Wednesday, May 19, 2010

वियोग में एक प्रयोग


ये चार पंक्तियां किसी खास परिस्थिति में ज़ेहन में आईं थीं। जब उनसे उलझने लगा तो कुछ इस तरह से हर बार नए रूप में सामने आ खड़ी हुईं। आपको जो पसंद हो वह चुन लीजिए।


आरजू आपकी न थी, हौंसला भी अपना न था।
फिर भी आसपास थे, शायद वह सपना न था।

आरजू आपकी न थी, हौंसला भी अपना न था।
चार कदम साथ साथ थे, शायद सपना न था।

आरजू आपकी न थी, हौंसला भी अपना न था।
साथ जितनी देर थे, क्‍या वह एक सपना न था।

आरजू तुम्‍हारी न थी, हौंसला भी हमारा न था।
फिर भी आसपास थे, शायद वह सपना न था।

आरजू आपकी न थी, हौंसला भी अपना न था।
फिर भी  हमराह थे, शायद वह सपना न था।

आरजू आपकी न थी, हौंसला भी अपना न था।
फिर भी आप खास थे, शायद वह सपना न था।

आरजू आपकी न थी, हौंसला भी अपना न था।
फिर भी आप पास थे, शायद वह सपना न था।

आरजू तुम्‍हारी न थी, हौंसला भी अपना न था।
फिर भी तुम पास थे, शायद वह सपना न था।

3 comments:

  1. आरजू आपकी न थी, हौंसला भी अपना न था।
    फिर भी आसपास थे, शायद वह सपना न था।
    सुन्दर अभिव्यक्ति ..

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  2. आरजू आपकी न थी, हौंसला भी अपना न था।
    फिर भी आप खास थे, शायद वह सपना न था।
    ....Sundar viyog ka ek Prayog achha laga....
    Haardik shubhkamnayne.....

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  3. SABHI APANI-APANI JAGAHA SAHI.
    UDAY TAMHANEY.
    BHOPAL.

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जनाब गुल्‍लक में कुछ शब्‍द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...