गूगल से साभार |
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बिनायक सेन को मैंने बहुत नजदीक से देखा और जाना है। 1980 के आसपास जब वे होशंगाबाद में मित्र मंडल केन्द्र, रसूलिया की डिस्पेन्सरी में बैठते थे, उनसे कई बार मिलना हुआ। होशंगाबाद जिले में ही पिपरिया के पास स्थित किशोर भारती संस्था और मित्र मंडल केन्द्र,रसूलिया ने मिलकर शासकीय स्कूलों के लिए होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत की थी। इसी कार्यक्रम को आगे ले जाने के लिए बाद में एकलव्य संस्था की स्थापना हुई थी। जिसमें मैंने 26 साल काम किया।
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डॉक्टर बिनायक सेन ने आदिवासी बहुल इलाके छत्तीसगढ़ के लोगों के बीच काम करने की शुरुआत स्वर्गीय शंकर गुहा नियोगी के साथ की थी। नियोगी, आदिवासी श्रमिकों को शिक्षित, जागरूक बनाने के साथ उन्हें संगठित करने का काम कर रहे थे। लेकिन जिन शक्तियों को आदिवासियों का जागरूक होना नुकसान पहुंचा रहा था, उन्होंने 1991 में नियोगी की हत्या करवा कर उन्हें अपने रास्ते से हटा दिया। लेकिन विनायक सेन उस काम को आगे बढ़ाते रहे। पेशे से बाल चिकित्सक सेन ने वहां मजदूरों के लिए बनाए शहीद अस्पताल में लोगों का इलाज करना शुरू कर दिया। साथ ही छत्तीसगढ़ के विभिन्न इलाकों में सस्ते इलाज के लिए योजनाएं बनाने की भी उन्होंने शुरुआत की।
पीयूसीएल के उपाध्यक्ष के तौर पर उन्होंने छत्तीसगढ़ में भूख से मौतों और कुपोषण का सवाल उठाया। वे अक्सर सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में आम जनता का फायदा नहीं होने का सवाल उठाते रहते थे। उनका सबसे बड़ा अपराध सरकार की निगाहों में यह माना गया कि उन्होंने सलवा जुडुम को आदिवासियों के खिलाफ बताया था। राज्य सरकार द्वारा चलाए गए इस आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल खड़े किए थे। बीजेपी ने जब 2005 में छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम लागू किया तो विनायक सेन ने इसका कड़ा विरोध किया था। और इसी कानून के तहत सेन को छत्तीसगढ़ सरकार ने 2007 में गिरफ्तार किया। भारतीय दंड संहिता की धारा 124, (राजद्रोह) और 120बी (षड्यंत्र) तथा छत्तीसगढ़ विशेष लोक सुरक्षा कानून के तहत दोषी ठहराया। 58 वर्षीय डॉक्टर और पीपुल्स यूनियन आफ सिविल लिबर्टीज के उपाध्यक्ष सेन पर आरोप है कि उन्होंने जेल में बंद सान्याल के संदेश वाहक के तौर पर काम किया और सान्याल के संदेश और पत्र भूमिगत माओवादियों तक पहुंचाए। सेन को 14 मई 2007 को बिलासपुर में गिरफ्तार किया गया था और पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के पहले वह दो साल तक जेल में रहे।
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बिनायक सेन जो काम कर रहे थे अगर वह देशद्रोह की श्रेणी में आता है तो मैं जो काम कर रहा हूं वह उससे अलग कैसे है। मैं अपनी पूरी जिन्दगी के काम को अगर एक वाक्य में कहूं तो वह ‘शोषण के खिलाफ लड़ाई’ का एक हिस्सा रहा है। मेरा काम रहा है बच्चों के लिए ऐसी शिक्षा जो उन्हें बेहतर समाज के लिए तैयार कर सके। तो कायदे से मुझे और मुझ जैसे तमाम लोगों को भी आजीवन कारावास की सजा के लिए तैयार रहना चाहिए। मैं दावे से कहता हूं कि यह न्यायालय की आलोचना नहीं है बल्कि यह फैसला न्याय का अनादर है।
