खुद तो पढ़ते नहीं हैं, दोस्तों
की रचनाएं और अपनी पढ़वाने के लिए मेल पर मेल भेजते रहते हैं। ईमेल के माध्यम से
यह काम करना मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता। आशा है भविष्य में इस तरह के मेल
भेजकर आप मुझे परेशान नहीं करेंगे।'
2009 में इन्हीं दिनों में एक
दोस्त ने मुझे यह मेल किया था। संयोग से वे भी एक जाने-माने ब्लागर हैं। अपनी
आदत के मुताबिक मैंने कुछ ऐसी ही भाषा में उन्हें जवाब दिया। पर कुछ ऐसा हुआ कि
वह जवाब उन सब दोस्तों को भी चला गया जो ऐसे विचार नहीं रखते थे। बात कुछ इस तरह
आगे बढ़ी
मैंने उसके बाद एक और पत्र लिखा
। वह कुछ इस तरह था।
*
दोस्तो,
आपको दोस्त और उनकी दोस्ती
मुबारक। हो सकता है आपको यह मेरा आखिरी मेल हो। कैसा दुर्योग है कि यह भी मुझे आज
जैसे (फ्रैण्डशिप) महत्वपूर्ण दिन पर लिखना पड़ रहा है। दोस्तो आप सब जानते हैं
मैं लगभग तीस साल से साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखता रहा हूं। जिनमें
लघुकथाएं, कहानी,व्यंग्य ,कविताएं, बच्चों के लिए कविताएं आदि शामिल हैं। लेकिन
यह सब बहुत ज्यादा सामने नहीं आया है या चर्चा में नहीं रहा है। उसका एक कारण
मेरा चकमक के प्रति समर्पण रहा है। 1985 से 2000 के आसपास तक मैंने जो कुछ किया
चकमक के लिए किया। उस वजह से मेरे निजी खाते में कुछ भी जमा नहीं हुआ। हां मैं
चकमक में जमा हो गया। सच कहूं तो वह मेरा पहला और आखिरी प्रेम था। लेकिन पिछले
छह-सात सालों से मैं इससे बाहर निकलने की कोशिश करता रहा हूं। क्योंकि हमारे बीच
प्रेम की वह गरमाहट बच नहीं पा रही थी,जो जरूरी है।
अब जब उससे बाहर आया हूं तो अपने
लेखक को फिर से जीने की कोशिश कर रहा हूं। इस कोशिश में सब टोटके आजमा रहा हूं।
उनमें से एक टोटका ब्लाग भी है। या कहूं कि खाक हो चुके पचास सालों की राख को ब्लाग
पर फैलाकर उसमें से वे फूल या कि धूल जमा कर रहा हूं,जिनसे अतंत: मेरा तर्पण किया
जा सकेगा।
मेरा अनुभव रहा है कि मेरा लिखा
मेरा दोस्त पसंद करते हैं। यह मेरा भ्रम भी हो सकता है। वे अक्सर कहते रहे हैं कि तुम नियमित रूप से क्यों नहीं
लिखते। तो जब मैंने ब्लाग पर नियमित रूप से लिखना शुरू किया तो सोचा दोस्तों को
उसकी सूचना भी नियमित रूप से देता रहूं तो अच्छा है। या कहीं और कुछ छपा तो उसकी
सूचना भी उनको दे दूं। यही सोचकर मैं हर नई रचना की सूचना सबको देने लगा। पर पिछले
हफ्ते ही दो अजीज दोस्तों की प्रतिक्रियाओं ने मुझे इस पर गंभीरता से सोचने के
लिए मजबूर किया कि मैं कर क्या रहा हूं। दुर्योग से आप में से कुछ लोगों तक भी ये
टिप्पणियां पहुंच गई हैं। ईमानदारी से कहूं तो मैं सचमुच इस बारे में अज्ञानी था
कि एक को दिया गया जवाब उससे जुड़े सब लोगों तक पहुंच जाता है। खैर यह तो मैंने
इससे सीख ही लिया है।
दोस्तो एक निवेदन है। यदि आप मेरा
लिखा पढ़ने में रुचि रखते हैं,मेरी हौसलाअफजाई करते रहना चाहते हैं और चाहते हैं
कि उसकी सूचना आपको देता रहूं तो बस अब एक मेल के जरिए मुझे सूचित कर दें। जिन
दोस्तों से मुझे हां में उत्तर मिलेगा, मैं आइंदा से उन्हें ही यह सूचना
भेजूंगा। आपको उत्तर नहीं आने का यह अर्थ नहीं है कि आप नहीं पढ़ना चाहते। पर
निश्चित ही ऐसे कुछ लोग तो उत्तर न देने वालों में शामिल होंगे ही।
सच कहूं तो बहुत भारी मन से यह
मेल भेज रहा हूं। पर मुझे यह भी लगता है आज के दिन इसका महत्व जितना है उतना कभी
