चित्र गूगल इमेज से साभार |
(आयरन लेडी के नाम से विख्यात मणिपुर की इरोम शर्मिला चानू पिछले दस सालों से भूखहड़ताल पर हैं। वे मणिपुर से विवादित आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (एएफएसपीए) 1958 हटाए जाने की मांग कर रही हैं। चानू की भूख हड़ताल को आज 10 साल हो गए हैं। शर्मिला का यह संघर्ष मानव जीवन अधिकारों की मांग का संघर्ष है। शर्मिला तुम्हें सलाम।)
कांटों की चूडि़यों जैसी बेडि़यों से
मेरे पैरों को आजाद करो
एक संकरे कमरे में कैद
मेरा कुसूर है
परिंदे के रूप में अवतार लेना
कैदखाने की अंधियारी कोठरी में
कई आवाजें आसपास गूंजती हैं
परिंदों की आवाजों से अलग
खुशी की हंसी नहीं
कोई लोरी नहीं
मां के सीने से छीन लिया गया बच्चा
मां का विलाप
पति से अलग की गई औरत
विधवा की दर्द-भरी चीख
सिपाही के हाथ से लपकता हुआ चीत्कार
आग का एक गोला दीखता है
कयामत का दिन उसके पीछे आता है
विज्ञान की पैदावार से
सुलगाया गया था आग का गोला
जुबानी तजुर्बे की वजह से
ऐन्द्रिकता के दास
हर व्यक्ति समाधि में है
मदहोशी-विचार की दुश्मन
चिंतन का विवेक नष्ट हो चुका है
सोच की कोई प्रयोगशाला नहीं
चेहरे पर मुस्कान और हंसी लिए हुए
पहाडि़यों के सिलसिले के उस पार से आता हुआ यात्री
मेरे विलापों के सिवा कुछ नहीं रहता
देखती हुई आंखें कुछ बचाकर नहीं रखतीं
ताकत खुद को दिखा नहीं सकती
इंसानी जिंदगी बेशकीमती है
इसके पहले कि मेरा जीवन खत्म हो
दो मुझे अंधियारे का उजाला
अमृत बोया जाएगा
अमरत्व का वृक्ष रोपा जाएगा
कृत्रिम पंख लगाकर
धरती के सारे कोने मापे जाएंगे
जीवन और मृत्यु को जोड़ने वाली रेखा के पास
सुबह के गीत गाए जाएंगे
दुनिया के घरेलू काम-काज निपटाए जाएंगे
कैदखाने के कपाट पूरे खोल दो
मैं किसी और राह पर नहीं जाऊंगी
मेहरबानी करके कांटों की बेडि़यां खोल दो
मुझ पर इल्जाम मत लगाओ
कि मैंने परिंदे के जीवन का अवतार लिया था।
0 इरोम शर्मिला
(विष्णु खरे द्वारा अंग्रेजी से अनूदित। ‘अनौपचारिका’ अगस्त, 2010 से साभार।)
बेहद गहन अभिव्यक्ति…………॥
ReplyDeleteशर्मिला तुम्हें सलाम है!
