मैं नज़्में लिखता हूं
वे छप नहीं पातीं
लेकिन छपेंगी
मैं एक खुशखबरी वाले खत के इंतज़ार में हूं
मुमकिन है वो मेरे मरने के दिन आए
लेकिन आएगा ज़रूर
दुनिया सरकारों से और दौलत से नहीं चलती
अवाम की हुकूमत से चलती है
अब से सौ साल बाद सही
दुनिया अवाम की हुकूमत से ही चलेगी।
0 नाजि़म हिकमत
दिल्ली में जंतर-मंतर पर जो हुआ, उससे मुझे तुर्की के इस महान क्रांतिकारी कवि की यह नज़्म याद हो आई। इसे उन्होंने 1957 में लिखा था। तब मेरे पैदा होने में भी एक साल बाकी था। कहते हैं कवि युग दृष्टा होता है। इस समय दुनिया भर में अवाम की ताकत से बदलाव की जो हल्की-सी किरण दिखाई दे रही है, हो सकता है उसे सूरज बनने में और पचास बरस लगें, तो भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। मैं भी कवि हूं और नाजि़म हिकमत की तरह ही सोचता हूं। उनकी इस नज़्म को (जो कि वास्तव में एक बयान है) मेरी भी नज़्म (बयान) माना जाए।
0 राजेश उत्साही
(नज़्म नाजि़म हिकमत की कविताओं के संग्रह ‘देखेंगे उजले दिन’ से साभार। अनुवादक: सुरेश सलिल। चित्र गूगल से साभार। नाजि़म हिकमत के बारे में अधिक जानकारी और उनकी कुछ अन्य कविताओं के लिए मेरी पुरानी पोस्ट नाजिम हिकमत की कविताएं पर भी एक नजर डाल सकते हैं।)
मेरे पैदा होने में एक साल बाकी था। कहते हैं कवि युग दृष्टा होता है। इस समय दुनिया भर में अवाम की ताकत से बदलाव की जो हल्की-सी किरण दिखाई दे रही है, हो सकता है उसे सूरज बनने में और पचास बरस लगें तो भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा। उमीद नहीं छोड़नी चाहिए।
"दुनिया सरकारों से और दौलत से नहीं चलती
ReplyDeleteअवाम की हुकूमत से चलती है "
किरण ही तो सूरज के आने का संकेत होती है । सूरज आएगा जरुर आज नहीं तो कल । इस उम्मीद में हम सब साथ हैं ।
आमीन।
ReplyDeleteअवाम की हुकूमत यानि लोकतंत्र (क्या ऐसा या ऐसा नहीं).
ReplyDeleteदुनिया सरकारों से और दौलत से नहीं चलती
ReplyDeleteअवाम की हुकूमत से चलती है "
बड़ी समसामयिक लगी यह सुंदर रचना ...पढवाने का आभार ....
इस पोस्ट के मूल भाव से सहमत।
ReplyDelete..आमीन।
इसी आस में सौ साल निकल जायेंगे, कविता नयी बनी रहेगी।
ReplyDeleteसूरज बनने में और पचास बरस लगें, तो भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।
ReplyDeleteummeed hi to nai subah lati hai
दुनिया सरकारों से और दौलत से नहीं चलती
ReplyDeleteअवाम की हुकूमत से चलती है "
aur aaj to yah anna ne sabit kar diya.....
सचमुच गुरुदेव!
ReplyDeleteये आदमी नहीं है मुकम्मल ब्यान है! (दुष्यंत)
सिंहासन खालीकारो कि जनता आती है.( दिनकर)
आमीन!!
खुशकिस्मत हैं हम लोग कि यहाँ अन्ना हजारे हैं....शतायु हों यह महात्मा !
ReplyDeleteसूरज बनने का इंतजार या इसको खुद है सूरज बना देंगे
ReplyDeleteसुंदर रचना ,पढवाने का आभार ..
कवि सचमुच युग द्रष्टा ही होता है
ReplyDeleteएक कालजयी रचना पढवाने का शुक्रिया
सही में ये एक नज़्म नहीं बयान है...
ReplyDelete.
वैसे, इनका तो नाम भी मुझे मालुम न था..
इस समय दुनिया भर में अवाम की ताकत से बदलाव की जो हल्की-सी किरण दिखाई दे रही है, हो सकता है उसे सूरज बनने में और पचास बरस लगें, तो भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। ....सच उम्मीद पर ही दुनिया कायम है.... जब अँधेरा घना होता है तो आभास हो जाता है कि सुबह निकट है ......अवाम को उस सुबह का इंतज़ार है.... बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति के लिए आभार
ReplyDelete