पिछले दिनों बंगलौर में एक और ब्लागर से मुलाकात हुई। वे हैं सुधा भार्गव ‘दृष्टा’। असल में उनसे मिलवाने का श्रेय जाता है जनगाथा और कथायात्रा के बलराम अग्रवाल जी को। बलराम जी से मुलाकात पिछले अक्टूबर में हुई थी। वे बंगलौर यात्रा पर थे। उन्हें मेरा सूत्र सहज साहित्य के रामेश्वर काम्बोज जी ने दिया था।
बलराम जी ने मुझे सुधा जी का फोन नम्बर दिया था और कहा था कभी बात कर लूं। बात आई गई होगी। फिर एक दिन बलराम जी का मैसेज आया कि सुधा जी के पति नहीं रहे। मैंने सोचा अब तो फोन कर ही लूं। पर फिर एक संकोच में रह गया कि मैं उन्हें जानता नहीं हूं और वे भी मुझे नहीं जानतीं। एक-दो दिन तो इसी दुविधा में उलझा रहा और फिर भूल गया। 3 मार्च की शाम को सुधा जी का ही फोन आ गया, मुझे खोजते हुए। बलराम जी ने मेरा नम्बर उन्हें भी दिया था। मुझे शर्मिन्दा तो होना ही चाहिए ,सो हुआ और सबसे पहले उनसे माफी मांगी। भार्गव जी के नहीं रहने पर अफसोस जताया।
मैंने उनसे कहा, ‘मुझे आपको फोन करना चाहिए था।’
उन्होंने पलटकर तुरंत पूछा, ‘तो फिर किया क्यों नहीं?’
‘भूल गया।’ मैंने सरलता से जवाब दिया।
उनका प्रत्युत्तर भी उतना ही सरल था, ‘चलो कोई बात नहीं। मैं आपसे मिलना चाहती हूं।’
मैंने कहा, 'मैं शनिवार को आता हूं। उस दिन मेरी छुट्टी होती है।’
वे बोली, ‘शनिवार को तो मैं लगभग महीने भर के लिए दिल्ली जा रही हूं।’
मैंने कहा, ‘तो मैं शुक्रवार को ही आ जाता हूं।’
*
सुधा जी सरजापुर रोड पर एक बहुमंजिली आवासीय परिसर में रहती हैं। 12 फरवरी की सुबह-सुबह भार्गव जी चले गए। पिछले कुछ सालों से वे पार्किन्सन से पीडि़त थे। सुधा जी बताती हैं कि वे चिकित्सा के लिए ही दिल्ली से बंगलौर शिफ्ट हुए थे। पर वे इस बीमारी से उबर नहीं पाए। सुधा जी उनकी देखभाल करती थीं। भार्गव जी नहीं रहे, पर सुधा जी इस फ्लैट में ही रहना चाहती हैं। वहीं पास के एक अन्य फ्लैट में उनका छोटा बेटा और बहू रहते हैं। वे उनकी हर जरूरत का ख्याल रखते हैं। सुबह-शाम साथ ही होते हैं। उनकी बहू ने मेरे लिए भी नाश्ते में ढोकले और समोसे का
इंतजाम किया था। चाय सुधाजी ने खुद बनाकर पिलाई और एक बार नहीं दो बार।
*
मैं उनके साथ लगभग दो घंटे रहा। इन दो घंटों की मुलाकात के बाद मुझे महसूस हुआ कि मैं उनसे पहले ही क्यों नहीं मिला। साहित्य लेखन की उनकी सुलझी हुई समझ जानकर मुझे बहुत अच्छा लगा। वे कम लिखती हैं, लेकिन ऐसा लिखती हैं जिससे पहले लेखक के तौर पर खुद संतुष्ट हों। किसी भी रचना को लिखने में वे जल्दबाजी नहीं करना चाहतीं। भार्गव जी का निधन हुए बहुत दिन नहीं हुए हैं। पर सुधा जी ने अपने आपको आगे की जिन्दगी के लिए जिस तरह तैयार कर लिया है, वह देखकर उनकी जीवटता का आभास होता है। बातों बातों में ही उन्होंने बताया कि 11 फरवरी की रात को भार्गव जी कुछ असहज महसूस कर रहे थे। उनका बड़ा बेटा लंदन में है,सो स्काइप पर उन्होंने बेटे को उनकी हालत से अवगत कराया। फिर भार्गव जी को नींद आ गई। सुधा जी का मन नहीं माना तो वे उनके पास ही लैपटॉप लेकर बैठ गईं। वहीं बैठे-बैठे ही उन्होंने बालकुंज ब्लाग बना डाला। सुबह चार बजे तक वे जागती रहीं।
*
