Friday, January 27, 2012

रास्‍ता इधर है...


                                                  फोटो: राजेश उत्‍साही 
...बश्‍ार्ते तय करो,
किस ओर हो तुम, अब 
सुनहले ऊर्ध्‍व-आसन के
दबाते पक्ष में,  अथवा 
कहीं उससे लुटी-टूटी
अंधेरी कक्षा में तुम्‍हारा मन 
कहां हो तुम ?
0 मुक्तिबोध
(मुक्तिबोध की लम्‍बी कविता 'चकमक' का एक अंश) 

9 comments:

  1. हर किसी के लिये रास्ता अलग होना तय है

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  2. गहन भाव संयोजन लिए शब्‍द ...

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  3. क्योंकि तय तुम्हें ही करना है आगत

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  4. muktibodh ke kavita ke satha bejod tasveer prastuti hetu dhanyvaad..

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  5. पढ़ रहा हूँ ...समझ रहा हूँ ..सोच रहा हूँ
    गहन ...मर्मस्पर्शी ...
    आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!

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  6. मन तो अंधेरी कक्षा में ही होना चाहिए।

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  7. JAAN LE
    PAHACHAN LE
    KAHA HAI HUM
    AUR KYA CHAHIYE
    UDAY TAMHANE
    BHOPAL

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जनाब गुल्‍लक में कुछ शब्‍द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...