9 दिसम्बर को रघुवीर सहाय जी का जन्मदिन था। और आज यानी 30 तारीख को उनका निधन दिवस है। उनकी तीन कविताएं कविता कोश के सौजन्य से यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। उनकी कविताएं हमारे समय को परिभाषित करती हैं।
अधिनायक
राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चंवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है।
पूरब-पश्चिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा ,उनके
तमगे कौन लगाता है।
कौन-कौन है वह जन-गण-मन
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है।
आने वाला खतरा
इस लज्जित और पराजित युग में
कहीं से ले आओ वह दिमाग़
जो ख़ुशामद आदतन नहीं करता
कहीं से ले आओ निर्धनता
जो अपने बदले में कुछ नहीं माँगती
और उसे एक बार आँख से आँख मिलाने दो
जल्दी कर डालो कि फलने फूलने वाले हैं लोग
औरतें पिएँगी आदमी खाएँगे
एक दिन इसी तरह आएगा
कि किसी की कोई राय न रह जाएगी
क्रोध होगा पर विरोध न होगा
अर्जियों के सिवाय
खतरा होगा खतरे की घंटी होगी
और उसे बादशाह बजाएगा।
0 रघुवीर सहाय
अधिनायक
राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।
मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चंवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है।
पूरब-पश्चिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा ,उनके
तमगे कौन लगाता है।
कौन-कौन है वह जन-गण-मन
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है।
हँसो हँसो जल्दी हँसो
हँसो तुम पर निगाह रखी जा रही जा रही है
हँसो अपने पर न हँसना क्योंकि उसकी कड़वाहट पकड़ ली जाएगी
और तुम मारे जाओगे
ऐसे हँसो कि बहुत खुश न मालूम हो
वरना शक होगा कि यह शख़्स शर्म में शामिल नहीं
और मारे जाओगे
हँसते हँसते किसी को जानने मत दो किस पर हँसते हो
सब को मानने दो कि तुम सब की तरह परास्त होकर
एक अपनापे की हँसी हँसते हो
जैसे सब हँसते हैं बोलने के बजाए
जितनी देर ऊँचा गोल गुंबद गूँजता रहे, उतनी देर
तुम बोल सकते हो अपने से
गूँज थमते थमते फिर हँसना
क्योंकि तुम चुप मिले तो प्रतिवाद के जुर्म में फँसे
अंत में हँसे तो तुम पर सब हँसेंगे और तुम बच जाओगे
हँसो पर चुटकलों से बचो
उनमें शब्द हैं
कहीं उनमें अर्थ न हो जो किसी ने सौ साल साल पहले दिए हों
बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हँसो
ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे
और ऐसे मौकों पर हँसो
जो कि अनिवार्य हों
जैसे ग़रीब पर किसी ताक़तवर की मार
जहाँ कोई कुछ कर नहीं सकता
उस ग़रीब के सिवाय
और वह भी अकसर हँसता है
हँसो हँसो जल्दी हँसो
इसके पहले कि वह चले जाएँ
उनसे हाथ मिलाते हुए
नज़रें नीची किए
उसको याद दिलाते हुए हँसो
कि तुम कल भी हँसे थे !