नहीं होगा। मेरी प्रार्थना है जिन लोगों का बहुमूल्य वक्त मैंने बरबाद किया
है,उन्हें उससे दुगना वक्त मेरे वक्त में से दे दिया जाए। तो मुझे आपकी ना या
हां का इंतजार रहेगा, दोस्ती के रहने तक।
*
मेरे इस पत्र के बाद जो जवाब आए,
उनमें से कुछ ऐसे थे जिन्हें बार-बार पढ़ने का मन करता है और मैं पढ़ता भी रहता
हूं। इनसे न केवल ऊर्जा मिलती है बल्कि जीवन के प्रति एक तरह का आश्वासन भी। तो
कुछ आप भी पढ़ें-
।।एक।।
ये क्या पागलपन है राजेश। यार
हम अपनी खुशी के लिए लिखते हैं और पढ़ते हैं। किसी की बातों से हमें क्या। मैं तो
रोज ही ब्लाग लिख रहा हूं,पर किसी को कहता नहीं। खैर। आप अपना काम जारी रखें और
हां मुझे पोस्ट करते रहें। हम राजेश को नए रूप में देखना चाहते हैं ताकि इतनी दूर
परिवार से दूर जाकर क्या लिखा, क्या पाया, पता तो चले। दोस्तों से नाराज होना
अच्छी बात है पर इतनी गंभीरता से अपने काम को लो तो बेहतर होगा। दरअसल संवदेनशील
होना अच्छी बात है पर इसे बचाकर रखो अपने लेखन के लिए,न कि इस तरह के विवादों में
फंसने के लिए।
उम्मीद है कम से कम मुझे तो
सूचना मिलती ही रहेगी और हां मेरे ब्लाग भी पढ़ना पड़ेंगे। -संदीप
(संदीप नाईक एकलव्य के शुरूआती
दौर के साथी हैं। विभिन्न संस्थाओं में काम करते हुए हाल ही में यूनिसेफ की एक
परियोजना के तहत मप्र के सीहोर जिले में काम कर रहे हैं। उनका एक ब्लाग है दी वर्ल्ड आई सी एवरी डे एंड वॉट आई थिंक अबाउट इट । जैसा कि उन्होंने भी कहा,वे प्रतिदिन
उस पर कुछ न कुछ लिखते ही रहते हैं। मैं भी भले ही टिप्पणी न करूं,पर पढ़ता जरूर
हूं।)
।।दो।।
प्रिय उत्साही जी,
आपके पत्र का शीर्षक आपके नाम के
अनुकूल नहीं है। यह मैं स्वीकार करता हूं कि मैंने आपको बहुत ही कम पढ़ा है किन्तु
आपका चकमक से लगाव तथा सम्पादन देखा है। अत: मेरी सलाह है कि आप लिखना तो जारी
रखें,क्योंकि उपर्युक्त गुण एक अच्छे
साहित्यकार होने के लिए पर्याप्त हैं। यदि आप लिखते रहेंगे तो मुझे तो प्रसन्नता
ही होगी। -विश्वमोहन तिवारी
(तिवारी जी जाने-माने विज्ञान
एवं पर्यावरण लेखक हैं और दिल्ली में रहते हैं। वे एकलव्य की विज्ञान एवं
तकनॉलॉजी फीचर्स स्रोत के लिए नियमित रूप से लिखते रहे हैं। मैं कुछ दिनों तक
स्रोत में प्रबंध सम्पादक की जिम्मेदारी निभा रहा था,सो इस दौरान उनसे लगातार
सम्पर्क होता रहा।)
।।तीन।।
प्रिय राजेश, क्या हुआ? मैं चाहे तुम्हारा
लिखा पढ़ूं या न पढ़ूं, खुशी हमारी। सूचना मिलती रहे। -लाल्टू
(समकालीन हिन्दी कविता के
जाने-माने हस्ताक्षर हैं। 1985 के आसपास उनसे परिचय हुआ था। दो साल वे एकलव्य
में भी रहे। मेरी छोकरा सीरिज की कविताओं को उन्होंने अपनी सायक्लोस्टायल
पत्रिका हमकलम में प्रकाशित किया था। आजकल हैदराबाद के ट्रिपलआईटी इंजीनियरिंग
कॉलेज में रसायनशास्त्र के प्रोफेसर हैं।
उनका भी एक ब्लाग है आइए हाथ उठाएं हम भी।)
(जारी.... अगली किस्त में कुछ
और पत्र)
0 राजेश उत्साही
यह पत्र आपकी ऊर्जा का आधार बनें।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteराजेश भाई ,
ReplyDeleteनिस्संदेह आपकी रचनाये पढने लायक होती हैं , आपका उपरोक्त पत्र मुझे नहीं मिला शायद और मिला होगा तो याद नहीं रहा होगा ! मगर मुझे अपनी मित्र मंडली में शामिल करने की कृपा करियेगा ! आशा है लेख की सूचना मेल से भेजते रहेंगे !