जीवन के सातवें दशक को जी रहीं सुधा जी कलकत्ता के बिरला हाईस्कूल में 22 साल तक हिन्दी की अध्यापिका रही हैं। अपने विद्यार्थी जीवन से ही उन्हें कविता करने का शौक था। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताएं,कहानी,मुक्तक प्रकाशित होते रहें हैं। उनका एक कविता संग्रह इन दिनों प्रेस में है। 2002 में उनका पहला कविता संग्रह ‘रोशनी की तलाश में’ आया था। वह उन्होंने मुझे सप्रेम भेंट किया। उनके तीन ब्लाग हैं- बचपन के गलियारे, तूलिका सदन और बालकुंज । बालकुंज पर वे बच्चों के लिए कहानियां लिखना चाहती हैं। वे चाहती हैं कि कहानियों पर बच्चे प्रतिक्रिया दें और बताएं कि उन्हें कहानी कैसी लगी। वे कैसी कहानी पढ़ना चाहते हैं। अगर आपके घर में बाल पाठक हैं तो उन्हें इस ब्लाग से परिचित कराएं और प्रतिक्रिया देने के लिए कहें। जिन्हें भी बचपन की यादों में विचरना अब भी अच्छा लगता हो, उन्हें सुधा जी का ब्लाग बचपन के गलियारे जरूर देखना चाहिए।
*
आठ मार्च को उनका जन्मदिन है और संयोग से महिला दिवस भी। इस अवसर पर उनके संग्रह से उनकी तीन कविताएं प्रस्तुत हैं जो उनके नारी मन की सशक्त अभिव्यक्ति हैं।
एक छतरी
घर से निकली बाहर
लगे मंडराने
इर्द-गिर्द मेरे
बादल काले।
गरज-गरज कर चाहा
अलापना
अपना ही राग उन्होंने
और कर दिया मुझे
उपेक्षित,गूंगा और अशक्त।
तभी
नजर आई एक छतरी
मेघों के आगे
लगती थी वह
बौनी।
पर
मेरे लिए वह थी
आत्मविश्वास की एक छत
जिसके नीचे खड़े होकर
मैं हो गई सशक्त।
*
पराश्रित
मुझसे मांगी रोशनी
मैं बन गई सूर्य
मुझसे मांगी चांदनी
मैं बन गई चंद्र
मुझसे मांगा अमृत
मैं बन गई वर्षा।
पर
जब मैंने
उनका नहीं
अपना ही अपने लिए
मांगा कुछ समय
तो भूचाल आ गया
और मैं
अचला
उनकी मजबूरी पर
हंसने लगी
मुझे आश्रिता समझने वाले
खुद पराश्रित थे।
*
नीलांबर
तुम आओ न आओ
मैंने शुरू कर दिया है
चलना,
नहीं देखूंगी पीछे मुड़कर
होती है टीस,
मगर कोहरे के बाद ही तो
छंटते हैं बादल
और साफ होता है
नीलांबर।
*
सुधा जी जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक हो।
*
0 राजेश उत्साही
लगता है सुधा जी बहुत स्नेहमयी हैं ! बहुत अच्छा लगा जानकार राजेश भाई ! शुभकामनायें !!
ReplyDeleteसहज आत्मविश्वास भरी कविताएं.
ReplyDeleteऔर मैं
ReplyDeleteअचला
उनकी मजबूरी पर
हंसने लगी
मुझे आश्रिता समझने वाले
खुद पराश्रित थे।
कडवी सच्चाई को सामने लाती रचना के लिये आभार ।
राजेश जी आप की तरह सुधा जी जैसी विदुषी महिला से मिलना उनके साथ बैठ कर चर्चा करना और साथ ढोकले समोसे चाय का आनंद उठाना किस्मत वालों को ही नसीब होता है...मुझे आपकी किस्मत पर रश्क है...
ReplyDeleteउन्हें जनम दिवस की ढेरों शुभ कामनाएं...दुआ करता हूँ के उनकी लेखनी यूँ ही अबाध गति से चलती रहे. उनकी रचानों पर क्या टिपण्णी करूँ...अद्भुत हैं...
नीरज
रचनाकार और रचनाओं से मिलकर ओजस्विता का अनुभव हुआ
ReplyDeletesudha ji ko maine padha hai , unki lekhni se to main prabhawit hun hi , unka vyaktitv , unki vinamrta ne samman badha diya
ReplyDeleteachchha laga sudha jee ko padhna..!
ReplyDeleteपर
ReplyDeleteजब मैंने
उनका नहीं
अपना ही अपने लिए
मांगा कुछ समय
तो भूचाल आ गया
और मैं
अचला
उनकी मजबूरी पर
हंसने लगी
मुझे आश्रिता समझने वाले
खुद पराश्रित थे ...
