपके साहित्यकी संसार से तो मैं बहुत पहले से परिचित हूँ ,तब भी पुस्तक के प्रकाशन का अपना आनंद है । बहुत -बहुत बधाई ।
ReplyDeleteआदरणीय शेर जंग गर्ग जी को बहुत समय के बाद आपके ब्लॉग में पुस्तक विमोचन समारोह में देखा तो दिल्ली के साहित्यकार ,कलाकार याद हो आए । उनको मेरा प्रणाम ।
सुधा भार्गव
इस अनुपम कविता संग्रह 'वह, जो शेष है' के प्रकाशन पर बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeletebahut bahut badhai :)
ReplyDeleteआप छिपे हुए तो नही थे फिर भी इस तरह छपने पर हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ... पर आप छिपे कहाँ हैं ..
ReplyDeleteकल फिर से गया था पुस्तक मेला में...तो खरीदी ये किताब आपकी..
ReplyDeleteपता नहीं आप यकीन कर पायें या न, लेकिन कल मैं सिर्फ आपकी ही किताब खरीदने के उद्देश्य से गया था वहाँ..
पढ़ने के क्रम में हूँ अभी..और जल्द ही बताऊंगा आपको की कैसी लगी मुझे आपकी किताब
फ़िलहाल तो जितना पढ़ा वो बेहद खूबसूरत सा लग रहा है!!
बहुत बहुत बधाई......
ReplyDeleteअब छप गएँ हैं तो अपनी छाप अवश्य छोड़ेंगे .....
शुभकामनाएँ.
आपको होली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteबधाई हो इस अवसर पर। :)
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