उत्तराखंड में भगीरथी
नदी के किनारे बसे उत्तरकाशी के नगरपालिका भवन में तीन दिवसीय राष्ट्रीय बाल
साहित्य संगोष्ठी का आयोजन था 7 से 9 जून,2013 तक। आयोजन बाल
पत्रिका बाल प्रहरी तथा अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन ने मिलकर किया था।
कवियत्री रेखा चमोली के साथ उत्तरकाशी में: फोटो-प्रमोद पन्यूली |
मैं देहरादून से अपने
अन्य साथियों के साथ लगभग 4 बजे शाम को पहुंचा था। फाउंडेशन के कार्यालय में अपना
सामान रखकर आयोजन स्थल पर पहुंचा। अंदर हाल में बच्चों का काव्य पाठ आरंभ होने
वाला था। बाहर स्वागत कक्ष में रखे रजिस्टर में अपना नाम लिखना था। रजिस्टर का
पेज भर चुका था। वहां बैठी एक महिला ने जल्दी-जल्दी अगले पेज पर कालम बनाए और एक
अन्य किताब की मदद से उसमें लाइनें खीचीं । इस बीच एक और महिला कार्यक्रम में
शामिल होने के लिए आ पहुंची। मैं अपना नाम लिख रहा था, वे अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहीं थीं।
नाम लिखकर ज्यों ही मैं पलटा। उनके दोनों हाथ नमस्कार की मुद्रा में जुड़ गए।
- मैं आपकी कविताओं
की बहुत बड़ी फैन हूं।....यह कहते हुए उनके होंठो पर मुस्कराहट तैर रही थी। चेहरे पर एक अजीब तरह की खुशी नजर आ रही थी। ऐसी खुशी शायद जिसे अपने पाठक के चेहरे पर देखने के लिए एक रचनाकार सदा प्रतीक्षारत रहता है।
- कौन-सी कविताएं?
- हाथ दवा है, हाथ दुआ है।
- अच्छा ।
- मैं अपने स्कूल
में बच्चों को पढ़ाती हूं। वे बहुत आनंद लेते हैं।
- आपका शुभनाम?
- रेखा चमोली।
- अच्छा तो आप हैं
रेखा चमोली।
मैं नाम से रेखा को जानता
था। पर उनसे यहां और इस तरह मुलाकात होगी इसका अंदाजा नहीं था।
अंदर कार्यक्रम शुरू
हो गया था। आयोजक मुझे भी बुलाने आ गए थे। इसलिए मैंने कहा कि बाद में मिलते हैं।
रेखा चमोली उत्तराखंड
की युवा कवियत्री के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं। साहित्यिक पत्रिका
"समकालीन सूत्र " द्वारा बस्तर के लोककवि स्वर्गीय ठाकुर पूरनसिंह की
स्मृति में दिया जाने वाला सूत्र सम्मान 2012 के लिए उन्हें दिया गया है। हाल
ही मैं उनका पहला कविता संग्रह "पेड़ बनी स्त्री" खासा चर्चित हुआ
है। इस संग्रह की शीर्षक कविता कुछ इस तरह है -
।।पेड़ बनी स्त्री।।
एक पेड़ उगा लिया है
मैंने
अपने भीतर
तुम्हारे प्रेम का
उसकी शाख़ाओं को फैला
लिया है
रक्तवाहिनियों की तरह
जो मज़बूती से थामे
रहती हैं मुझे
इस हरे-भरे पेड़ को
लिए
डोलती फिरती हूँ
संसार भर में
इसकी तरलता नमी हरापन
बचाए रखता है मुझमें
आदमी भर होने का
अहसास
एक पेड़ की तरह मैं
बन जाती हूँ
छाँव, तृप्ति, दृढ़ता, बसेरा
**
अज़ीम प्रेमजी
फाउंडेशन ने भी उनकी एक कविता 'भाषा' का पोस्टर प्रकाशित किया है।
कार्यक्रम समाप्त
होने पर हमारी मुलाकात फिर से हुई। रेखा ने बताया रूम टू रीड द्वारा प्रकाशित
मेरी पांचों कविताएं उन्हें बहुत अच्छी
