29 मार्च कवि
भवानी प्रसाद मिश्र का जन्मदिन है। प्रस्तुत हैं उनकी तीन कविताएं।
अबके
मुझे पंछी बनाना अबके
या मछली
या कली
और बनाना ही हो आदमी
तो किसी ऐसे ग्रह पर
जहां यहां से बेहतर आदमी हो
कमी और चाहे जिस तरह की हो
पारस्परिकता की न हो !
अपमान का
इतना असर
मत होने दो अपने ऊपर
सदा ही
और सबके आगे
कौन सम्मानित रहा है भू पर
मन से ज्यादा
तुम्हें कोई और नहीं जानता
उसी से पूछकर जानते रहो
उचित-अनुचित
क्या-कुछ
हो जाता है तुमसे
हाथ का काम छोड़कर
बैठ मत जाओ
ऐसे गुम-सुम से !
ऐसे कौंधो
बुरी बात है
चुप मसान में बैठे-बैठे
दुःख सोचना , दर्द सोचना !
शक्तिहीन कमज़ोर तुच्छ को
हाज़िर नाज़िर रखकर
सपने बुरे देखना !
टूटी हुई बीन को लिपटाकर छाती से
राग उदासी के अलापना !
बुरी बात है !
उठो , पांव रक्खो रकाब
पर
जंगल-जंगल नद्दी-नाले कूद-फांद कर
धरती रौंदो !
जैसे भादों की रातों में बिजली कौंधे ,
ऐसे कौंधो ।
0 भवानी प्रसाद मिश्र
मन से ज्यादा
ReplyDeleteतुम्हें कोई और नहीं जानता
उसी से पूछकर जानते रहो
बहुत खूबसूरत रचनाएँ....
सांझा करने का शुक्रिया राजेश सर.
बड़े दिनों बाद आप आये...या पुस्तक प्रकाशन के पश्चात hibernation पर थे !!!सफलता/उपलब्धि के आनंद में???
:-)
सादर
अनु
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ReplyDeleteमन से ज्यादा
तुम्हें कोई और नहीं जानता
उसी से पूछकर जानते रहो
बहुत खूबसूरत रचनाएँ....
सांझा करने का शुक्रिया राजेश सर.
बड़े दिनों बाद आप आये...या पुस्तक प्रकाशन के पश्चात hibernation पर थे !!!सफलता/उपलब्धि के आनंद में???
शुक्रिया अनु जी।
Deleteइसमें कोई शक नहीं कि संग्रह के प्रकाशन की उपलब्धि का आनंद तो मैं ले ही रहा हूं। संयोग से मार्च माह में कई जगह की यात्रा पर रहा। वहां भी संग्रह की चर्चा रही। इस वजह से नई पोस्ट लगाने में देरी हुई।
बहरहाल यात्राओं का विवरण और संग्रह की चर्चा के बारे में आप मेरे ब्लाग यायावरी पर जल्द ही पढ़ सकेंगे।
मुन्तजिर हूँ....
Deleteसभी एक से बढ़कर एक हैं ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteभवानी दादा की ये कवितायें पढते हुए उनका वह ओजस्वी स्वर याद हो आया!! उनके जन्मदिन पर उनके श्री चरणों में प्रणाम!!
ReplyDeleteइतनी बढ़िया कविताएँ पढवाने का शुक्रिया
ReplyDeleteभवानी भाई तो सदा ही भाते हैं.
ReplyDeleteअपने संसार के तीन पक्ष प्रस्तुत कर दिये हैं, अत्यन्त ही प्रभावी ढंग से।
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाओं के लिए सलाम,,,,
ReplyDeleteभवानी प्रसाद मिश्र की याद दिलाने के लिए आपका आभार !
ReplyDeleteशुभकामनायें भाई जी !
बहुत अच्छी और हौसला अफजाई करने वाली कवितायें हैं.
ReplyDeleteअद्भुत कवितायें शेयर करने हेतु सादर आभार।
ReplyDeleteभवानी प्रसाद मिश्र जी को सादर नमन।
ताखे के किसी कोने में रखी हुई गुल्लक उठा कर जब भी जरा सी ही हिला दो ... सिक्को की अद्भुत खनक मन को मोह लेती है ... और आपके सिक्के तो वैसे भी शब्दो की गूंज ठहरे ...सीधे अंतर्मन में बजते है ...
ReplyDeleteaisi jaani maani hastiyon ke rachnaaon ko padhne ka saubhagya jab bhee milta hai lagta hai...ahshash hota hai kee abhee to kuch seekha hee nahi abhi to kuch jaana hee nahi...is prayas ke liye kotisah dhanywad..apne blog par amantran ke sath
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