भारतीय टीम ने क्रिकेट का वर्ल्डकप जीत लिया है। यह बात अब पुरानी हो चुकी है। पर हम इसकी चर्चा अगला वर्ल्डकप जीतने तक करते ही रहेंगे। तो उसी क्रम में मेरी बात।
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भोपाल में मेरे घर के एक कमरे के दरवाजे पर पिछले दस साल से सचिन का एक बड़ा पोस्टर लगा है। मेरी पत्नी नीमा के वे बहुत प्रिय खिलाड़ी हैं। नीमा बहुत खुश हैं। आखिर क्यों न हों, आखिर उनके प्रिय खिलाड़ी का सपना पूरा हुआ। मैं भी सचमुच बहुत खुश हूं कि नीमा खुश हैं। *
इसमें कोई शक नहीं कि फायनल तक टीम को लाने में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सचिन का बड़ा हाथ है। पर उनकी प्रतिभा के मान से फायनल उनके लिए थोड़ा फीका ही रहा। यह लगभग वैसी ही स्थिति है जैसी 1983 के वर्ल्डकप में थी। सुनील गावस्कर उस समय के स्टार खिलाड़ी थे। लेकिन वर्ल्डकप के लिए उनको याद नहीं किया जाता। याद किया जाता है कपिलदेव और उनके दूसरे साथियों को। तेंदुलकर भी आज के स्टार खिलाड़ी हैं। पर उनको इस वर्ल्डकप के फायनल में प्रदर्शन के लिए नहीं बल्कि इसलिए याद किया जाएगा वे इस टीम का हिस्सा थे। यही बात सहवाग पर भी लागू होती है। असली नायक तो धोनी बन गए हैं। कप्तान तो वे थे ही, फायनल में उनकी पारी ने सोने पर सुहागा कर दिया। मैं खुश हूं, कि मेरे प्रिय खिलाड़ी ने इस मैच में दिखाया कि आखिर लोग उनके दीवाने क्यों हैं। मैं सचमुच बहुत खुश हूं।
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फायनल के एक दिन पहले एक अंग्रेजी अखबार की हैडलाइन थी, पहले मोटेरा, फिर मोहली और अब मुम्बई का नंबर है। यानी तीन 'एम' । पर साथ ही यह भी कि मुम्बई फतह करने के लिए तीन और 'एम' से निपटना होगा यानी मुरलीधरन, मलिंगा और मैथ्यूज। मैथ्यूज तो वहां नहीं थे पर महेला थे। पर इन सारे 'एम' पर भारत का एक 'एम' यानी माही ही भारी पड़ा। वैसे 'एम' को एक और तरह से याद किया जा सकता है। 1983 में 'मैन आफ द मैच' मोहिन्दर अमरनाथ थे और 2011 में महेन्द्रसिंह धोनी। दोनों में महेन्द्र ही हैं। मैं सचमुच बहुत खुश हूं।
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अगर हम बल्लेबाजी की बात करें तो सचिन जिस उम्र में हैं क्रिकेट में वह उतार की उम्र मानी जाती है। उस पर वे पिछले 21 साल से क्रिकेट खेल रहे हैं। तो इस मान से यह वर्ल्डकप क्रिकेट का फायनल उतार की उम्र ने नहीं बल्कि क्रिकेट में युवा टीम ने जीता है। गंभीर,विराट,धोनी और युवराज। यह एक अच्छा संकेत भी है। पर इसमें संदेश यह भी है कि पुराना अनुभव कहीं न कहीं काम आता ही है। उन्हें स्थान और सम्मान मिलना ही चाहिए। वह युवाओं ने दिया भी। हालांकि सचिन को कंधों पर इस तरह बिठाकर किसी भी जीते हुए मैच में घुमाया जा सकता है, क्योंकि उन्होंने यह मुकाम बहुत पहले ही हासिल कर लिया है। अब वे किसी मैच में एक रन भी बनाते हैं तो वह एक नया रिकार्ड होता है। इस बात के लिए मैं सचमुच बहुत खुश हूं।
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संदेश यह भी है कि जब भी आप एकजुट होकर खेलोगे, जीतोगे। टीम किसी एक पर निर्भर नहीं होनी चाहिए। यह संदेश संगकारा की इस बात में भी छिपा है कि भारत के सामने 350 का लक्ष्य भी छोटा होता। वे यह बात भी टीम की एकजुटता को देखकर ही कहने पर मजबूर हुए। सोचिए आप कि भारत के चार विकेट गिर चुके थे। दो बल्लेबाज क्रीज पर थे और केवल रैना बचे थे। तब भी संगकारा इतने हताश थे।
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मैं सचमुच बहुत खुश हूं कि एक बार फिर भारतीय खिलाड़ी दबाव में नहीं आए। न ही उन्होंने अपने ऊपर सामने वाली टीम को हावी होने दिया। दो धुरंधर बल्लेबाजों के विकेट गिरने के बाद भी गंभीर तथा विराट जिस सहजता से खेल रहे थे, उसमें कहीं भी यह लग नहीं रहा था कि वे वर्ल्डकप का फायनल मैच खेल रहे हैं। लक्ष्य बहुत साफ था कि कम से कम पांच रन हर ओवर में बनना चाहिए। वह बनते रहेंगे तो सब कुछ आसान होगा। तनाव हमारे खिलाडि़यों पर नहीं बल्कि श्रीलंका के खिलाडियों के चेहरे पर नजर आ रहा था या फिर दर्शकों के चेहरे पर। जब विराट कोहली आउट हुए और धोनी ने आकर मैदान संभाला तब तक लंका के खिलाड़ी हथियार डाल चुके थे। संगकारा के चेहरे पर निराश साफ झलक रही थी। उन्हें शायद धोनी की श्रीलंका के खिलाफ 183 रन की धुआंधार पारी याद आ रही होगी। केवल एक ही बात उन्हें मैच जिता सकती थी, वह थी कि भारतीय खिलाड़ी गलतियां करें, हड़बड़ी दिखाएं। पिछले तीन मैच में गंभीर कुछ ऐसी ही हड़बड़ी में आउट हुए थे। लेकिन धोनी का वहां होना ही यह बताता था कि ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। किसी कमेंटेटर ने कहा कि ड्रेसिंग रूम में बैठकर तनाव झेलने से अच्छा है कि आप मैदान में आकर तनाव झेलें। पर धोनी ने इसका उल्टा किया। वे तनाव श्रीलंका को देने आए थे। फिर भी एक-दो मौके ऐसे आए, पर संकट टल गया। धोनी ने अपना हेलीकॉप्टर निकाला और वर्ल्डकप ले उड़े। अब वे और उनके साथी कम से कम अगले चार साल के लिए पूरी दुनिया में उड़ते फिरेंगे। मैं सचमुच खुश हूं।
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2003 के वर्ल्डकप के फायनल को याद करें। भारतीय बल्लेबाजी का हाल ऐसा ही था। तब पहले ही ओवर में सचिन तेंदुलकर आउट होकर चले गए थे। इस बार सहवाग । उस बार सहवाग ने लंगर डालकर 88 रन बनाए थे। इस बार वह काम गौतम गंभीर ने किया। पर हां गेंदबाजी में हम इस बार कुछ अलग कर पाए। तब जहीरखान ने अपने पहले ही तीन ओवर में 29 रन दे दिए थे। उनके दूसरे साथी जवागल श्रीनाथ ने भी ऐसे ही रन दिए थे। श्रीनाथ का रोल निभाने के लिए इस बार श्रीसंत मौजूद थे और उन्होंने रन दिए भी। पर जहीर खान ने इस बार पहले तीन ओवर मेडन फेंककर श्रीलंका को शुरुआती बढ़त लेने से रोक दिया। वरना कुल मिलाकर तो जहीर खान ने 10 ओवर में 60 रन दिए ही। 274 पर रोकने के लिए भी रैना,विराट और युवराज को बधाई दी जानी चाहिए। उनकी फील्डिंग लगभग ऐसी थी कि मजाल है, उनकी मर्जी के बिना कोई परिंदा पर भी मार जाए। कुल मिलाकर एक बार फिर अच्छी क्रिकेट देखने को मिली। सचमुच बहुत खुश हूं।
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कुछ लोग इस बात पर सवाल उठा रहे हैं कि जब सचिन को कंधे पर उठाकर साथी खिलाड़ी मैदान का चक्कर लगा रहे थे, तब धोनी कहां थे ? वे नजर क्यों नहीं आए। मुझे भी यह बात अजीब-सी लगी थी। पर शायद असलियत यह है कि बल्लेबाजी के दौरान धोनी की पसली की मांसपेशियों में खिंचाव आ गया था। बाद में टीवी पर आईं तस्वीरों में उन्हें पेट के बल लेटा दिखाया गया है और फिजियो कुछ एक्सरसाइज करवा रहे हैं। मैच खत्म होते ही सब आलिंगनबद्ध हो बधाई दे रहे थे। ऐसे में उनकी तकलीफ शायद और बढ़ सकती थी। शायद बढ़ भी गई थी। इसीलिए वे तभी नजर आए जब पुरस्कार वितरण हो रहा था। वहां भी वे रवि शास्त्री से बात करते हुए बार-बार अपनी पसलियों को हाथ लगा रहे थे। किसी ने कहा कि धोनी सचिन को पसंद नहीं करते हैं, इसलिए वहां नहीं थे। मुझे लगता है यह कहना अनुचित होगा। दोनों अपनी काबिलियत के बल पर टीम में हैं। और इसीलिए मैं सचमुच बहुत खुश हूं।
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भ्रष्टाचार और घोटालों की तमाम खबरों के बीच कुछ दिन के लिए ही सही वर्ल्डकप और भारतीय टीम ने हमें कुछ और बातें करने का मौका तो दिया। यह खुशी की बात नहीं है, पर उम्मीद है कि इस वर्ल्डकप से मिली खुशी हमें समस्याओं और बाधाओं से जूझने के लिए नई ऊर्जा देगी। डेढ़ महीने से चला आ रहा यह उत्सव खुशी देकर गया है। और वह तब जब हमारा नया साल शुरू हो रहा है। गुड़ी पड़वा, युगादि और चैतीचांद की बहुत-बहुत शुभकामनाएं देते हुए मैं सचमुच बहुत खुश हूं।
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अंत में दो कल्पनाएं
।एक।
जब विराट कोहली आउट हुए तो युवराज ने कहा, ‘मैं नहीं जाऊंगा। मैं पिछले मैच में विराट के बाद गया था और पहली ही गेंद पर आउट हो गया था।’ इसलिए धोनी को आना पड़ा। गुस्से में धोनी ने वह रूप दिखाया जिसे सब देखना चाहते थे।
।दो।
जब विराट कोहली आउट हुए तो युवराज मैदान में जाने के लिए उठे। धोनी ने कहा, ‘अरे यार तू तो वैसे भी चार बार 'मैन आफ द मैच' बन चुका है। तू बैठ इस बार मैं पहले जाता हूं। और अगर मुझ से कुछ नहीं हुआ तो फिर तुझे तो संभालना ही है।’ जब तक युवराज का नंबर आया तब तक धोनी हेलीकॉप्टर स्टार्ट कर चुके थे।
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जो भी हुआ हो मैं सचमुच बहुत खुश हूं।
0 राजेश उत्साही