इतनी गहरी सूझबूझ रखने वाली महिला सच में कितनी जीवट होंगी ... सुधा जी की रचनाओं ने उनका व्यक्तित्व बखान कर दिया है ....
उनको जनम दिन बहुत बहुत मुबारक ....
राजेश भाई, आपने सुधा जी पर यह पोस्ट लिखकर बहुत अच्छा कार्य किया। मेरे जैसे अब तक सुधाजी से अनभिज्ञ रहे लोगों को सुधा जी के निश्च्छ्ल, स्नेहमयी स्वभाव को ही नहीं, उनके भीतर के एक बेहद संवेदनशील कवि को भी जानने का अवसर मिलेगा। आप द्वारा प्रस्तुत उनकी कविताएं अद्भुत हैं। उनको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteसुधा जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteउनकी कविताएँ, नारी के अंतर्मन की भावनाओं को बड़ी कुशलता से व्यक्त करती हैं.
उनसे मिलवाने का आभार
सुधा जी से परिचय करने के लिए शुक्रिया. उन्हें बधाई उनके ब्लॉग पर ही देना उचित समझा.
ReplyDeleteपरिचय पा अच्छा लगा। बहुत अच्छी रचनायें।
ReplyDeleteसुधाजी का आज जन्मदिन है लेकिन उनका मोबाइल नम्बर पास न होने से उन्हें बधाई न पहुँचा पाया। आपने यह पोस्ट लिखकर मुझपर भी उपकार किया। मैं इस माध्यम से उन्हें जन्मदिन की बधाई समय पर दे पा रहा हूँ। कोई दो राय नहीं कि वे जीवट वाली महिला हैं। उनकी कविताओं में भी जीवटता है। लेकिन 'बचपन के गलियारे' पढ़कर पाठक को लगता है कि तितलियों के पीछे भाग रही फ्राकवाली लड़की अब भी उनके भीतर जिन्दा है। बचपन को बचाए रख पाना हर व्यक्ति के वश में नहीं है। उनके इस कौशल का नोटिस बाल-साहित्य से जुड़े आलोचकों को अवश्य लेना चाहिए।
ReplyDeleteसुधा जी को जन्मदिन की बधाई और शुभकामनाएँ!! उनका परिचय पढकर उनके संघर्ष और उनके जुझारू व्यक्तित्व का परिचय मिला. ऐसा प्रेरणादाय्क व्यक्तित्व नमन योग्य है!
ReplyDeleteउतनी ही प्रेरणादायी कविताएँ हैं आत्मविश्वास से परिपूर्ण!!
सुधा जी को बधाई उनके ब्लॉग पर दे दी है, आपका धन्यवाद कि ऐसी शख्सियत से परिचय करवाया। बच्चों के लिये एक अच्छा ब्लॉग सुझाया आपने, बालकों की तरफ़ से भी धन्यवाद:)
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा सुधा जी के बारे में जान कर.
ReplyDeleteपर
जब मैंने
उनका नहीं
अपना ही अपने लिए
मांगा कुछ समय
तो भूचाल आ गया
सुन्दर कविता है. सुधा जी की जीवटता हम सबके लिये अनुकरणीय है.
सुधा जी से मिल कर अच्छा लगा!
ReplyDelete--
जन्म दिन पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
--
रचनाएँ बहुत सुन्दर है!
stri divas par janmi sudha ji ko janmdin ki shubhkaamnayen....jivan bhar dete rahne ka dharm nibhane wali stri jab apne liye do pal maangti hai to bhuchaal aa jata hai...behad udvelit karne wali baat...par sach...chhoti bedhak kavitayen,shukriya
ReplyDeleteyadvendra
स्वावलम्बी सुधा जी को जन्मदिन की बधाईयां, राजेश जी आपने परिचय करवाया आपका धन्यवाद।
ReplyDeleteसुधा जी से परिचय अच्छा लगा ...
ReplyDeletekavitayen achchi aur sahaj lagin...blog jagat ab virtual se real hota ja raha hai...
ReplyDeleteसुधा जी का परिचय पा कर अच्छा लगा. ऐसे व्यक्तित्व किसी पर भी गहरी छाप छोड़ जाते हैं. आपका आभार.
ReplyDeleteसुधा जी से परिचय अच्छा लगा.उनके अन्दर एक सधी और सुलझी हुई कवयित्री है ये उनकी कविताओं से साफ़ ज़ाहिर है. उन्हें बधाई उनकी बेहतरीन तीनों कविताओं के लिए और उनके जन्म दिन के लिए भी.
ReplyDeleteसुधाजी वाकई बेहतर लिखती है.
