मैं खुश हूं कि भारत-पाक सेमीफायनल में अच्छी क्रिकेट देखने को मिली। मैच एकतरफा नहीं था। समय-समय पर पलड़ा दोनों तरफ झुक रहा था।
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खुश हूं कि भारतीय खिलाड़ी दबाव में नहीं आए। हर खिलाड़ी अपनी क्षमता के अनुकूल खेलता दिखा। खुश हूं कि गलतियां होने पर भी उन्होंने न तो एक-दूसरे पर गुस्सा किया और न अपने चेहरे पर तनाव नहीं आने दिया।
*मैं खुश हूं, इसलिए नहीं कि पाक हार गया, इसलिए कि उन्होंने बहुत अच्छे खेल का प्रदर्शन किया। खुश हूं कि पाक टीम की गेंदबाजी बहुत अच्छी थी।
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मैं खुश हूं, इसलिए नहीं कि सचिन को चार जीवनदान मिले, इसलिए कि इसके बावजूद उन्होंने उन मौकों को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। खुश हूं कि उनके 85 रन कल के स्कोर में बहुत महत्व रखते हैं। पर मैं इसलिए भी खुश हूं कि उनका शतक नहीं बना। क्योंकि चार जीवनदानों से भरा सौवां अन्तर्राष्ट्रीय शतक बनाकर शायद सचिन भी खुश नहीं होते।
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मैं खुश हूं कि सचिन को मैन आफ दी मैच दिया गया। पर अधिक खुश होता कि यह सम्मान पाक के वहाब रियाज को दिया जाता। इतने महत्वपूर्ण मैच में पांच विकेट लेना किसी भी मान से कम नहीं है। मेरे लिए तो मैन आफ दी मैच वहाब ही है, जिसकी बाढ़ में भारत की टीम बह ही गई थी।
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मैं खुश हूं कि हमारी नकारा लग रही गेंदबाजी ने इस मैच में अपना खोया आत्मविश्वास और सम्मान वापस पाया। मैं खुश इसलिए भी हूं कि सातवें आसमान पर टहल रहे युवराज ने यह भी देखा कि पलक झपकते ही वे जमीन पर भी आ सकते हैं।
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मैं खुश हूं कि कुछ न्यूज चैनलों की तमाम कोशिशों के बाद सब कुछ शांति से बीत गया।
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मैं खुश हूं कि 1983 की विजेता टीम के कप्तान कपिलदेव ने मैच के बाद अपनी प्रतिक्रिया में कुछ इस तरह कहा (उसी चैनल पर ,जो पिछले एक हफ्ते से गंद मचाए हुए था ) कि, ‘हमें पाक की गेंदबाजी की प्रशंसा करनी चाहिए और वे इसके हकदार हैं। हमें अपने पड़ोसी मित्र से कहना चाहिए कि आप खुश नहीं होंगे क्योंकि आप नहीं जीते। क्योंकि जीतेगा तो कोई एक ही। लेकिन आपको खुश होना चाहिए कि आपने अच्छी क्रिकेट खेली। यहां जीत क्रिकेट की हुई है।’
इसमें तो कोई शक ही नहीं है।
इसमें तो कोई शक ही नहीं है।
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सचमुच मैं खुश हूं कि हम अच्छा खेलकर सेमीफायनल में पहुंचे थे और अच्छा खेलकर ही फायनल में पहुंचे हैं। मैं खुश होऊंगा कि हम फायनल में भी अच्छा खेलें।
0 राजेश उत्साही
आप की बात से सहमत हूँ | किन्तु मैन ऑफ द मैच उसे दिया जाता है जो जीत में अहम् भूमिका निभाए जो सचिन ने किया रियाज सचिन को आउट नहीं कर सके, तकनीकी रूप से तो, जो टीम को जीत की और ले कर गए | इसमे कोई सक नहीं है की रियाज ने अच्छी गेंदबाजी की |
ReplyDeleteमैं भी खुश हूँ भाई जी !शुभकामनायें !!