पीयूसीएल के उपाध्यक्ष के तौर पर उन्होंने छत्तीसगढ़ में भूख से मौतों और कुपोषण का सवाल उठाया। वे अक्सर सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में आम जनता का फायदा नहीं होने का सवाल उठाते रहते थे। उनका सबसे बड़ा अपराध सरकार की निगाहों में यह माना गया कि उन्होंने सलवा जुडुम को आदिवासियों के खिलाफ बताया था। राज्य सरकार द्वारा चलाए गए इस आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल खड़े किए थे। बीजेपी ने जब 2005 में छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम लागू किया तो विनायक सेन ने इसका कड़ा विरोध किया था। और इसी कानून के तहत सेन को छत्तीसगढ़ सरकार ने 2007 में गिरफ्तार किया। भारतीय दंड संहिता की धारा 124, (राजद्रोह) और 120बी (षड्यंत्र) तथा छत्तीसगढ़ विशेष लोक सुरक्षा कानून के तहत दोषी ठहराया। 58 वर्षीय डॉक्टर और पीपुल्स यूनियन आफ सिविल लिबर्टीज के उपाध्यक्ष सेन पर आरोप है कि उन्होंने जेल में बंद सान्याल के संदेश वाहक के तौर पर काम किया और सान्याल के संदेश और पत्र भूमिगत माओवादियों तक पहुंचाए। सेन को 14 मई 2007 को बिलासपुर में गिरफ्तार किया गया था और पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के पहले वह दो साल तक जेल में रहे।
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बिनायक सेन जो काम कर रहे थे अगर वह देशद्रोह की श्रेणी में आता है तो मैं जो काम कर रहा हूं वह उससे अलग कैसे है। मैं अपनी पूरी जिन्दगी के काम को अगर एक वाक्य में कहूं तो वह ‘शोषण के खिलाफ लड़ाई’ का एक हिस्सा रहा है। मेरा काम रहा है बच्चों के लिए ऐसी शिक्षा जो उन्हें बेहतर समाज के लिए तैयार कर सके। तो कायदे से मुझे और मुझ जैसे तमाम लोगों को भी आजीवन कारावास की सजा के लिए तैयार रहना चाहिए। मैं दावे से कहता हूं कि यह न्यायालय की आलोचना नहीं है बल्कि यह फैसला न्याय का अनादर है।
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मेरी बात को और तल्ख अंदाज में अशोक कुमार पाण्डेय की कविता बयान करती है। इसे मैंने उनके ब्लाग असुविधा से साभार लिया है।
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इस ज़िंदां में कितनी जगह है
(ज़िंदां यानी कारावास)
सुना है हाकिम सारे दीवाने अब ज़िंदां के हवाले होंगे
सारे जिनकी आँख खुली है
सारे जिनके लब खुलते हैं
सारे जिनको सच से प्यार
सारे जिनको मुल्क़ से प्यार
और वे सारे जिनके हाथों में हैं सपनों के हथियार
सब ज़िंदां के हवाले होंगे!
ज़ुर्म को अब जो ज़ुर्म कहेंगे
देख के सब जो चुप न रहेंगे
जो इस अंधी दौड़ से बाहर
बिन पैसों के काम करेंगे
और दिखायेंगे जो पूंजी के चेहरे के पीछे का चेहरा
सब ज़िंदां के हवाले होंगे
जिनके सीनों में आग बची है
जिन होठों में फरियाद बची है
इन काले घने अंधेरों में भी
इक उजियारे की आस बची है
और सभी जिनके ख़्वाबों में इंक़लाब की बात बची है
सब ज़िंदां के हवाले होंगे
आओ हाकिम आगे आओ
पुलिस, फौज, हथियार लिये
पूंजी की ताक़त ख़ूंखार
और धर्म की धार लिये
हम दीवाने तैयार यहां हैं हर ज़ुर्म तुम्हारा सहने को
इस ज़िंदां में कितनी जगह है!