ReplyDeleteउन्हें शुभकामनाएं
सुधा जी से परिचय कराने के लिए आभार।
ReplyDeleteजिन हालातों से वो अभी-अभी गुजरी हैं, जिस महान कष्ट की अनुभूति उन्हे है उसे देखकर जन्म दिन की बधाई देने की इच्छा नहीं हो रही है।
इस हालत में भी उनका आत्मविश्वास देखकर संवेदना प्रकट करने का साहस भी नहीं हो रहा है।
कविता संग्रह से आपके द्वारा कविताओं का चयन भी लाज़वाब है।
पहली कविता जहां जीवन साथी के संबल की महत्ता को बताती है वहीं दूसरी कविता जीवन संघर्ष में हाथ आई अनुभूतियों को बेबाकी से बयान करती है। तीसरी और अंतिम कविता तो है ही...एकला चलो रे..की गूँज लिये।
इस तरह इन तीनों कविताओं के माध्यम से एक साहित्कार को सफलता पूर्वक प्रस्तुत किया है आपने।
.. आभार।
सुधा जी को जानना व पढ़ना अच्छा लगा...
ReplyDeleteजन्म दिन की उनको बहुत-बहुत बधाई...
मैं आपका ब्लॉग फॉलो करना चाह रही थी पर हो नहीं पा रहा...पता नहीं क्यो....
ReplyDeleteसुधा जी का विस्तार से परिचय करवाने के लिए आभार राजेश जी..... उनकी रचनाएँ बहुत पसंद हैं मुझे .... उनके ब्लॉग बाल कुञ्ज पर पढ़ी हैं.........
ReplyDeleteसुधा जी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteनारी मन की भावनाओं को बेहद संजीदगी से उकेरा है…………तीनो रचनायें दिल को छूती हैं।
सुधा जी से मिलवाने के लिये आपका आभार्।
तीनो ब्लोग फ़ोलो कर लिये है अब आराम से पढती रहूँगी।
ReplyDeleteसुधा जी को उनके जन्मदिन पर ढेर सारी शुभकामनायें.. राजेश जी ! आपने सुधा जी की बहुत सुन्दर रचना शेयर की है ... आपका आभार
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट और एक दुसरी पोस्ट चर्चामंच की शोभा को बढ़ा रहें है.. आप भी मंच मे अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करेंगें ! सादर
सुधा जी के परिचय के लिए आभार ...निश्चित ही वे जीवट वाली महिला हैं!
ReplyDeleteसुधा जी से मिल कर अच्छा लगा!
ReplyDeleteआपने सुधा जी की बहुत सुन्दर रचना शेयर की है ... आपका आभार
आदरणीय उत्साही जी! आपका सुधा जी के व्यक्तित्व और साहित्य से परिचय करना बहुत अच्छा लगा. सुधा जी अकेले फ्लैट में रहती हैं... अकेले रहना सच में बहुत हिम्मत की बात है.... .....कविता की ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी
ReplyDeleteतुम आओ न आओ
मैंने शुरू कर दिया है
चलना,
नहीं देखूंगी पीछे मुड़कर
होती है टीस,
मगर कोहरे के बाद ही तो
छंटते हैं बादल
और साफ होता है
नीलांबर।
.सादर
होली पर आपको सपरिवार शुभकामनायें
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteफ़ागुनी कामना कहाँ है राजेश भाई? होली पर कई बार मूर्ख बन गये हम तो:))
ReplyDeleteसुधाजी जैसी प्रेरक व्यक्तित्व के बारे में जानकर , पढ़कर अच्छा लगा. उन्हें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDelete4मार्च की संध्या को मैं राजेश जी से कुछ देर को ही मिली। उस मुलाकात को बड़ी सहजता से सरल शब्दों में उन्होंने अपनी गुल्लक में डाल दिया । फलस्वरूप साहित्य जगत की अनेक हस्तियों के सम्पर्क में आई। ढेर सी शुभकामनायें मिलीं।इसके लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteयादों,वादों,संवादों की यह गुल्लक प्रशंसनीय है जो दो अजनबियों को मिलाती है।
सुधा भार्गव
yh sahityik privesh lgbhg smapt pray hi hai pr aap ne is sahityik sauhard ko punr jivn de kr ek adbhut kary kiya hai sudha ji vastv me bhut hi shridya hain ve sahity ko kevl likhti nhi hain apitu jiti bhi hain aise sahity kar dhoondhne se bhi nhi milte pr sudha ji hmare nikt hain mera un se kafi smy se prichy hai maine un me hr bar koi nai visheshta dekhi hai snkt v dukh ke smy me bhi ve apni sadhuta nhi bhoolti
ReplyDeletemain aap ko sadhuvad deta honn kripya swikar kren
dhnyvad