ReplyDelete@ अंशु जी, मैं भी आपकी बात से सहमत हूं। पर पहले भी हुआ है जब हारने वाली टीम के खिलाड़ी को मैन ऑफ द मैच आंका गया है। और कभी-कभी परम्पराएं टूटनी भी चाहिए। रियाज भले ही सचिन को आउट नहीं कर सकें हों, लेकिन उन्होंने भारतीय बैंटिग की रीढ़ तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। अच्छी बात यह है कि हमारी गेंदबाजी भी कल चल गई, वरना स्कोर तो छोटा था।
ReplyDeleteaapki her khushi ke sachche arth hain
ReplyDeleteमैं खुश हूँ के मैंने ये मैच जान बूझ कर टी.वी. या इन्टरनेट पर नहीं देखा और अपने आठ घंटों का टेशन कम कर लिया...
ReplyDeleteनीरज
@ नीरज जी,
ReplyDeleteसचमुच ये आपने अच्छा ही किया। हमारे कार्यालय के कांन्फ्रेस रूम में बडे़ स्क्रीन पर मैच देखने की व्यवस्था की गई थी। ताकि जो लोग देखना चाहें वे वहां बैठकर अपना काम भी करें और मैच भी देख लें। मैच में इतनी टेंसन थीं कि हमारी एक सहयोगी वहां से यह कहते हुए उठकर चलीं गईं कि वे इतना तनाव नहीं झेल सकतीं।
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नीरज जी शनिवार के टेंसन से बचने का इंतजाम भी कर लीजिए। वह तो इससे भी ज्यादा होने वाला है।
ख़ुशी की तो बात ही है...पर सबसे ज्यादा ख़ुशी इस बात पे हुई कि मैच के दौरान बड़ा ही सौहार्दपूर्ण माहौल था....कोई बहस नहीं...कोई अपशब्द नहीं बल्कि एक बार....सहवाग...मिस्बाह और युनुस खान को किसी बात पे एक साथ मुस्कुराते हुए भी देखा गया.
ReplyDeleteपर मेरे छोटे बेटे से अफरीदी के आँखों के आँसू नहीं देखे जा रहे थे...वो खीझ रहा था...ये टी.वी. कैमरा बार -बार उसकी आँखों पर ही क्यूँ फोकस कर रहे हैं...
@रश्मि जी , आप सही कह रही हैं। और बेटे की खीझ एकदम जायज है। आप किसी दुखी होते इंसान को और अधिक दुखी क्यों करना चाहते हैं। अफरीदी भी आखिर कैमरे से तो बच नहीं सकते थे,इसलिए बार बार अपनी हथेली चेहरे पर रख ले रहे थे। हमें भूलना नहीं चाहिए कि हम और हमारे खिलाड़ी भी ऐसी स्थिति में आते हैं। वे तो सामने बैठने की हिम्मत भी नहीं करते। कम से कम अफरीदी ने इतना साहस तो दिखाया।
ReplyDeleteनीरज जी ने मेल से यह टिप्पणी भेजी है।
ReplyDelete*
एक बार तो टेशन से बच गया लेकिन ज़िन्दगी में टेंशन से बचना नामुमकिन है...कहीं न कहीं से कोई न कोई टेंशन दे ही जाएगा...जैसे
अरे आप मैच नहीं देख रहे ?
इंडिया जीत रही है और आप मैच नहीं देख रहे? कसाब के रिश्तेदार हैं क्या?
अच्छा है जो आप मैच नहीं देख रहे इंडिया का तो बैंड बजने वाला है..?
वो:हो गया न बंटाधार...मैं:किसका? वो: अरे आपने मैच नहीं देखा?
सोच रहा हूँ इस बार क्या करूँ....अब आठ घंटे घर में बंद हो कर तो नहीं न बैठ सकता...बंद भी हो जाऊं लेकिन बाहर और आस पडौस से आते शोर से जो टेंशन होगा उस से बेहतर है के मैं मैच शांति से सबके साथ देख ही डालूं...इंडिया जीती तो हुर्रे करेंगे और नहीं जीत पायी तो पुरानी परंपरा निभाते हुए एक आध प्लयेर की ऐसी की तैसी करेंगे...:-)
यह एक खुशनुमा प्रस्तुति ...आभार ।
ReplyDeleteबढि़या विश्लेषण. (मोगैम्बो खुश हुआ माफिक.)
