Wednesday, January 18, 2012

मुलाकात बिनायक सेन से

18 जनवरी, 2012 की दोपहर बिनायक सेन को सुनना और उनसे मुलाकात, इस साल की पहली महत्‍वपूर्ण घटना मानी जा सकती है। बिनायक सेन कलकत्‍ता से लौटे थे और अज़ीमप्रेमजी विश्‍वविद्यालय,बंगलौर में फैकल्‍टी और विद्यार्थियों को संबोधित कर रहे थे। विश्‍वविद्यालय का 50 सीटों वाला ‘साबरमती’ क्‍लास रूम जिसे इस तरह की चर्चा के लिए उपयोग किया जाता है, ठसाठस भरा था। कुछ नहीं तो लगभग डेढ़सौ श्रोता वहां थे। तमाम लोग नीचे फर्श पर ही बैठे थे। कुछ तो बिनायक सेन जहां खडे थे, उनके पैरों के पास ही जम गए थे। हर कोई उन्‍हें सुनना और देखना चाह रहा था।


2010 का दिसम्‍बर बिनायक सेन को देशद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के कारण याद किया जाता रहेगा। और उसके बाद 2011 की शुरूआत उनके पक्ष और विपक्ष में हुई बहस-मुहासिबों के लिए याद की जाएगी। भारत के अलावा दुनिया भर में इस फैसले पर सवाल उठाए गए। अंतत: सुप्रीमकोर्ट ने अप्रैल में उन्‍हें जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए। बिनायक सेन के परिचय के लिए बिनायक सेन ही नहीं मैं भी देशद्रोही हूं पोस्‍ट देखी जा सकती है।

यहां वे हाल ही में संसद में पेश किए गए खाद्यसुरक्षा बिल और खाद्यसंप्रभुता तथा जनस्‍वास्‍थ्‍य के मुद्दों पर बोल रहे थे। अपनी बात की शुरुआत उन्‍होंने पिछले दिनों बंगाल के ढेकामाल जिले के चायबागान में हुई दस मजदूरों की मौतों की घटना से की। उन्‍होंने वह घटना भी याद दिलाई जिसमें एक गर्भवती महिला अस्‍पताल दर अस्‍पताल चक्‍कर काटती रही,लेकिन उसे प्रसव के लिए प्रवेश नहीं दिया गया। नतीजा यह कि प्रसव सड़क पर हुआ और वह चल बसी। इन दोनों घटनाओं को उन्‍होंने जनस्‍वास्‍थ्‍य और खाद्य समस्‍या से जोड़ा।

सभी फोटो: विपिन 
प्रधानमंत्री मनमो‍हनसिंह द्वारा हाल में भूख और कुपोषण (हंगर एण्ड मैलन्यूट्रिशन ) पर प्रस्‍तुत की गई ‘हंगामा’ रिपोर्ट का जिक्र किया। रिपोर्ट बताती है कि हमारे देश में पांच वर्ष से कम आयु के 42 फीसदी बच्चे अपनी आयु के लिहाज से सामान्य से काफी कम वजन के हैं और 59 प्रतिशत बच्चे अपनी आयु के लिहाज से काफी कम लंबाई के हैं। वर्ष 2011 के दौरान देश के 112 ग्रामीण जिलों में यह सर्वे किया गया है। बिनायक सेन ने कहा,यह चिंतनीय है। लेकिन यह तो हम बच्‍चों की बात कर रहे हैं। बच्‍चों के कुपोषण के संदर्भ में उन्‍हें खाना न मिलना एक कारण है, लेकिन उनकी पसंद और नापसंद भी एक कारण बन जाता है। लेकिन वयस्‍कों के पोषण का हाल भी बहुत अच्‍छा नहीं है। हमारी आबादी के अनुमानित लगभग 20 प्रतिशत वयस्‍क ऐसे हैं, जिनके सामने खाने की पसंद या नापसंद का सवाल नहीं, बल्कि खाने की उपलब्‍धता का सवाल है। उन्‍होंने खाद्य वितरण प्रणाली पर भी सवाल उठाए।

उनका तरीका संवादात्‍मक था। वे दस मिनट बोलते और फिर सवाल की अपेक्षा करते। जो सवाल आता उससे जोड़कर अपनी बात को आगे ले जाते। सवालों के गलियारे में से होते हुए वे जैविक खेती, गांवों के मेले, विलुप्‍त होती जा रही बैलगाड़ी, बस्‍तर, छत्‍तीसगढ़ के सलवा जुड़ूम, बंगाल के हाल के सत्‍तापरिवर्तन, अमृत्‍यसेन और जर्मनी कवि पीटर मार्टिन की कविता मैं खामोश रहा तक चले गए।

