Tuesday, November 2, 2010

संघर्ष के स्‍वर : इरोम शर्मिला की कविता

चित्र गूगल इमेज से साभार
(आयरन लेडी के नाम से विख्यात मणिपुर की इरोम शर्मिला चानू पिछले दस सालों से भूखहड़ताल पर हैं वे मणिपुर से विवादित आर्म्‍ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (एएफएसपीए) 1958 हटा जाने की मांग कर रही हैं चानू की भूख हड़ताल को आज 10 साल हो ग हैं। शर्मिला का यह संघर्ष मानव जीवन अधिकारों की मांग का संघर्ष है। शर्मिला तुम्‍हें सलाम।)

कांटों की चूडि़यों जैसी बेडि़यों से
मेरे पैरों को आजाद करो
एक संकरे कमरे में कैद
मेरा कुसूर है
परिंदे के रूप में अवतार लेना


कैदखाने की अंधियारी कोठरी में
कई आवाजें आसपास गूंजती हैं
परिंदों की आवाजों से अलग
खुशी की हंसी नहीं
कोई लोरी नहीं

मां के सीने से छीन लिया गया बच्‍चा
मां का विलाप
पति से अलग की गई औरत
विधवा की दर्द-भरी चीख
सिपाही के हाथ से लपकता हुआ चीत्‍कार

आग का एक गोला दीखता है
कयामत का दिन उसके पीछे आता है
विज्ञान की पैदावार से
सुलगाया गया था आग का गोला
जुबानी तजुर्बे की वजह से

ऐन्द्रिकता के दास
हर व्‍यक्ति समाधि में है
मदहोशी-विचार की दुश्‍मन
चिंतन का विवेक नष्‍ट हो चुका है
सोच की कोई प्रयोगशाला नहीं

चेहरे पर मुस्‍कान और हंसी लिए हुए
पहाडि़यों के सिलसिले के उस पार से आता हुआ यात्री
मेरे विलापों के सिवा कुछ नहीं रहता
देखती हुई आंखें कुछ बचाकर नहीं रखतीं
ताकत खुद को दिखा नहीं सकती

इंसानी जिंदगी बेशकीमती है
इसके पहले कि मेरा जीवन खत्‍म हो
दो मुझे अंधियारे का उजाला
अमृत बोया जाएगा
अमरत्‍व का वृक्ष रोपा जाएगा

कृत्रिम पंख लगाकर
धरती के सारे कोने मापे जाएंगे
जीवन और मृत्‍यु को जोड़ने वाली रेखा के पास
सुबह के गीत गाए जाएंगे
दुनिया के घरेलू काम-काज निपटाए जाएंगे

कैदखाने के कपाट पूरे खोल दो
मैं किसी और राह पर नहीं जाऊंगी
मेहरबानी करके कांटों की बेडि़यां खोल दो
मुझ पर इल्‍जाम मत लगाओ
कि मैंने परिंदे के जीवन का अवतार लिया था।
                         0 इरोम शर्मिला

(विष्‍णु खरे द्वारा अंग्रेजी से अनूदित। ‘अनौपचारिका’ अगस्‍त, 2010 से साभार।)

15 comments:

  1. बेहद गहन अभिव्यक्ति…………॥

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  2. शर्मिला तुम्हें सलाम है!

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  3. इतनी ईमानदार कविता वही लिख सकता है जिसने जीवन के संघर्ष में ख़ुद को समाज के लिए आहूत करना सीखा हो