लगती हैं। उन्हें हर कविता का शीर्षक याद था। इनमें ‘आलू मिर्ची चाय जी, कौन कहां से आए जी’ भी शामिल है। वे उन्हें बच्चों के बीच लगातार उपयोग करती हैं। शुरू में उन्हें लगा कि 'हाथ' कविता अपने शब्दों की वजह से बच्चों को कठिन लगेगी,पर जब उन्होंने इसे हावभाव के साथ बच्चों के बीच पढ़ा, तो अब वे भी इसे इसी तरह गुनगुनाते हैं। रेखा ने बताया कि पिछले दिनों रमणीक मोहन जी(पोर्टल में मेरे सहयोगी) उत्तरकाशी आए थे, तब उन्होंने उनसे भी इन कविताओं का जिक्र किया था और उनकी मार्फत धन्यवाद भी भेजा था। पर वह मुझ तक नहीं पहुंचा। रमणीक जी थोड़े भुलक्कड़ हैं, सो भूल गए होंगे। सोचता हूं अगर वे नहीं भूलते तो आज रेखा से ही सीधे अपनी कविताओं के बारे में सुनकर जो संतोष हुआ वह शायद नहीं होता।
मैं अपनी कविताओं की फैन से मिलकर अभिभूत था।
मैंने कहा, ‘आप मेरी कविताओं की फैन हैं और मैं आपकी कविताओं का।'
और जब आपकी कविताओं का कोई फैन आपके सामने हो तो आप उसे अपना कविता संग्रह (अगर कोई है तो) उसे भेंट न करें, यह कैसे हो सकता है। तो 'वह जो शेष है..' की प्रति मैंने रेखा को भेंट की। ऐसे मौकों के लिए मैं संग्रह की एक प्रति यात्रा के दौरान अपने साथ रखता हूं।
और जब आपकी कविताओं का कोई फैन आपके सामने हो तो आप उसे अपना कविता संग्रह (अगर कोई है तो) उसे भेंट न करें, यह कैसे हो सकता है। तो 'वह जो शेष है..' की प्रति मैंने रेखा को भेंट की। ऐसे मौकों के लिए मैं संग्रह की एक प्रति यात्रा के दौरान अपने साथ रखता हूं।
मेरे लिए उत्तरकाशी की इस पहली यात्रा
की कुछ गिनी-चुनी उपलब्धियां हैं, उनमें से एक रेखा से मिलना भी
है।
जिन्दगी में ऐसे खूबसूरत
संयोग गाहे-बगाहे ही होते हैं, पर होते हैं।
0 राजेश उत्साही
रेखा से मिलना कविता से मिलना है .
ReplyDeleteसंभवत: रेखा और कविता एक दूसरे की पर्यायवाची हैं।
Deleteवाह अद्भुत क्षण होंगे ये आपके लिये
ReplyDeleteहां इसलिए कि जब कोई आपको आपके रचनाकर्म से पहचाने....। अद्भुत ही नहीं दुर्लभ क्षण थे..वे।
Deleteअभिव्यक्ति के संसार में रचना का आदर होते देख अच्छा लगता है।
ReplyDeleteसचमुच..।
Deletemubaraq..
ReplyDeleteरेखा चमोली जी के बारे में और उनकी कविता से र-ब-रु होना बहुत अच्छा लगा . निश्चित ही यदि आपकी कोई कृति किसी को भी अच्छी लगती हो और वह सामने प्रसंशा करे तो मन को एक आत्मिक ख़ुशी तो मिलती है।।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति हेतु आभार
rajesh sir ,i feel that you don,t like every person who like you . you like only famous and pretty men-women . specialy female .don,t you?
ReplyDeleteभाई इस तरह अनाम टिप्पणी क्यों? जो कहना है खुलकर अपनी पहचान के साथ कहें..तभी तो कोई आपकी बात का सही उतर दे सकेगा...।
Deleteराजेश जी अपनी प्रशंसकों से मिलना हो जाए वो भी अचानक तो सचमुच खुशी होती है...ऐसे ही मैं एक शख्स से स्टेशन पर टकराया था...मेरे ब्लाग का प्रशंसक...मैं हैरान भी था..औऱ खुश भी....
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