Wednesday, December 29, 2010

आने वाला खतरा : रघुवीर सहाय की तीन कविताएं

9 दिसम्‍बर को रघुवीर सहाय जी का जन्‍मदिन था। और आज यानी 30 तारीख को उनका निधन दिवस है। उनकी तीन कविताएं कविता कोश के सौजन्‍य से यहां प्रस्‍तुत कर रहा हूं। उनकी कविताएं हमारे समय को परिभाषित करती हैं।

अधिनायक
राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है

फटा सुथन्ना पहने जिसका

गुन हरचरना गाता है।

मखमल टमटम बल्लम तुरही

पगड़ी छत्र चंवर के साथ

तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर

जय-जय कौन कराता है।

पूरब-पश्चिम से आते हैं

नंगे-बूचे नरकंकाल


सिंहासन पर बैठा
,उनके
तमगे कौन लगाता है।

कौन-कौन है वह जन-गण-मन

अधिनायक वह महाबली

डरा हुआ मन बेमन जिसका

बाजा रोज बजाता है।


Sunday, December 26, 2010

बिनायक सेन ही नहीं, मैं भी देशद्रोही हूं.....

               गूगल से साभार 
जब से यह खबर सुनी है कि डॉक्‍टर बिनायक सेन को देशद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है तब से मन बहुत बैचेन हो रहा है। मन बार-बार यह सवाल कर रहा है कि क्‍या हम सचमुच एक लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में रह रहे हैं।
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बिनायक सेन को मैंने बहुत नजदीक से देखा और जाना है। 1980 के आसपास जब वे होशंगाबाद में मित्र मंडल केन्‍द्र, रसूलिया की डिस्‍पेन्‍सरी में बैठते थे, उनसे कई बार मिलना हुआ। होशंगाबाद जिले में ही पिपरिया के पास स्थित किशोर भारती संस्‍था और मित्र मंडल केन्‍द्र,रसूलिया ने मिलकर शासकीय स्‍कूलों के लिए होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत की थी। इसी कार्यक्रम को आगे ले जाने के लिए बाद में एकलव्‍य संस्‍था की स्‍थापना हुई थी। जिसमें मैंने 26 साल काम किया।

Saturday, December 18, 2010

क्रांति नहीं की,लेकिन कुछ किया तो है....


बाबूजी यानी पिताजी के न रहने का अर्थ मेरे लिए कई मायनों में सामने आया। उनके निधन के साथ ही मैं अपने परिवार में पुरुषों में सबसे बड़ा घोषित हो गया। बड़े होने के नाते कई सारे दायित्‍व मुझे ही निभाने थे। हिन्‍दुओं में माता या पिता की मृत्‍यु पर बेटों को अपने बाल देने होते हैं। यह क्‍यों किया जाता है यह मुझे नहीं मालूम। जब भी किसी से पूछने की कोशिश की तो जवाब मिला, बस परम्‍परा है इसलिए दिए जाते हैं। मुझे यह हमेशा एक गैर जरूरी और बिना मतलब का कर्मकांड लगा। जब पिताजी नहीं रहे तो मेरे सामने यह प्रश्‍न था कि मैं क्‍या करुं। मैंने तय किया कि मैं बाल नहीं दूंगा। मैंने बाल नहीं दिए। मुझे पता है कि इससे कोई क्रांति नहीं होने वाली। लेकिन हां इतना जरूर हुआ कि मेरे परिवार और रिश्‍तेदारों के बीच इस बात को लेकर चर्चा जरूर छिड़ गई। मुझे कई तरह की बातें सुननी पड़ीं, जिनमें भावनात्‍मक बातें भी थीं।

Sunday, December 5, 2010

न रहना बाबूजी का

(1.04.1934**3.12.2010)

आखिर उन्‍हें एक दिन नहीं रहना था सो वे नहीं रहे। पिताजी जिन्‍हें हम बाबूजी कहते रहे चले गए। 3 दिसम्‍बर की सुबह 7:30 के आसपास उन्‍होंने इस दुनिया की हवा को अपने फेफड़ों में भरने से इंकार कर दिया और उसके साथ उड़ गए जिसे उन्‍होंने 26 साल पहले ठीक इसी दिन खाली हाथ लौटा दिया था।  
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3 दिसम्‍बर को भोपाल गैस त्रासदी को 26 साल हो गए हैं। पिताजी रेल्‍वे में डिप्‍टी चीफ कंट्रोलर थे। 2 दिसम्‍बर की रात को उनकी डयूटी भोपाल के रेल्‍वे कंट्रोल ऑफिस में थी। परिवार होशंगाबाद में था। उस रात बऊ (उनकी मां और मेरी दादी) बहुत बीमार थीं, इसलिए पिताजी ने तय किया कि वे भोपाल नहीं जाएंगे। उस रात भोपाल से रवाना हुई यमदूत एक्‍सप्रेस में उनका आरक्षण भी था। पर वे नहीं गए। कैसे जा सकते थे अभी उन्‍हें 26 साल और इस दुनिया में रहना था।