    इरोम शर्मिला को सलाम

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  4. इक दीप-सी जलती रही इरोम शर्मिला
    सबके लिये चलती रही इरोम शर्मिला
    इक दिन यहाँ इन्साफ मिलेगा इसीलिये
    हर दर्द को सहती रही इरोम शर्मिला
    इस देश में बहाल नहीं लोकतंत्र क्यूं
    सब से यहाँ कहती रही इरोम शर्मिला
    जोखिम में जान डाल कर भूखी रही है वो
    मिटती रही, बनती रही इरोम शर्मिला
    रोके से रुक सकी नहीं कमाल कर दिया
    बन के नदी बहती रही इरोम शर्मिला
    खुशियों के मकानात बनें इसलिए सुनो
    हर पल यहाँ ढहती रही इरोम शर्मिला
    निर्मम हमारे देश की सरकार क्या कहें
    किस मुल्क में रहती रही इरोम शर्मिला
    औरत पे जुल्म ढा रहे गुंडे हैं ड्रेस में
    इस बात पे हंसती रही इरोम शर्मिला
    खा-पी के अघाए हुए इस देश में पंकज
    कुर्सी को ही खलती रही इरोम शर्मिला

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  5. कितनी आग और उड़़ान है इस कविता में। गएातंत्र में दस वर्ष से निरंतर भूख हड़़ताल में सोचने समझने को बहुत कुछ है विशेषकर सार्वजनिक कारणों से।
    गिरीश पंकज जी ने तो पूरी ग़़ज़़ल ही कह दी व‍ह भी टिप्‍पणी में, आश्‍चर्यजनक।

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  6. इसके पहले कि मेरा जीवन खत्‍म हो
    दो मुझे अंधियारे का उजाला

    १० वर्षों का लम्बा संघर्ष ... और आग अभी भी जल रही है .... सलाम है शर्मीला को ..

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  7. इरोम शर्मीला जी की कविता पढ़ने से वो दर्द वो तड़प महसूस होता है जो शायद हमारे लिए अनजान हो ... बस यही कामना है कि देश के हर भाग में लोग खुशहाली से रहे ...
    आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
    टिप्पणी के रूप में आपने जो कविता दी हैं वो लाजवाब है !

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  8. इस कविता को साझा करने के लिए धन्यवाद. आभार.

    इस ज्योति पर्व का उजास
    जगमगाता रहे आप में जीवन भर
    दीपमालिका की अनगिन पांती
    आलोकित करे पथ आपका पल पल
    मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
    सुख समृद्धि शांति उल्लास की
    आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर

    आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
    सादर
    डोरोथी.

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  9. अद्भुत रचना...शब्द हीन कर दिया...

    नीरज

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  10. नरेंद्र कुमार मौर्यNovember 8, 2010 at 6:27 AM

    इरोम शर्मिला के संघर्ष से बहुत लोग नावाकिफ है, इसलिए उनके संघर्ष को बार-बार सामने लाना जरूरी है। इस लिहाज से आपने बड़ा काम किया जो उनकी कांटों की चूड़ियों जैसी बेड़ियों से पैरों को आजाद करने की कविता हमें पढ़वा दी। दरअसल इरोम इस विशाल लोकतंत्र के सामने एक बड़ा सवाल हैं। आखिर एक लोकतांत्रिक देश को ऐसे विशेष कानूनों की जररूत क्यो पड़ती है? जिस राज्य में ऐसे कानून लागू होते हैं वहां मानवाधिकारों का जनाजा निकल जाता है। इरोम का संघर्ष एक और सवाल खड़ा करता है क्या अब गांधी के देश में लोकतांत्रिक विरोध का कोई मतलब रह गया है? खाये, अघाये और विकास की चाशनी में नहाये राजनीतिक दल और उनके नपुंसक समर्थकों के लिए इरोम जैसी संघर्षरत महिलाएं और पुरुष हमेशा ही फसाद की जड़ रहे हैं, लेकिन जो अब भी समतामूलक समाज का सपना देखते हैं उनके लिए वे हमेशा प्रेरणास्रोत बनी रहेंगी।

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  11. इरोम शर्मिला चानू के संघर्ष को सलाम।

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  12. बेहतरीन कविता ! संघर्षरत शर्मिला चानू को सलाम !

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  13. इरोम तुम मेरी आदर्श हो, तुम गला रही हो औरों के लिए अपने को, अहिंसा का रास्ता इससे अच्छा क्या हो सकता है, तुम्हें सलाम !!!!!!!!!!!!!!

    अनुपमा तिवाड़ी

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जनाब गुल्‍लक में कुछ शब्‍द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...