“यह तो कठिन काम है ।” अपने चश्में के बाहर से मेरी ओर निहारते हुए उन्होंने कहा, “मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ–
“एक परिवार में जब बेटा पैदा हुआ, तो पूरे घराने में खुशी की लहर दौड़ गई । जब वह बच्चा एक महीने का हो गया, तो वे लोग उसे मेहमानों को दिखाने के लिए बाहर ले आए । जाहिर है कि उन्हें उन लोगों से शुभकामनाओं की उम्मीद थी ।
“एक ने कहा– ‘यह धनवान होगा ।’ उसे लोगों ने हृदय से धन्यवाद दिया ।
“एक ने कहा– ‘यह बड़ा होकर अफसर बनेगा ।’ उसे भी जवाब में लोगों की प्रशंसा मिली ।
“एक ने कहा– ‘यह मर जाएगा ।’ उसकी पूरे परिवार ने मिलकर कस के धुनाई की ।
“वह मरेगा, यह तो अवश्यंभावी है, जबकि वह धनवान होगा या अफसर बनेगा, ऐसा कहना झूठ भी हो सकता है । फिर भी झूठ की प्रशंसा की जाती है, जबकि अपरिहार्य सम्भावना के बारे में दिए गए वक्तव्य पर मार पिटाई होती है । तुम–––”
“मैं झूठी बात नहीं कहना चाहता श्रीमान, और पिटना भी नहीं चाहता । तो मुझे क्या कहना चाहिए ?”
“ऐसी स्थिति में कहो– ‘आ हाहा! जरा इस बच्चे को तो देखो! मेरी तरफ से इसे––– आ हाहा! मेरा मतलब आहाहा! हे, हे! हे, हे, हे, हे।’
–लू शुन
(विकल्प से साभार)
सच है, जो सुनना चाहें उससे इतर क्यों कुछ कहा जाये, साथ ही असत्य भी न कहा जाये।
ReplyDeleteलू शुन नि:संदेह बड़े कथाकार हैं और जनमानस के एकदम निकट। उनकी यह कथा प्रकारांतर से 'न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम्' ही है।
ReplyDeleteसच कड़वा होता है इसलिए उसे कहते समय हमेसा सामने वाले की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए , जबरजस्ती उसे लोगो के मुंह में ठुसने की जरुरत नहीं है और हर समय हरिश्चन्द्र बन बक देने की जगह कभी कभी चुप रहना चाहिए , बड़ी चीज होती है बात कहने का तरिका , कड़वी से कड़वी बात तरीके से कही जाये तो बुरी नहीं लगती है |
ReplyDeleteआप ने एक कहानी लिखी थी गोलू जो रेलवे कालोनी में रहता था आप की वो कहानी मैंने आगे पढ़ी ही नहीं एक क़िस्त के बाद , शायद मुझसे छुट गई और अब वो आप के ब्लॉग पर मुझे मिल भी नहीं रही है क्या उसका लिंक देंगे | मै काफी समय से आप से उस कहानी के बारे में पूछना चाह रही थी , पर भूल जाती थी :)
ReplyDeleteअंशु जी वह कहानी गोलू नहीं..मुन्ना के मुन्ने दिन है...पर अफसोस कि मैंने उसके आगे की किस्त अभी तक नहीं लिखी हैं। आप उस एक किस्त को साइडबार में 'गुल्लक के सिक्के' में 'मुन्ना'लेबल पर क्लिक कर पढ़ सकती हैं।
Deleteबलराम जी से सहमत ! इतनी यथार्थ प्रस्तुति के लिए आभार !
ReplyDeleteआहाहा! हे, हे! हे, हे, हे, हे।
ReplyDeleteआहा आहा आहा हे हे हे हे हे
ReplyDeleteबच्चा एक दिन मरेगा , ये कैसी राय हुई ? इससे तो आदमी की नकारात्मक सोच का ही पता चलता है ....
ReplyDeleteआहाहा! हे, हे! हे, हे, हे, हे <----- ये राय है ?
हमारे हिसाब से रचना का अनुवाद उचित रूप से नहीं होने के कारण भाव स्पष्ट नहीं हो पाए है ... कम से कम हमारे तो ऊपर से गयी बात ....
आपका कहना सही लगता है...संभवत: अनुवाद की त्रुटि है..मैंने अब उसे संपादित किया है ताकि कथा की मूलभावना सामने आए..। नकारात्मक सोच है लेकिन सत्य है..कथा यही तो कह रही है कि लोग सच नहीं सुनना चाहते..लेकिन वे ऐसी बात सुनकर प्रसन्न होते हैं,जो हो सकता है..कभी सत्य हो ही न।
Deleteअव्यक्त, निरर्थक से भी भावनाएं व्यक्त हो जाती हैं.
ReplyDeleteजब कोई कहेगा..‘यह बच्चा मर जाएगा ।’ ..तो इसका अर्थ यही जायेगा कि बच्चा बचपन में ही मरेगा । अनुवाद में कुछ त्रुटि रह गई लगती है। ..भाव प्रेरक हैं।
ReplyDeleteशुक्रिया देवेन्द्र जी, मैंने कथा को संपादित कर दिया है..अब वह अर्थ नहीं निकलेगा...।
Deleteकहानी का भावार्थ सीधा और सच्चा है। पिटना न हो तो कभी सच न कहो...अगर कहो तो अप्रिय सच न कहो....वैसे भी जन्म के समय मरने की बात कहने वाला पिटेगा ही....हां अगर वो पेशे से ज्योतिष हो तो शायद बच भी जाए...
ReplyDeleteऔऱ हां दूसरी किस्तों में लिखने वाली पोस्टों को लिखते रहा कीजिए।
ReplyDeleteअप्रिय सत्य को चुपचाप सुन लेना हर किसी के बूते में नहीं ... यथार्थ बोध कराती प्रेरक प्रस्तुति ....
आपने इसे मेरे ब्लॉग से लेकर यहाँ चिपकाया, बड़े पाठक समूह तक पहुँचाया, इसके लिए धन्यवाद. अगर सन्दर्भ दे देते तो और अच्छा होता. खैर कोई बात नहीं...
ReplyDeletehttps://vikalpmanch.wordpress.com/2013/05/13/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82/
दिगम्बर जी अमूमन मैं स्वयं इस बात का पक्षधर हूं कि अगर कोई रचना कहीं से ली जा रही है, तो उसके मूल स्रोत का उल्लेख किया जाना चाहिए। चूंकि यह बात दो साल से भी अधिक पुरानी हो गई है, इसलिए मुझे याद नहीं कि इसे मैंने कहां से लिया था। पर इतना तय है कि आपके ब्लाग से तो नहीं लिया था, अगर लिया होता तो मुझे उसका संदर्भ देने में कोई आपत्ति नहीं थी। बहरहाल यह मानकर कि मूलरूप से आपके ब्लाग पर ही यह लघुकथा रही होगी, मैंने अब आपका संदर्भ दे दिया है।
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