आप जैसे मित्रों के कारण ब्लोगिंग में मन लगता है !
राजेश जी
ReplyDeleteकई बार होता ये है की मित्रता के कुछ रूप को दूसरे समझ नहीं पाते है तो कुछ मित्रता के कुछ खास मायने ही समझते है विचारो का ये फर्क मित्रता निभाने में भी आ जाता है या ये कहे की हर रिश्ते निभाने में आ ही जाता है |
मै आप को नियमित पढ़ती हूं और प्रयास करती हूं की अपनी समझ के हिसाब से कुछ टिप्पणिया भी दे दू भले आप चाहे या ना चाहे |
में आज भी अपनी बातो पर कायम हूँ आप लिखते रहे चाहे किसी को पसंद हो या ना हो अरे किसी से क्या करना है में तो कभी नहीं चाहता कि मेरा ब्लॉग कोइ पढ़े क्या जरूरत है अपने लिए और सिर्फ अपने लिए में लिखता पढ़ता हूँ....वरना जो तटस्थ है समय लिखेगा उनके भी अपराध..........हम जानते है ना.
ReplyDeleteबहुत प्यार सहित
संदीप नाईक देवास से .....
अच्छा हुआ जो ये पत्र हमें नहीं मिला वर्ना ऐसे पत्र लिखने पर हम बड़े भाई होने के नाते आपको वो डांट लगाते के आपको छटी का ढूध याद आ जाता...हम तो आपका लिखा पढने को तरसते रहते हैं भाई..और जिसने भी आपको एक बार पढ़ा है वो हमेशा आपको पढना चाहेगा...आपका लेखन है ही ऐसा, पाठक क्या करेगा...आप बिंदास सूचित किया करें...एक बार नहीं दस बार...
ReplyDeleteनीरज
लोगो की बातो पर ना जाकर अपना कर्म करते रहना चाहिये राजेश जी और वो आप कर रहे हैं ……………और करते रहिये।
ReplyDeleteउत्साही जी, यह सही है कि जो आपको पढना चाहता है वह आपको ब्रह्माण्ड में कहीं से भी खोज कर पढ़ लेगा मगर यह भी सही है कि कुछ को खबर दो तो ही वे पढ़ पायेंगे.
ReplyDeleteऔरों का तो पता नहीं, पर हम तो पहली केटेगरी में हैं, ये मालूम हो!
गुरुदेव!
ReplyDeleteसुबह पूरी की पूरी टिप्पणी पोस्ट करते ही लापता हो गयी. अब ऑफिस से लौटा तो लिखने बैठा हूँ.. माफी के साथ..
मेरी पद्धति यह है कि जिन ब्लॉग को मैं पसंद करता हूँ या जिन्हें लगातार पढ़ता रहता हूँ या तो उनका फोलोवर बन जाता हूँ या उनके लिंक अपने ब्लॉग रोल में जोड़ लेता हूँ. दोनों ही स्थिति में जैसे ही उन ब्लोग्स पर कोइ नई पोस्ट आती है, मेरे ब्लॉग रोल पे दिखने लगती है और मैं उसे अवसर मिलते ही पढ़ लेता हूँ. इसके लिए मुझे याद दिलाने के लिए मेल भेजने की कोइ आवश्यकता भी नहीं होती.