हँसो अपने पर न हँसना क्योंकि उसकी कड़वाहट पकड़ ली जाएगी
और तुम मारे जाओगे
ऐसे हँसो कि बहुत खुश न मालूम हो
वरना शक होगा कि यह शख़्स शर्म में शामिल नहीं
और मारे जाओगे
हँसते हँसते किसी को जानने मत दो किस पर हँसते हो
सब को मानने दो कि तुम सब की तरह परास्त होकर
एक अपनापे की हँसी हँसते हो
जैसे सब हँसते हैं बोलने के बजाए
जितनी देर ऊँचा गोल गुंबद गूँजता रहे, उतनी देर
तुम बोल सकते हो अपने से
गूँज थमते थमते फिर हँसना
क्योंकि तुम चुप मिले तो प्रतिवाद के जुर्म में फँसे
अंत में हँसे तो तुम पर सब हँसेंगे और तुम बच जाओगे
हँसो पर चुटकलों से बचो
उनमें शब्द हैं
कहीं उनमें अर्थ न हो जो किसी ने सौ साल साल पहले दिए हों
बेहतर है कि जब कोई बात करो तब हँसो
ताकि किसी बात का कोई मतलब न रहे
और ऐसे मौकों पर हँसो
जो कि अनिवार्य हों
जैसे ग़रीब पर किसी ताक़तवर की मार
जहाँ कोई कुछ कर नहीं सकता
उस ग़रीब के सिवाय
और वह भी अकसर हँसता है
हँसो हँसो जल्दी हँसो
इसके पहले कि वह चले जाएँ
उनसे हाथ मिलाते हुए
नज़रें नीची किए
उसको याद दिलाते हुए हँसो
कि तुम कल भी हँसे थे !
आने वाला खतरा
इस लज्जित और पराजित युग में
कहीं से ले आओ वह दिमाग़
जो ख़ुशामद आदतन नहीं करता
कहीं से ले आओ निर्धनता
जो अपने बदले में कुछ नहीं माँगती
और उसे एक बार आँख से आँख मिलाने दो
जल्दी कर डालो कि फलने फूलने वाले हैं लोग
औरतें पिएँगी आदमी खाएँगे
एक दिन इसी तरह आएगा
कि किसी की कोई राय न रह जाएगी
क्रोध होगा पर विरोध न होगा
अर्जियों के सिवाय
खतरा होगा खतरे की घंटी होगी
और उसे बादशाह बजाएगा।
0 रघुवीर सहाय
अपने ही घर में अगर खतरा महसूस होने लेगे तो यकीनन बेहद दुखद होगा !
ReplyDeleteसादर
बिल्कुल सही कहा आपने ...बेहतरीन लेखन ...।
ReplyDeleteतीनों सामयिक अभिव्यक्तियाँ।
ReplyDeletedhanya hooon main jo aapke karan raghuvir jee ko padh paya..........sach me kaise log bade kavi kahlate hain, padh kar pata chal raha hai.........
ReplyDeleteUtsahi jee aapke marfat Raghuvir Sahay jee ki kavitayen padh kar maja aa gaya.Mujhe nahi lagta ki Raghuvir Sahay ka hindi sahitya me jo avadan hai uska sahi mulyankan abhi tak ho paya hai.Aap kripya yeh bhi batane ki kripa karen ki kya English me unka dhang ka anuvad hua hai.Vaqt mile to mere blog mujhebhikuchkehnahai.blogspot.com par padhar kar margdarshan karen.
ReplyDeleteअच्छी रचनायें।
ReplyDeleteरघुवीर सहाय जी की रचनाओं पर टिपण्णी करने जैसी औकात नहीं है अपनी...उन्हें पढ़ना ही सौभाग्य की बात है...आप का धन्यवाद जो उनकी कालजयी रचनाओं में से तीन हम तक पहुंचाई...
ReplyDeleteनीरज
तीसरी वाली पढ़ते हुए आँख भर आयी, हालांकि शायद आँख भर आने वाली कोई बात नहीं.. थी
ReplyDelete'अधिनायक' तो पहले से ही बहुत पसंद है.
पढवाने के लिए आपका धन्यवाद..
इन साहित्यक रचनाओ को समझने के लिए मेरी समझ काफी छोटी है फिर भी जितना समझ आया उसे पढ़ कर अच्छ लगा |
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाएँ .
ReplyDeleteआपको नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएं
इन कविताओं के आगे नतमस्तक हुआ जा सकता है... पाठशाला हैंयह कविताएँ शब्द सन्योजन और भावाभिव्यक्ति की!!
ReplyDeleteअनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
ReplyDeleteतय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को भी सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
GULLK KE BAHANE RAGHOOVIR SAHAY KO PAYA. @ UDAY TAMHANEY. BHOPAL.
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