इसे संयोग कहूं या कि दुर्योग कि मेरे ब्लाग पर
क्रमश: यह चौथी पोस्ट है जो किसी के न रहने या न रहे को याद करने की है। पहले हेमराज
भट्ट, फिर पिताजी, संध्या गुप्ता और अब अदम गोंडवी।
(22.10.1947-18.12.2011) |
रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी का यह परिचय उनके पहले संग्रह धरती की सतह पर के पिछले आवरण पर प्रकाशित हुआ था। यह संग्रह 1988 में मुक्ति प्रकाशन से आया था। और दूसरा समय से मुठभेड़ वाणी प्रकाशन से।
अदम गोंडवी पिछले कुछ दिनों से बीमार थे। वे लखनऊ
में एसपीजीआई में भर्ती थे। अखबारों में उनकी अस्वस्थता को लेकर खबरें भी थीं।
मित्र और परिचित उनकी मदद की हर संभव कोशिश कर रहे थे। पर नियति को समय से मुठभेड़
करते अदम का धरती की सतह पर रहना अब मंजूर नहीं था। 18 दिसम्बर,2011 की सुबह उन्होंने
इस दुनिया का अलविदा कह दिया।
उनके पहले संग्रह में मंगलेश डबराल ने लिखा था, '' उनकी एक बहुत लंबी कविता 1982 के आसपास लखनऊ के अमृतप्रभात में प्रकाशित हुई थी ' मैं चमारों की गली में ले चलूंगा आपको'। कविता एक सच्ची घटना पर आधारित थी। कविता जमींदारी उत्पीड़न और आतंक की एक भीषण तस्वीर प्रस्तुत बनाती थी। उसमें बलात्कार की शिकार हरिजन युवती को नयी मोनालिसा कहा गया था। एक रचनात्मक गुस्से और आवेग से भरी कविता को पढ़ते हुए लगता था जैसे कोई कहानी या उपन्यास पढ़ रहे हों। कहानी में पद्य या कविता तो अकसर वही कहानियां प्रभावशाली कही जाती रहीं हैं जिनमें कविता की सी सघनता हो- लेकिन कविता में एक सीधी-सच्ची,गैर आधुनिकतावादी ढंग की कहानी शायद पहली बार इस तरह प्रकट हुई थी।''
अदम की इस कविता ने गोंडा कस्बे में जबर्दस्त हलचल पैदा कर दी थी। जमींदार और स्थानीय हुक्मरान बौखलाकर अदम को सबक़ सिखाने की तजवीज करने लगे थे। लेकिन अदम अपने अंचल में इतने लोकप्रिय थे और उनका इतना सम्मान था कि प्रशासन को ' कार्यवाही' करने का साहस नहीं हुआ। बाद में उनकी ग़ज़लों ने भी ऐसी ही हलचल मचाई।
उनके संग्रह से उनकी ग़ज़ल के कुछ चुनिंदा शेर प्रस्तुत हैं-
जो ग़ज़ल माशूक
के जल्वों से वाक़िफ़ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो
*
पेट के भूगोल में उलझा हुआ है आदमी
इस अहद में किसको फुर्सत पढ़े दिल की किताब
*
सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद हैं
दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है
*
आसमानी बाप से जब प्यार कर सकते नहीं
इस ज़मीं के ही किसी किरदार की बातें करो
*
कहने को कह रहे हैं, मुबारक हो नया साल
खंजर भी आस्तीं में छुपाये हुए हैं लोग
*
ताला लगा के आप हमारी जुबान को
कैदी न रख सकेंगे जेहन की उड़ान को
*
जितने हरामखोर थे कुर्बो-जवार में
परधान बनके आ गये अगली कतार में
*
छेडि़ए इक जंग,मिल-जुलकर गरीबी के खिलाफ
दोस्त, मेरे मज़हबी नग्मात को मत छेडि़ए
*
जनता के पास एक ही चारा है बग़ावत
ये बात कह रहा हूं में होशो हवास में
*
उनकी ग़ज़लें कविता कोश पर पढ़ी जा सकतीं हैं। 0 राजेश उत्साही
सदमे की स्थिति में हूँ.. २५ साल पहले जिस शख्स को जाना था आज उसकी मौत का मातम मनाना पड़ रहा है.. बेहद अफसोसनाक!!
ReplyDeleteगोंडवी जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteजी मैंने इनको पढ़ा है ... विनम्र श्रद्धांजली .
ReplyDeleteबेहद दुखद खबर....
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि
दुखद रहा .....
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि !
Adam Gondvi itne lokpriy the ki unse mulakat na hone ke bavjood lagta tha ki ve parichit hain.
ReplyDeleteश्रद्धांजलि !
ReplyDeleteअदम साहब की शायरी पढ़वाने का शुक्रिया। एक अलग ही तेवर के शेर हैं इनके ...जो इन्हें कभी मरने नहीं देंगे!!
ReplyDeleteADAMJI, NAHI RAHE,
ReplyDeleteJANG GAREEBEE KE KHILAPH RAHE.
VINAMRA SHRADDHANJALI.
UDAY TAMHANEY.
BHOPAL.
विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteकल रात ही उनकी दलित युवती पर लिखी लंबी कविता को ब्लॉग पर अपनी आवाज़ में पॉडकास्ट बना रहा था। आपकी पोस्ट से उस कविता की पृष्ठभूमि को जानने का अवसर मिला। अदम साहब के इन धारदार अशआरों को उनके प्रशंसक हमेशा याद रखेंगे।
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिये धन्यवाद उत्साही जी । अदम जी को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि
ReplyDeleteबेहद दुखद.....
ReplyDeleteगोंडवी जी को विनम्र श्रद्धांजलि!!
गोंडवी जी से परिचय और उनकी लेखनी से अवगत करने के लिए आपका आभार!
अदम जी का जाना हमारे लिए दुख की बात है .मेरा नमन .
ReplyDeleteअदम जी का जाना हमारे लिए दुख की बात है .मेरा नमन .
ReplyDeleteअदम जी का जाना हमारे लिए दुख की बात है .मेरा नमन .
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