Sunday, February 5, 2012

मैं अकेला था


यह महत्‍वपूर्ण कविता ब्‍लाग जगत के उन साथियों को समर्पित है, 
जो जरूरी होने पर भी कुछ नहीं कहते। 
जब नाजी कम्‍युनिस्‍टों के पीछे आए
मैं खामोश रहा
क्‍योंकि, मैं  कम्‍युनिस्‍ट नहीं था

जब उन्‍होंने सोशल डेमोक्रेट्स को जेल में बंद किया
तो मैं खामोश रहा
क्‍योंकि में सोशल डेमोक्रेट नहीं था

जब वे यहूदियों के पीछे आए
मैं खामोश रहा
क्‍योंकि, मैं यहूदी नहीं था

लेकिन,जब वे मेरे पीछे आए
तब बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था
क्‍योंकि,मैं अकेला था।
0 पीटर मार्टिन (जर्मन कवि)
(कवियाना ब्‍लाग के सौजन्‍य से)

13 comments:

  1. बहुत सटीक चोट की है आपने

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  2. लेकिन,जब वे मेरे पीछे आए
    तब बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था
    क्‍योंकि,मैं अकेला था।... हो ही जाना था

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  3. एकदम सही और झकझोर देने वाली कविता है ।

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  4. सटीक और तीखा प्रहार

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  5. वाह...सरल किन्तु मारक। पहले पैरा की तीसरी पंक्ति में नाजी की जगह कम्युनिस्ट तो नहीं होना था?

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    1. शुक्रिया त्‍यागी जी। आपने सही पकड़ा वहां कम्‍युनिस्‍ट ही होना चाहिए। मैंने ठीक कर दिया है।

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  6. कितनी सचाई है इन बातों में ... तीखा प्रहार है इंसान के होने पे ...

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  7. लोगों की फितरत यही है..जबतक खुद पर ना गुजरे...खामोश ही रहते हैं सब...

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  8. INSAN AKELA HEE AATA HAI.
    AUR AKELA HEE JATA HAI.
    UDAY TAMHANE.
    BHOPAL.

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  9. पहले मुक्तिबोध फिर सुभाष राय और अब पीटर मार्टिन! यह तो किसी कुरूक्षेत्र पर खड़े होने का अहसास है।

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  10. bisham haalaton se upji पीटर मार्टिन ki sateek rachna....sateek chitra aur prastuti hetu aabhar!

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जनाब गुल्‍लक में कुछ शब्‍द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...