(ज़िंदां यानी कारावास)
सुना है हाकिम सारे दीवाने अब ज़िंदां के हवाले होंगे
सारे जिनकी आँख खुली है
सारे जिनके लब खुलते हैं
सारे जिनको सच से प्यार
सारे जिनको मुल्क़ से प्यार
और वे सारे जिनके हाथों में हैं सपनों के हथियार
सब ज़िंदां के हवाले होंगे!
ज़ुर्म को अब जो ज़ुर्म कहेंगे
देख के सब जो चुप न रहेंगे
जो इस अंधी दौड़ से बाहर
बिन पैसों के काम करेंगे
और दिखायेंगे जो पूंजी के चेहरे के पीछे का चेहरा
सब ज़िंदां के हवाले होंगे
जिनके सीनों में आग बची है
जिन होठों में फरियाद बची है
इन काले घने अंधेरों में भी
इक उजियारे की आस बची है
और सभी जिनके ख़्वाबों में इंक़लाब की बात बची है
सब ज़िंदां के हवाले होंगे
आओ हाकिम आगे आओ
पुलिस, फौज, हथियार लिये
पूंजी की ताक़त ख़ूंखार
और धर्म की धार लिये
हम दीवाने तैयार यहां हैं हर ज़ुर्म तुम्हारा सहने को
इस ज़िंदां में कितनी जगह है!
कितने जिंदां हम दीवानों के
ख़ौफ़ से डरकर बिखर गये
कितने मुसोलिनी, कितने हिटलर
देखो तो सारे किधर गये
और तुम्हें भी जाना वहीं हैं वक़्त भले ही लग जाये
फिर तुम ही ज़िंदां में होंगे
ख़ौफ़ से डरकर बिखर गये
कितने मुसोलिनी, कितने हिटलर
देखो तो सारे किधर गये
और तुम्हें भी जाना वहीं हैं वक़्त भले ही लग जाये
फिर तुम ही ज़िंदां में होंगे
0 अशोक कुमार पाण्डेय
राजेश जी, विनायक सेन जी के बहाने सत्ता लोंगों की आवाज को दबाना चाहती है. पता नहीं यह सत्ता की कैसी अजब चाल है की जनता के लिए जनता की ही सरकार , जनता के हक़ की बात करने वालों को ही दबाने पर तुली है. विरोध का एक भी श्वर उसे तिलमिला दे रहा. अशोक जी की कविता निश्चय ही व्यवस्था के बुराईयों के खिलाफ हिम्मत दे रही है...........
ReplyDeleteफर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
अब तो इन लोगों का नाम लेना भी देशद्रोह की श्रेणी में आने लगा है... एक समय हमने इनपर लिखना चाहा, पर डर ने हाथ रोक लिये..
ReplyDeleteकविता एक मशाल है!! एक चिंगारी!!
बड़े भाई, सलाम है इस व्यक्तित्व को!!
निश्चय ही शोषण के खिलाफ आपकी लड़ाई होगी पर वहाँ की और यहाँ की परिस्थितियाँ भिन्न होंगी।
ReplyDeleteयही तो मुश्किल है कि अदालत ने क्या देखा औऱ क्या समझा। अब देखते हैं कि उच्च अदालत में क्या होता है। शायद वहां ये केस नहीं टिकेगा। हां कुछ सजा जरुर हो सकती है पर देशद्रोह..एक बार विश्वावस नहीं होता।
ReplyDeleteविनायक सेन के बारे में जानने की इच्छा है राजेश भाई !
ReplyDeleteसादर
inqlab jindabad...bhagat singh jindabad..
