जब नाजी कम्युनिस्टों के पीछे आए
मैं खामोश रहा
क्योंकि, मैं
कम्युनिस्ट नहीं था
जब उन्होंने सोशल डेमोक्रेट्स को जेल में बंद किया
तो मैं खामोश रहा
क्योंकि में सोशल डेमोक्रेट नहीं था
जब वे यहूदियों के पीछे आए
मैं खामोश रहा
क्योंकि, मैं यहूदी नहीं था
लेकिन,जब वे मेरे पीछे आए
तब बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था
क्योंकि,मैं अकेला था।
0 पीटर मार्टिन (जर्मन कवि)
(कवियाना ब्लाग के सौजन्य से)
सोचो आखिर कब सोचोगे!!!
ReplyDeleteबहुत सटीक चोट की है आपने
ReplyDeleteलेकिन,जब वे मेरे पीछे आए
ReplyDeleteतब बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था
क्योंकि,मैं अकेला था।... हो ही जाना था
एकदम सही और झकझोर देने वाली कविता है ।
ReplyDeleteसटीक और तीखा प्रहार
ReplyDeleteवाह...सरल किन्तु मारक। पहले पैरा की तीसरी पंक्ति में नाजी की जगह कम्युनिस्ट तो नहीं होना था?
ReplyDeleteशुक्रिया त्यागी जी। आपने सही पकड़ा वहां कम्युनिस्ट ही होना चाहिए। मैंने ठीक कर दिया है।
DeleteBEJOD RACHNA...
ReplyDeleteकितनी सचाई है इन बातों में ... तीखा प्रहार है इंसान के होने पे ...
ReplyDeleteलोगों की फितरत यही है..जबतक खुद पर ना गुजरे...खामोश ही रहते हैं सब...
ReplyDeleteINSAN AKELA HEE AATA HAI.
ReplyDeleteAUR AKELA HEE JATA HAI.
UDAY TAMHANE.
BHOPAL.
पहले मुक्तिबोध फिर सुभाष राय और अब पीटर मार्टिन! यह तो किसी कुरूक्षेत्र पर खड़े होने का अहसास है।
ReplyDeletebisham haalaton se upji पीटर मार्टिन ki sateek rachna....sateek chitra aur prastuti hetu aabhar!
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