''मित्रों, एकाएक मेरा विलगाव आप लोगों को नागवार लग रहा है, किन्तु शायद आपको
यह पता नहीं कि मैं पिछले कई महीनों से जीवन के लिए मृत्यु से जूझ रही हूं। अचानक
जीभ में गंभीर संक्रमण हो जाने के कारण यह स्थिति उत्पन्न हो गई है। जीवन का
चिराग जलता रहा तो फिर खिलने-मिलने का क्रम जारी रहेगा। बहरहाल, सबकी खुशियों के
लिए प्रार्थना।''
4 अगस्त ,2011 को संध्या गुप्ता जी ने अपने ब्लाग पर यह संक्षिप्त पोस्ट
लगाई थी। वे मेरे ब्लागरोल पर थीं, सो मैंने तुरंत ही टिप्पणी में उनके जल्दी
स्वस्थ्य होने की कामना की। लेकिन शायद यह नियति को मंजूर नहीं था। वे गत 8 नवम्बर को इस दुनिया को अलविदा कह गईं। यह खबर किसी ब्लागर तक नहीं पहुंची। उनका ब्लाग अब भी जारी है। कल
अनुराग शर्मा जी के ब्लाग पर उनके न रहने का दुखद समाचार था। उन तक यह समाचार
आर.अनुराधा जी ने पहुंचाया। उन्हें भी यह खबर जागरण के एक समाचार से मिली। मुंबई
में 9-10 दिसम्बर को एक ब्लागर समारोह था। मैंने नुक्कड़ पर उसकी समाचार पोस्ट
पर टिप्पणी करते हुए अनुरोध किया कि समारोह में उन्हें याद किया जाना चाहिए।
पता नहीं याद किया गया या नहीं, पर हां नुक्कड़ पर अविनाश वाचस्पति ने उनकी फोटो
के साथ चार पंक्तियों की एक सूचना जैसी कविता लगाई है। जाने-माने ब्लाग चोखेर बाली
की भी वे सदस्य थीं। उनके न रहने का समाचार पढ़कर मैं वहां गया तो पाया कि वहां
भी उन्हें तब तक याद नहीं किया गया था। वहां आर.अनुराधा की पोस्ट लगी हुई थी।
मैंने टिप्पणी करते हुए लिखा कि उन पर एक पोस्ट तो बनती है। देखकर संतोष हुआ कि
चोखेर बाली पर एक के बाद एक तीन पोस्ट संध्या गुप्ता, फिर मिलेंगे, चोखेर बाली डॉ.संध्या गुप्ता नहीं रहीं। उन्हें याद करते हुए लगाई गई हैं।
यह थोड़े ताजुब्ब की और बेहद अफसोस की बात है कि क्या हम सब संध्या जी से
इतने दूर थे, या कि उनके नजदीक के लोग बाकी दुनिया से इतने दूर हैं कि यह खबर ब्लाग
जगत में आने में पूरा एक महीना लग गया। शायद अपनी दुनिया में बे-सिर पैर की पोस्ट
और चर्चाओं में मस्त रहने वाले ब्लाग जगत की नियति यही है।
मेरा परिचय भी उनसे ब्लाग के जरिए ही हुआ था। वे मेरी कविताएं पढ़ती रहती
थीं। मैं उनकी कविताओं से प्रभावित था। अफसोस यही है कि उनसे परिचय बहुत देर से
हुआ और बहुत कम समय तक रहा। संध्या जी को याद करते हुए उनकी ही दो कविताएं यहां
प्रस्तुत हैं। उनकी पहली कविता किवाड़ मुझे बेहद प्रिय है-
किवाड़
इस भारी से
ऊंचे किवाड़ को देखती हूं अक्सर
इसकी ऊंची चौखट से
उलझकर संभलती हूं
कई बार
बचपन में इसकी सांकलें कहती थीं
एडि़यां उठाकर मुझे झुओ तो !
अब यहां से झुककर निकलती हूं
और किवाड़ के ऊपर फ्रेम में जड़े पिता
बाहर की दुनिया में संभलकर
मेरा जाना देखते हैं।
प्रारम्भ में लौटने की इच्छा
से भरी हूं
मैं उसके रक्त को छूना
चाहती हूं
जिसने इतने सुंदर चित्र
बनाए
उस रंगरेज के रंगों में
घुलना चाहती हूं
जो कहता है-
कपड़ा चला जाएगा बाबूजी!