ReplyDeleteक्रिकेट पर एक समझदारी भरी बात . वरना पूरा मीडिया तो इसे युद्ध ठहराने में जुटा था/है .
ReplyDeleteमैं खुश हूँ क्योंकि आज आपकी एक गलती पकड़ी है:)
ReplyDeleteपैरा - प्रथम
पंक्ति - अंतिम
शब्द - प्रथम
बुरा मत मानियेगा राजेश भाई, हमारी होली अब तक चल रही है:)) लेकिन दिग्गजों की गलती पकड़ने में मजा आता है।
वैसे तो मैंने भी मैच को लेकर कुछ मजाक किया है अपने मैच में...
ReplyDeleteलेकिन मैं बहुत खुश हूँ की कल हम मैच जीते :) और क्रिकेट का एक अच्छा खेल हुआ कल...
main khush hoon ki aapane jo samksha kee vah bahut hi tarksangat aur santulit hai.
ReplyDeleteआप खुश है तो यह ख़ुशी की बात है मगर सारा हिदुस्तान आज खुश है यह सबसे बड़ी ख़ुशी है |
ReplyDeleteमैं खुश हूं कि आपने इतना अच्छा लिखा.
ReplyDeleteमैं खुश हूं कि मुझे इतना अच्छा पढ़ने मिला.
मैं खुश हूं कि मैं इस माध्यम से टीम भारत को फायनल में जीतने की शुभकामनाएँ दे रहा हूँ.
वहाब रियाज ने बहुत अच्छा खेल दिखाया। खुश हम भी हैं।
ReplyDelete@ शुक्रिया संजय भाई। कुछ शब्द दिमाग में इस तरह जम जाते हैं कि हम उनको लिखते या बोलते समय गलत ही बोलते रहते हैं। और समझते हैं कि वह सही है। हर बार मैं अपने लिखे को पोस्ट करने से पहले एक-दो बार पढ़ता अवश्य हूं। बल्कि पोस्ट होने के बाद भी देखता हूं और कहीं कोई गलती दिखाई देती है या बदलाव की जरूरत लगती है तो वह मैं करता हूं। सच कहूं तो इस बार ऐसा करते हुए मैं इस शब्द पर अटका था। मुझे भी यह कुछ अटपटा लगा था। पर दिमाग की बत्ती नहीं जली।
ReplyDeleteआपने ध्यान खींचा तो पंद्रह मिनट तक माथापच्ची करने के बाद पता चला कि शब्द 'पड़ला' नहीं 'पलड़ा' है।
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रही बात बुरा मानने की तो सच बात का तो हम कभी बुरा मानते ही नहीं ।
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आपका सदा स्वागत है।
फ़ाइनल भी हमारा है…………मै भी खुश हूँ ।
ReplyDeleteसबलोग खुश हैं....
ReplyDeleteमैं खुश हूँ कि आप सब खुश हैं...और खुश हूँ कि हमेशा ऐसे ही खुश रहेंगे. इस जीत से बेहद ख़ुशी हुई है अब इस खुशी की जीत फ़ाइनल में होगी....आमीन !!
ReplyDeleteदेर से आया इसलिए कहूंगा कि सचिन के 85 पर आउट होने मैं भी खुश था, क्यों जब उन्होंने शतक बनाया, इस टूर्नामेंट में, भारत वह मैच नहीं जीत सका।
ReplyDeleteAapke sundar vishleshan se hamen bhi bahut khushi huyee.. aaj to sabhi behad khushi hai ki world cup jeet gaye hain..
ReplyDeleteaapko bhi prastuti ke liye aur world cup jeet kee dohri khushi kee badhai
अब तो आप और भी खुश होंगें ।
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