तो लीजिए अपनी भी शादी हो गई। छोटी बहन से लेकर दादी तक सब खुश। सबके तरह तरह के अरमान थे हमारी शादी से जुड़े हुए। शादी के सातवें और अंतिम फेरे यानी सातवीं किस्त में कुछ और यादें।
अगर आपने इसके पहले की छह किस्तें नहीं पढ़ीं हों तो यहां उनकी लिंक है-
- शादी के लड्डू- एक
- शादी के लड्डू- दो
- शादी के लड्डू - तीन
- शादी के लड्डू-चार
- शादी के लड्डू - पांच
- शादी के लड्डू – छह
आमतौर पर बारात के लिए बस का इंतजाम किया जाता है। पिताजी रेल्वे में थे, सो उन्हें यह गवारा नहीं था कि भारतीय रेल के होते हुए बस का सहारा लिया जाए। पर सहारा तो लेना पड़ा। क्योंकि हमारी ससुराल यानी सेंधवा तक रेललाइन नहीं थी (आज भी नहीं है)। बारात होशंगाबाद से इटारसी और फिर वहां से खंडवा तक का सफर इटारसी-भुसावल पैसेंजर से करते हुए पहुंची। खंडवा से सेंधवा के सफर के लिए मप्र राज्य परिवहन की बस का उपयोग किया गया। यह यात्रा भी टुकड़ों में हुई। खंडवा से जुलवानिया नामक एक कस्बे तक एक बस और फिर वहां से दूसरी।
जब विवाह करके लौटे तो यह यात्रा और मजेदार रही। सेंधवा से सुबह निकले। सीधी बस थी खंडवा तक के लिए। वहां दोपहर में इटारसी के लिए वही भुसावल-इटारसी पैंसेजर हमारा इंतजार कर रही थी। लेकिन जब बारात शाम को इटारसी पहुंची तो उस समय होशंगाबाद जाने के लिए कोई ट्रेन नहीं थी। चूंकि बहुत से बाराती इटारसी के ही थे सो वे वहीं रह गए। कुछ और अपने-अपने रास्ते निकल लिए। बच गए हम दूल्हा-दुल्हन, रिश्तेदार और मित्र। अब अगर आप रेल्वे वालों को जानते हों तो कल्पना कर सकते हैं कि क्या इंतजाम हुआ होगा। एक मालगाड़ी होशंगाबाद की तरफ जाने के लिए तैयार थी। बस फिर क्या था। पिताजी ने सबको मालगाड़ी के ब्रेकयान यानी गार्ड के केबिन में चढ़ा दिया। हम दूल्हा-दुल्हन गार्ड साहब के केबिन में अंदर बैठे थे और बाकी सब बाहर। गार्ड साहब भी बेचारे होशंगाबाद आने तक बाहर ही खडे रहे। तो इस तरह हम अपनी दुल्हन को कार, बस, नाव या बैलगाड़ी में नहीं मालगाड़ी में लेकर घर पहुंचे। निर्मला जी आज भी इस बात के लिए हमें ताना देती हैं कि ब्याहने तो पहुंच गए, पर एक बस का इंतजाम नहीं किया। अब क्या कहें, बात तो सही है।
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0 राजेश उत्साहीप्रिय राजेश,कहते हैं कि मित्र वह है जो विपदा के समय साथ दे। इसी कारण हर व्यक्ति अपने मित्र के विवाह में अवश्य सम्मिलित होता है। किन्तु तुम्हारा आमंत्रण पाकर भी हम नहीं आ पा रहे हैं। क्षमा करना हमारी पूरी सहानुभूति तुम्हारे साथ है।23,जून 1985 रविवार उज्जैन में विज्ञान प्रशिक्षण शिविर का वह विशेष दिन है जब शिविर का समापन है। क्या विचित्र संयोग है कि प्रशिक्षण शिविर के समापन के साथ ही तुम्हारे एकाकी जीवन का भी समापन हो रहा है।कहते हैं, ‘विवाह वो फूस के लड्डू हैं जो खाय सो पछताय जो न खाय सो पछताय।’ अब तुम्हारा नाम खा के पछताने वालों में शामिल कर लिया गया है। ‘तुलसी गाए बजाए के दियो काठ में पांव,फूले-फूले फिरत हैं काल हमारो ब्याह।’ तुम्हारे विवाह के फैसले पर किसी को क्यों आपत्ति होगी? पूर्व में भी कितनों को समझाया, मगर माना कौन?