Sunday, February 13, 2011

प्रेम


प्रेम
समय की टहनी
पर खिला गुलाब है
भर सको
तो भर लो
आंखों में उसके रंग
फेफड़ों में सुगंध
झड़ जाएंगी
पखुंडियां प्रेम की।

प्रेम
जल है
बहती नदी का
अंजुरी भर
धोओ अपनी आंखें
अपना चेहरा और आत्‍मा भी
प्रेम पवित्र करता है ।

प्रेम
दरअसल
व्‍यक्‍त करने की नहीं
महसूसने की चीज है ।

0 राजेश उत्‍साही

14 comments:

  1. pyaar wo shabd hai, jise sunte hi basant utar aata hai mann mein aur basant chehre per khilta hai , bina kahe bahut kuch kah jata hai....

    ReplyDelete
  2. आज के समय में तो प्रेम को सिर्फ़ अभिव्यक्त नहीं, बल्कि पब्लिकली और जोर जोर से अभिव्यक्त किया जाता है। प्यार अंधा तो पहले से ही था, शायद अब बहरा भी हो चुका है:)

    ReplyDelete
  3. महसूसियत भरी अभिव्‍यक्ति.

    ReplyDelete
  4. शब्द नहीं, अनुभव बोलेंगे।

    ReplyDelete
  5. pothi padh-padh jag muaa pandit bhaya n kaoy
    dhai aakhar prem ke padhe so pandit hoy
    prem atal amit hota hai . jo mit gaya vo prem nahi . aapko v.d. mubarq . aur ve sab jo aapse ya aaap jinse prem karte hain

    ReplyDelete
  6. यही सच है…………प्रेम दिवस की शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  7. प्रेम
    समय की टहनी
    पर खिला गुलाब है
    भर सको
    तो भर लो
    आंखों में उसके रंग
    फेफड़ों में सुगंध
    झड़ जाएंगी
    पखुंडियां प्रेम की।

    .....बेहतरीन।

    ReplyDelete
  8. अच्‍छी तरह से व्‍यक्‍त हुई है आपकी महसूसियत.

    ReplyDelete
  9. सिर्फ एहसास है ये, रुह से मेहसूस होता है.
    सुन्दर एहसास से भीगी कविता .

    ReplyDelete
  10. एक एहसास और उसको रूह से महसूस करने की परिभाषा बदलती जा रही है इन दिनों.. ऐसे में आपकी यह परिभाषा एक मोहक सुंगंध के समान है!!

    ReplyDelete
  11. सचमुच प्रेम समय के टहनी पर खिला गुलाब है... महसूस करने की चीज़ है... सुन्दर कविता.. भीतर कहीं बस गई..

    ReplyDelete
  12. प्रेम
    दरअसल
    व्‍यक्‍त करने की नहीं
    महसूसने की वस्‍तु है ।
    ....सटीक बात..... प्रेम को बहुत ही सुन्दर सुघड़ तरीके से आपने परिभाषित किया है... हार्दिक शुभकामना

    ReplyDelete

जनाब गुल्‍लक में कुछ शब्‍द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...