नहीं, ऐसा नहीं है
वक्त मिलेगा,जिसमें
जमा हुआ यह वातावरण
हिलेगा
उदास मत होओ इतने
आखिर ऐसे दिन
कितने दिनों तक टिकते हैं
कई बार तख्तोताज
कबाड़ी बाजारों में बिकते हैं
या कहो धरे के धरे रह जाते हैं
कबाड़ी बाजारों में
लोग उन्हें सिर्फ देख-दाखकर
निकल जाते हैं
दुनिया में हर तरह के
उदास दिन आते हैं
इतने उदास मत हो जाओ
उदास लोगों के पास जाओ-आओ
उन्हें धीरज बंधाओ
और उनके काम पड़ो
दल-दल में पड़े रोड़े की तरह
नीचे-नीचे मत गड़ो
ऊपर के बोझ से
नया उजाला खींचो
हर नए रोज से
कहता हूं वक्त मिलेगा
जिसमें जमा हुआ यह वातावरण हिलेगा
और फिर दूर नहीं है वह दिन
तुम बेशक बचोगे
भय की जगह विश्वास बोओगे
उत्साह रचोगे
तब भय बोया है जिन्होंने
उतना बाहर नहीं
जितना खुद अपने भीतर
वे तुम्हें समझने की दशा में आ जाएंगे
तय हमें-तुम्हें सिर्फ इतना करना है
कि निर्भयता फैलाएंगे
निर्भयता गाएंगे
उत्साह भरेंगे देश-भर मनों में
उत्सव मनाएंगे वनों में
जंगल में मंगल करेंगे
जान डालेंगे अधमरी
तमाम हस्तियों में
बदल दी गई बस्त्तियों में
इकट्ठा होकर
मगर तय है कि यह
उदास होने से नहीं होगा
निराश होने से तो होगा ही नहीं
हिम्मत और प्रसन्नता से
छोटे-छोटे कामों में
जुट जाने से होगा
लोगों के दुख-दर्द पर
हंसते हंसते
लुट जाने से होगा।
0 भवानी प्रसाद मिश्र
भवानी प्रसाद मिश्र मेरे पसंदीदा कवि हैं उनकी रचनाओं में मैं उनकी एक रचना "सन्नाटा "बार बार पढता हूँ
ReplyDeleteधीरज बंधाती सी कविता....हौसला तो नहीं ही छोड़ना होगा.
ReplyDeleteआभार इसे शेयर करने का
भवानी दादा की काविताओं को आत्मसात किया जा सकता है, उनसे सीखा जा सकता है.. लेकिन उनके विषय में कहने का सामर्थ्य जुटा पाना असंभव है मेरे लिए!!
ReplyDeleteएक गीत फरोश के कई गीत दिल को छू जाते हैं!!
समय आपको जाँच रहा है,
ReplyDeleteकुछ बेतरतीबी बाँच रहा है।
भवानी प्रसाद मिश्र जी की सुन्दर कृति " उदास मत होओ इतने" की प्रस्तुति साझा करने हेतु धन्यवाद।
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