ReplyDeleteगहराईपूर्ण।
ReplyDeleteइतनी ईमानदार कविता वही लिख सकता है जिसने जीवन के संघर्ष में ख़ुद को समाज के लिए आहूत करना सीखा हो
ReplyDeleteइरोम शर्मिला को सलाम
इक दीप-सी जलती रही इरोम शर्मिला
ReplyDeleteसबके लिये चलती रही इरोम शर्मिला
इक दिन यहाँ इन्साफ मिलेगा इसीलिये
हर दर्द को सहती रही इरोम शर्मिला
इस देश में बहाल नहीं लोकतंत्र क्यूं
सब से यहाँ कहती रही इरोम शर्मिला
जोखिम में जान डाल कर भूखी रही है वो
मिटती रही, बनती रही इरोम शर्मिला
रोके से रुक सकी नहीं कमाल कर दिया
बन के नदी बहती रही इरोम शर्मिला
खुशियों के मकानात बनें इसलिए सुनो
हर पल यहाँ ढहती रही इरोम शर्मिला
निर्मम हमारे देश की सरकार क्या कहें
किस मुल्क में रहती रही इरोम शर्मिला
औरत पे जुल्म ढा रहे गुंडे हैं ड्रेस में
इस बात पे हंसती रही इरोम शर्मिला
खा-पी के अघाए हुए इस देश में पंकज
कुर्सी को ही खलती रही इरोम शर्मिला
कितनी आग और उड़़ान है इस कविता में। गएातंत्र में दस वर्ष से निरंतर भूख हड़़ताल में सोचने समझने को बहुत कुछ है विशेषकर सार्वजनिक कारणों से।
ReplyDeleteगिरीश पंकज जी ने तो पूरी ग़़ज़़ल ही कह दी वह भी टिप्पणी में, आश्चर्यजनक।
इसके पहले कि मेरा जीवन खत्म हो
ReplyDeleteदो मुझे अंधियारे का उजाला
१० वर्षों का लम्बा संघर्ष ... और आग अभी भी जल रही है .... सलाम है शर्मीला को ..
इरोम शर्मीला जी की कविता पढ़ने से वो दर्द वो तड़प महसूस होता है जो शायद हमारे लिए अनजान हो ... बस यही कामना है कि देश के हर भाग में लोग खुशहाली से रहे ...
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें !
टिप्पणी के रूप में आपने जो कविता दी हैं वो लाजवाब है !
बस एक सैल्यूट!!
ReplyDeleteइस कविता को साझा करने के लिए धन्यवाद. आभार.
ReplyDeleteइस ज्योति पर्व का उजास
जगमगाता रहे आप में जीवन भर
दीपमालिका की अनगिन पांती
आलोकित करे पथ आपका पल पल
मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
सुख समृद्धि शांति उल्लास की
आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर
आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.
अद्भुत रचना...शब्द हीन कर दिया...
ReplyDeleteनीरज
इरोम शर्मिला के संघर्ष से बहुत लोग नावाकिफ है, इसलिए उनके संघर्ष को बार-बार सामने लाना जरूरी है। इस लिहाज से आपने बड़ा काम किया जो उनकी कांटों की चूड़ियों जैसी बेड़ियों से पैरों को आजाद करने की कविता हमें पढ़वा दी। दरअसल इरोम इस विशाल लोकतंत्र के सामने एक बड़ा सवाल हैं। आखिर एक लोकतांत्रिक देश को ऐसे विशेष कानूनों की जररूत क्यो पड़ती है? जिस राज्य में ऐसे कानून लागू होते हैं वहां मानवाधिकारों का जनाजा निकल जाता है। इरोम का संघर्ष एक और सवाल खड़ा करता है क्या अब गांधी के देश में लोकतांत्रिक विरोध का कोई मतलब रह गया है? खाये, अघाये और विकास की चाशनी में नहाये राजनीतिक दल और उनके नपुंसक समर्थकों के लिए इरोम जैसी संघर्षरत महिलाएं और पुरुष हमेशा ही फसाद की जड़ रहे हैं, लेकिन जो अब भी समतामूलक समाज का सपना देखते हैं उनके लिए वे हमेशा प्रेरणास्रोत बनी रहेंगी।
ReplyDeleteइरोम शर्मिला चानू के संघर्ष को सलाम।
ReplyDeleteबेहतरीन कविता ! संघर्षरत शर्मिला चानू को सलाम !
ReplyDeleteइरोम तुम मेरी आदर्श हो, तुम गला रही हो औरों के लिए अपने को, अहिंसा का रास्ता इससे अच्छा क्या हो सकता है, तुम्हें सलाम !!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteअनुपमा तिवाड़ी