यह पत्र पाने तक तुम चतुर्भुज हो गए होगे। निर्मला जी को ह्दय से धन्यवाद और बधाई भी। धन्यवाद इसलिए कि राजेश नामक प्राणी की तमाम उपलब्धियों एवं नाकामियों का प्रत्यक्ष साझीदार बनना उन्होंने स्वीकारा है, हिस्सेदारी करने का बीड़ा उठाया है और बधाई नया जीवन प्रारम्भ करने की। (मित्रों को भेजे गए निमंत्रण पत्र में मैंने कुछ इसी तरह की पंक्तियां लिखीं थीं।)दिल्ली दल,होशंगाबादी समूह,एकलव्य परिवार तथा विभिन्न स्थानों से आए सभी साथियों ने तुम्हारा स्नेह आमंत्रण सुना और प्रसन्न हुए। कहते हैं, ‘अपनी फसल लहलहाते देख कोई इतना प्रसन्न नहीं होता, जितना दूसरे की बर्बाद होते देख होता है।’ सभी प्रसन्न हैं कि एक और फंसा।परम्परागत रूप में हमारी कोटि-कोटि बधाईयां। ईश्वर राजेश-निर्मला की इस जोड़ी को सारे जहान की खुशियां नसीब करे।0 हम हैं- विज्ञान प्रशिक्षण शिविर के सभी सदस्य गण(विनोद रायना,अरविन्द गुप्ते,विवेक पारस्कर,रामनारायण स्याग, यतीश कानूनगो,ओमप्रकाश पायक, अनवर जाफरी, चांदनीवाला, कालूराम शर्मा, सुनील शर्मा, प्रेम मनमौजी,प्रेरणा,मनमोहन कपूर,अनीता रामपाल, रेक्स डी रोजारियो,भास्कर काम्बले, बीपी मैथुल,अनिरूद्ध शुक्ला आदि।)
एकलव्य के अनूठे अंगूठे.
ReplyDeleteयह सन्देश मजेदार रहा राजेश भाई !
ReplyDeleteशुभकामनायें !
मित्रों का संदेश तो बहुत ही रोचक था....
ReplyDeleteऔर मालगाड़ी में दुल्हन को ले जानेवाले भी आप इकलौते दूल्हा रहे...पर बस -कार से जरूर अच्छी रही होगी ये यात्रा...वहाँ गार्ड के केबिन वाला एकांत तो नहीं मिलता...:)
यह शुभकामना संदेश तो बहुत ही भाया।
ReplyDeleteकहते हैं कि मित्र वह है जो विपदा के समय साथ दे। इसी कारण हर व्यक्ति अपने मित्र के विवाह में अवश्य सम्मिलित होता है। किन्तु तुम्हारा आमंत्रण पाकर भी हम नहीं आ पा रहे हैं। क्षमा करना हमारी पूरी सहानुभूति तुम्हारे साथ है।
ReplyDeletesahi kaha...mitra hi is wipdaa ka intezaam karte hain....aur sath bhi dete hain....
bhukt bhogi bhogi bechara ek hota hai, maze lene wale hazaaron!!!
rochak smirit...
मजा आ गया जी बारात के कौटने का और आपके मित्रों के संदेश से।
ReplyDeleteशादी की दास्ताँ ... पूरा का पूरा दस्तावेज़ ... राजेश जी एक एक बात सहेज कर राखी है आपने अपने जेहन में ...
ReplyDeleteआपने इतना कुछ उआद भी रखा ... मैं तो सोच रहा था ... शादी तो एक ... (चलो नहीं कहता की दुखद सपना है) ... उसे क्या याद रखना ... :) ....
हा हा हा ... बहुत अच्छा लगा पढना ...
आपकी जबर्दस्त शैली में लिखा यह संस्मरण लाजवाब रहा। सबसे मज़ेदार रहा दोस्तों का संदेश देने का अनूठा अंदाज़ और यह पत्र तो सचमुच लाजवाब है।
ReplyDeleteहमें भी अपने दिन याद आ गए, जब हम उनको लेकर मुज़फ़्फ़रपुर पहुंचे, तो शाम अभी नहीं ढ़ली थी, और मान्यता है कि अंधेरा होने से पहले परिछन नहीं होता। सो समय बिताने के लिए पिता जी हमें स्टेशन ले गए और हमने बाक़ी का समय वेटिंग रूम में गुज़ारा।
लो जी हम भी शामिल हो लिए शादी में.हा हा हा
ReplyDeleteशरारती दोस्त अब कहाँ है.सबके सब बली के बकरे तो बन ही चुके होंगे.मैं नही कह रही ये शब्द गोस्वामीजी के हैं 'बलि का बकरा'
पर इस रिश्ते से बढ़ कर प्यारा रिश्ता और कोई नही. लंबी उम्र हो आप दोनों के प्यार की.
:) :) :)
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 24 अगस्त 2019 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!