ReplyDeleteज़िंदा के हवाले अगर इन सब को कर दिया तो बाहर सिर्फ देश द्रोही अत्याचारी और नपुंसक ही रहेंगे...
ReplyDeleteकब तक सहना होगा हमें ये सब...कब तक?
नीरज
राजेश भाई कोई पंद्रह साल पहले जब मैं कालेज में पहुँच ही रहा था तब दो दिन के लिए पटना से लड़का मेरे घर पर ठहरा था... वह पटना विश्वविद्यालय से फिजिक्स में एम् एस सी स्वर्ण पदक के साथ था.. बाद में नक्सल विचारधारा से जुड़ गए थे .. वह कहीं से न तो हिंसक थे ना हिंसा के हिमायती.. कुछ दिन बाद ही बिहार के गया में एक एनकाऊन्टर में मरे गए ..आज भी मैं उसको भूल नहीं पाता... जाने से पहले जनवादी सोच का बीज मेरे भीतर उहोने ही रखा था.. विनायक सेन के साथ भी कुछ ऐसा हो जाए कभी तो आश्चर्य नहीं अभी तो मात्र सजा मिली है.... ! लोकतंत्र में लोक कहाँ है अब... सत्ता से संसाधन तक लोक गायब है.. हाशिये पर है...
ReplyDeleteविनायक सेन के बारे में उतना ही पता है जितना की समाचारों में पढ़ा और देखा है | लेकिन किस आधार पर उनको सजा दी गई है ये अभी भी कही पर देखा पढ़ा नहीं जबकि अन्य कई मुकदमो में ये सब कुछ सामने आ जाता है |
ReplyDelete@ राजेश उत्साही जी
ReplyDeleteसबसे पहले मेरी लघुकथा की मूल्यांकन करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद | ये मेरा सौभाग्य है की मेरे लघु कथा लिखने के पहले प्रयास में ही साहित्य जगत से जुड़े दो बड़े नमो ने मेरा मार्ग दर्शन किया | राजेश जी ये महज संजोग है कि मैंने भी या लघुकथा जैसी कोई चीज लिखी और उधर अजित जी ने भी लघुकथा लिखने पर ही एक पोस्ट लिख दी | यदि वहा पर आप ने मेरी टिप्पणी पढ़ी हो तो मैंने यही लिख था की मैंने लघु कथा सोच कर नहीं बल्कि बस अपने विचार को यु ही उतार दिया था जिसे खुद मै लघु कथा तक नहीं समझ रही थी तो फिर किसी को मूल्यांकन के लिए क्या कहती | अजित जी ने उसी समय पर वो पोस्ट लिखी थी इस लिए थोड़ी हिम्मत करके उनसे पूछ लिया था | आप दोनों के कहने के पहले तक तो मै इसे चुटकुले की श्रेणी में ही रख रही थी |
मेरा साहित्य से जुड़ाव बस ब्लॉग पर आप लोगों को पढ़ने तक ही और मै खुद ये कभी नहीं सोच पाई थी की मै कुछ ऐसा लिखूंगी जो साहित्य की किसी विधा से जुड़ा होगा इसलिए आप से कभी ऐसा कहने की हिम्मत नहीं हुई | एक बार फिर से आप का धन्यवाद दुँगी की आप ने बिना मेरे कहे ही मेरा मार्ग दर्शन किया मै हमेशा चाहूंगी की आप मेरे सभी लेखो का यु ही मूल्याकन करते रहे ( वर्तनी की गलतिया छोड़ कर वो मुझसे बहुत होती है सुधार का प्रयास जारी है ) ताकि मै अपनी लेखनी में और सुधार कर सकू | धन्यवाद | आप ने जो गलतिया बताई है उसका अगली बार ध्यान रखूंगी |
jo drohi hain unhen deshdrohi nahi kahte
ReplyDeletesamay se pahle faansi bhagat singh kee udaharan hai...