समय समय पर इस रोल को अपडेट करते रहने से नए ब्लॉग जुड़ते जाते हैं और पुराने जहां गति विधियां न हों छांट सकते हैं. अब देखिये, इस मामूली सी तकनीक के कारण ही मुझे कल आपकी यह पोस्ट दिखाई दी और जब मैंने देखना चाहा तो पता चला कि आपने उसे रोक दिया है. मैंने चैट में आपसे पूछ भी लिया. आपने बता दिया. इसका एक लाभ यह भी होता है कि यदि किसी तकनीकी खराबी के कारण आपकी पोस्ट नहीं दिख रही हो तो आपको लगेगा कि लोग नहीं आए पढ़ने जबकि कारण यह है कि उन्हें इत्तिला ही नहीं.
हाँ अगर आपको यदि लगे कि कोइ व्यक्ति विशेष लंबे समय से गैरहाजिर है, तो अवश्य मेल भेजकर उनका हाल पूछिए (हो सकता है बीमार हों, यह भी मेरा आजमाया हुआ नुस्खा है).. उन्हें अच्छा लगेगा कि भाई ने हाल पूछने के लिए मेल किया है सिर्फ पोस्ट की सूचना देने के लिए नहीं!
आशा है मेरी बात का बुरा नहीं मानेंगे!
निराशाजनक परिस्थितियों में ये वचन बहुत काम आते हैं ...
ReplyDeleteमुझे किसी के ब्लॉग लिंक की मेल का बुरा नहीं लगता ... समय की कमी से कभी पढ़ ना पाऊं या कमेन्ट ना कर पाऊं तब भी !
जो लोग भी मन से लिखते हैं...सिर्फ टिप्पणियाँ पाने के लिए नहीं...उन्हें पढना हमेशा ही अच्छा लगता है...
ReplyDeleteआप लिखते रहें...मेल से सूचित भी करते रहें...हमें अच्छा ही लगेगा.
आप लिखते रहें...मेल से सूचित भी करते रहें...हमें अच्छा ही लगेगा.
ReplyDeleteआप जो लिखते हैं सार्थक और रोचक....अति रोचक होता है। जब भी ब्लाग पर आती हूं जरुर पढती हूं। आप लेखक और संपादक दोनों ही बेहतरीन हैं और इससे भी बेहतरीन हैं इंसान।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
जो आपको पसन्द करते हैं वे आपकी रचनाओं को फीड रीडर में रख आपके बिना भेजे पढ़ते हैं फिर उन्हें अपनी रचना क्या भेजना।
ReplyDeleteहिन्दी चिट्ठाजगत की यह सबसे बड़ी मुश्किल है - लोगों को रचना पढ़ने के लिये भेजना। यह ई-शिष्टाचार के विरुद्ध है।
सोचिये यदि सारे चिट्ठाकार सारी रचनाऔं को पढ़ने के लिये भेजने लगें तब प्रतिदिन सबको १००० ईमेल मिलेंगी और यह कितना कष्ददायक होगा।
आप भेजें या न भेजें ऐसा हो नहीं सकता कि आप ब्लॉग पर लिखें और हम ना पढ़ें। देर..हो सकता है। मेरी आदत है कि जब कभी जिसकी याद आती है उसे मैं खूब पढ़ता हूँ..वह दिन उसी ब्लॉग को समर्पित होता है। कमेंट सभी पोस्ट पर करूं या न करूं।
ReplyDeleteनमस्ते सर , मुझे तो कविता पढ़ना अच्छा लगता है और यही वजे है कि मैं लाइब्रेरी रोज आता हु एक दिन स्कूल छूट भी जाए तो क्या जाता है लेकिन लाइब्रेरी तो सन्डे को भी खुलनी चाहिए .
ReplyDeleteमुझे आपकी लिखी हुई चीज कुछ ज्यादा ही आची लगती है ,शायद इसलिए तो नहीं कि मैं आपसे एक बार आमने -सामने हो चूका हु ,बाते कर चूका हु ,आपका नंबर आपसे ले चूका हु , एक बार संस भी कर चूका हु ,थोड़ी -सी ही आपके मुँह से तारीफ़ सुन चूका हु .पता नहीं लेकिन आपकी लिखी हर चीज पढ़ने कि कोशिस करता रहा लेकिन पढ़ाई और लाइब्रेरी कि किताबो से टाइम नहीं मिल पाया , लेकिन अब टाइम है ,आज से पढ़ना स्टार्ट करता हु .