एक छात्र ने विषयांतर करते हुए उनसे उनकी निजी जिंदगी और जेल के अनुभवों के बारे में पूछ लिया। उन्‍होंने बहुत सहजता से जवाब दिए। उन्‍होंने महत्‍वपूर्ण बात कही कि जेल में जाकर उन्‍हें यह अहसास हुआ कि वे एक मात्र नहीं हैं, उन जैसे हजारों लोग हमारी जेलों में न्‍याय की आशा में सालों से बंद हैं। उनका स्‍वयं का मुकदमा भी अभी चल ही रहा है। कुछ सवाल ऐसे भी थे,जिनमें उठाए गए मुद्दों के बारे में वे नहीं जानते थे। उन्‍होंने उसी सहजता से कहा, मैं इस बारे में अधिक नहीं जानता, इसलिए कुछ नहीं कहूंगा। बीच-बीच में वे अपनी पढ़ी हुई किताबों और रिर्पोंटों का हवाला देना और पढ़ने की सलाह देना नहीं भूले।

मेरे साथी जयकुमार मरिअप्‍पा, बिनायक सेन और मैं





62 साल के बिनायक सेन लगभग डेढ़ घंटे खड़े रहे। बाजू में डायस भी था और वहां पानी का गिलास भी। पर उन्‍होंने दोनों का उपयोग नहीं किया। मेरे ध्‍यान दिलाए जाने पर जब एक आयोजक साथी ने उनसे बैठकर बोलने का आग्रह किया तो उन्‍होंने विनम्रता से मना कर दिया।

बातें बहुत सारी हुईं। बातचीत खत्‍म हुई, तो मैंने पास जाकर अपना नाम बताया। सुनते ही वे पहचान गए और एकदम से गले लगा लिया। बोले इतनी देर से क्‍यों नहीं बताया। मैं तुम्‍हें देख तो रहा था, पर पहचान नहीं पा रहा था। पहचानते भी कैसे, हमारी पिछली मुलाकात लगभग बीस बरस पहले की थी। फिर तो जैसे दो बिछुड़े मिलते हैं वैसे ही कुछ हमारी बातचीत होती रही। हमने साथ-साथ चाय पी। बंगलौर के एक और संस्‍थान में उन्‍हें बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था, इसलिए वे विदा लेकर चले गए।
                                      0 राजेश उत्‍साही
 

14 comments:

  1. विनायक सेन जी के बारे मे जानकर अच्छा लगा।

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  2. अच्छा लगा उनको जानना और समझना...
    शुभकामनायें आपको !

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  3. बिनायक सेन से मुलाक़ात का बेहद सजीव वर्णन. मेरी भी बड़ी इच्छा है उनसे मिलने की...देखिये कब संभव होता है.

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  4. विनायक सेन से मुलाकात का बेहद सजीव चित्रण...जनपक्षधर लोग ऐसे ही होते हैं - सहज, सरल और दृढ़, उन्हें हर बार अपना त्याग याद दिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. उनसे मिलने की मेरी भी बड़ी इच्छा है.

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  5. अशोक कुमार पाण्डेय has left a new comment on your post "मुलाकात बिनायक सेन से":

    विनायक सेन से मुलाकात का बेहद सजीव चित्रण...जनपक्षधर लोग ऐसे ही होते हैं - सहज, सरल और दृढ़, उन्हें हर बार अपना त्याग याद दिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. उनसे मिलने की मेरी भी बड़ी इच्छा है.

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    1. आशा है आपकी इच्‍छा जल्‍द ही पूरी होगी।

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    2. बिनायक सेन से मुलाकात और उन्हें आपके शब्दों में सुनना अच्छा लगा. मेरा एक आलेख "भारत और भूखमरी" http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/2012/01/blog-post_17.html पढियेगा .

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  6. सार्थक मुलाकात की सार्थक पोस्ट।

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  7. विनायक सेन स्वस्थ रहें..जन जन का पक्ष यूं ही रखते रहें..समझौतावादियों के बीच ऐसे जनवादी विचारकों को पढ़ना सुख देता है।

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  8. सत्य और किसी राजनितिक कन्त्रोवेरसी में कितना फर्क होता है ... अच्छी रही मुलाकात ...

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  9. 62 साल के बिनायक सेन लगभग डेढ़ घंटे खड़े रहे। बाजू में डायस भी था और वहां पानी का गिलास भी। पर उन्‍होंने दोनों का उपयोग नहीं किया। मेरे ध्‍यान दिलाए जाने पर जब एक आयोजक साथी ने उनसे बैठकर बोलने का आग्रह किया तो उन्‍होंने विनम्रता से मना कर दिया.....sach karmath log umra badhne par bhi anawasyak sahara nahi lete... Binayak sen ji ke baare mein bahut suna tha lekin aaj sajiv chitran padhkar bahut achhi anubhuti huyee..
    saadar

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  10. इतनी अज़ीम शख्सियत से मुलाकात निश्चय ही यादगार रही होगी.
    वे निस्संदेह एक कर्मयोगी हैं...
    उन्हें सुनने का अवसर मिलना एक उपलब्धि ही है.

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