Saturday, December 31, 2011

स्‍वागत इक्‍कीस के बारह


फोटो: राजेश उत्‍साही



अलविदा इक्‍कीस के ग्‍यारह
साथ इतना ही था  हमारा,
 न  देखो यूं  ठिठककर
बीता समय कब आता दोबारा।


                                                                                       फोटो: राजेश उत्‍साही 







पांव में बांधकर पैजनिया
रेत खंगलाती है मुनिया,
स्‍वागत इक्‍कीस के बारह
तुमको भी परखेगी दुनिया।
                   0  राजेश उत्‍साही 

Sunday, December 18, 2011

‘समय से मुठभेड़ ’ करते ‘धरती की सतह पर ’ अदम गोंडवी नहीं रहे

इसे संयोग कहूं या कि दुर्योग कि मेरे ब्‍लाग पर क्रमश: यह चौथी पोस्‍ट है जो किसी के न रहने या न रहे को याद करने की है। पहले हेमराज भट्ट, फिर पिताजी, संध्‍या गुप्‍ता और अब अदम गोंडवी। 

Saturday, December 10, 2011

प्रारम्‍भ में लौटने की इच्‍छा से भरी संध्‍या गुप्‍ता


''मित्रों, एकाएक मेरा विलगाव आप लोगों को नागवार लग रहा है, किन्‍तु शायद आपको यह पता नहीं कि मैं पिछले कई महीनों से जीवन के लिए मृत्‍यु से जूझ रही हूं। अचानक जीभ में गंभीर संक्रमण हो जाने के कारण यह स्थिति उत्‍पन्‍न हो गई है। जीवन का चिराग जलता रहा तो फिर खिलने-मिलने का क्रम जारी रहेगा। बहरहाल, सबकी खुशियों के लिए प्रार्थना।''

Saturday, December 3, 2011

घड़ी, लाइन बाक्‍स, रामपुरी और बाबूजी



पीएल पटेल 
सेवानिवृति बनाम विदाई 

चाबी वाली अलार्म घड़ी बाबूजी ने रेल्‍वे की नौकरी में आते ही खरीद ली थी। उनकी नौकरी ही कुछ ऐसी ही थी। स्‍टेशन मास्‍टर होने के नाते उन्‍हें कभी रात को बारह बजे, तो कभी सुबह आठ बजे, तो कभी शाम चार बजे डयूटी पर जाना होता था। उनकी डयूटी के ऐसे अटपटे समय के कारण उनके सोने का समय भी ऐसा अटपटा ही था। 80 से लेकर 1992 में सेवानिवृति तक वे रेल्‍वे के परिचालन विभाग में उपखंड नियंत्रक से लेकर मुख्‍य खंड नियंत्रक के पद पर कार्यरत रहे।