पर रंग हमेशा आपके साथ
रहेगा
उस कागज के इतिहास में
लौटने की इच्छा से भरी हूं
जिस पर इतनी सुंदर इबारत और
कविताएं हैं
और जिस पर हत्यारों ने
इकरारनामा लिखवाया
तवा,स्टोव
बीस वर्ष पहले के कोयले के
टुकड़े
एक च्यवनप्राश की पुरानी
शीशी
पुराने पड़ गए पीले खत
एक छोटी-सी खिड़की वाला
मंझोले आकार का कमरा
एक टूटे हुए घड़े के मुहाने
को देखकर
शुरू की गई गृहस्थी के
पहले के अहसास
को छूना चाहती हूं
अभी स्वप्न से जाग कर उठी हूं
अभी मृत्यु और जीवन की कामना से कम्पित है
यह शरीर ।
विनम्र श्रद्धांजलि..
ReplyDeleteएडि़यां उठाकर मुझे झुओ तो !... छू रही हूँ चोखेर बाली तुम्हारे हौसले को... मेरी श्रद्धांजली
ReplyDeletenaman!
ReplyDeleteश्रद्धांजली।
ReplyDeleteउत्साहीजी ,सन्ध्या जी को मैं नही जानती थी किन्तु अब यह पोस्ट व उनकी कविताएं पढ कर न जान पाने का खेद है । उनके लिये हार्दिक श्रद्धांजली ।
ReplyDeleteसंध्या जी का जाना ब्लोगजगत की अपूर्णनीय क्षति है…………विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे।
ReplyDeleteयहाँ कौन किसे याद करता है...मतलब की ये दुनिया है सारी...बिछुड़े सभी बिछुड़े सभी बारी बारी...विनम्र श्रधांजलि
ReplyDeleteनीरज
मौत जीवन का सच ..कड़वा हमारे लिए जाने जाने वाले के लिए कैसा.....यही त्रासदी है कि एक महिना लग गया खबर के सामने आने में..बेहतर है संपर्क एक-दुसरे बढ़ाया जाए..पर इस दिशा में हाय हैलो या भेंट मुलाकात से आगे बात नहीं बढ़ रही है ।
ReplyDeleteRAJESH JI,
ReplyDeleteAAPNE BILKOOL SAHI BAAT UTHAI HAI. KHASTOR SE BLOGER'S KE LIYE.
ISHWAR SANDHYA JI KI AATAMAA KO SHAANTI DE.
UDAY TAMHANEY.
BHOPAL.
ईश्वर उनकी आत्मा को शांती प्रदान करे,.....
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
सपने में कभी न सोचा था,जन नेता ऐसा होता है
चुन कर भेजो संसद में, कुर्सी में बैठ कर सोता है,
जनता की बदहाली का, इनको कोई ज्ञान नहीं
ये चलते फिरते मुर्दे है, इन्हें राष्ट्र का मान नहीं,
पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे
मैंने कभी इनको नहीं पढ़ा.. लेकिन आज जो पढ़ा उसे पढकर श्रद्धा से भर गया हूँ.. मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि!!
ReplyDeleteसंध्या जी को विनम्र श्रद्धांजलि.....दोनों कवितायेँ उनकी सशक्त लेखन को बखूबी बयां कर रही है.उन्हें न पढ़ पाने का अफ़सोस रहेगा .
ReplyDeleteएक छोटी-सी खिड़की वाला मंझोले आकार का कमरा
ReplyDeleteएक टूटे हुए घड़े के मुहाने को देखकर
शुरू की गई गृहस्थी के पहले के अहसास
को छूना चाहती हूं
अभी स्वप्न से जाग कर उठी हूं
अभी मृत्यु और जीवन की कामना से कम्पित है
यह शरीर ।
...sach jiwan ke kitne gahre ahsas bhare hain in panktiyon mein....
Sandhya ji ko padh nahi payee thi ..aapke es alekh ke madhyam se jaankar bahut dukh hua....
....sach itne der se suchna blogger's tak pahunchna dukhad hai..
ishwar unke ghar pariwar ko is dukh ko sahne ki shakti den yahi prarthna hai..
..sarthak post ke liye aapka aabhar..
संध्या जी की उत्कृष्ट कविताएं पढ़वाने के लिए आभार आपका। हम अधिक नहीं जान पाये उनको। ...ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और हम सब को संवेदनशीलता।
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