garv karo deshdrohi ho
deshbhakt to angur khaate hain bas
@ अरुण भाई विडम्बना तो यही है कि हम और हमारी व्यवस्थाएं इतनी संवेदनहीन हो गई हैं कि ऐसा कुछ होने पर आश्चर्य होने की गुजाइंश भी नहीं बची है न जीवन में न शब्दों में।
ReplyDeleteशायद इसी लिए बहुत से लोग अंग्रेजों के राज को अच्छा समझते हैं...वे पराए तो थे, जिनसे लड़ा जा सकता था...जब अपने ही भक्षक बन गए हों तो इस तरह ही अच्छे लोगों के साथ अन्याय होता है ।
ReplyDeleteपहले " 2005 में छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम.." क्या था उसका सेन ने क्यों विरोध किया इस पर बात हो तो पता चले कि या इलाही ये माज़रा क्या है...कोर्ट ने सज़ा दी है तो कुछ बात होनी चाहिये....आगे पता चल जायगा...शोषण के खिलाफ़ लडाई एक अलग बात है...परन्तु राज्य के खिलाफ़ ???
ReplyDeleteराजेश सर यह देश पूंजीवादी व्यवस्था की और चल पड़ा है चाहे सत्ता किसी भी राजनितिक दल का हो... ऐसे में ऐसी दमनकारी कदम बहुत आम हो जायेंगे.. छोटे पैमाने पर कितने ही 'सेन' रोज़ ही राज्य के शिकार हो रहे हैं... डॉ. विनायक सेन बड़ी हस्ती थे सो मीडिया में प्रभाव है अन्यथा लाश बेनामी कह कर दफना दी जाती है... कविता अच्छी लगी... और आपका सरोकार भी..
ReplyDelete@ श्याम जी आशा है आप निश्चित ही अपनी जिज्ञासा के लिए कुछ और जानकारी खोज कर पढेंगे ही। और सवाल है जब आप सत्ता कहते है वह क्या है और जब राज्य कहते हैं वह क्या है। सत्ता और राज्य दोनों ही शोषण कर सकते हैं और करते हैं।
ReplyDelete@शुक्रिया पलाश। डा सेन थे नहीं हैं। और वे अपने काम की वजह से मीडिया की नजर में हैं। आप अगर उनके बारे में जानकारी खोजकर पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि उन्होंने छोटे पैमाने के सेन लोगों के साथ मिलकर ही काम किया है। छत्तीसगढ़ मुक्तिमोर्चा ने वहां मजदूरों,आदिवासियों के बीच परिवर्तनकारी काम किया है।
शोषण के खिलाफ लड़ाई’
ReplyDelete.
मैंने आपको बहुत नहीं पढ़ा लें यदि यह मुद्दा है तो आप को सलाम.
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सामाजिक सरोकार से जुड़ के सार्थक ब्लोगिंग किसे कहते
देश में सही कहाँ और कब हो रहा है ? आवाज भी कहाँ उठती हैं?
ReplyDeleteपृथ्वी राज चौहान के साथ क्या किया गया था . वही युग वही अन्याय हो रहा है. आपको दर्द हुआ पर कितनों को.
लोग तो सच बोलने मैं भी डरते हैं.
एक बार पिछले ५ सालों का इतिहाश तो देखलें की कब कब कहाँ कहाँ किटें बम ब्लास्ट हुए हैं.
इनमें जो दोषी पकडे गए हैं, वे कौन हैं ?
ये भी देखें
ReplyDeletehttp://mrityubodh.blogspot.com/2010/12/blog-post_28.html
और
http://gorakhpurfilmfestival.blogspot.com/2010/12/blog-post_26.html
दुःखद है ये लोकतंत्र देश नहीं अब गुंडा तंत्र बनने की राह पर है, शायद अंग्रेजो के नक्शे कदम पर ।
ReplyDelete