Saturday, October 9, 2010

अहसान : एक लघुकथा

पठानकोट एक्सप्रेस का साधारण कम्पार्टमेंट । दरवाजे पर खड़े दो नौजवान। एक-दूसरे से अपरिचित। लेकिन एक, दूसरे की अपेक्षाकृत अधिक ताकतवर।

‘टिकट दिखाइए।’ एक आवाज गूंजी।

दूसरे ही क्षण रामपुरी सामने था। यह पहले का टिकट था। वह आगे कुछ करता, इससे पहले ही दूसरे ने तुरंत चाकू छीनकर जेब के हवाले किया और रसीद किए दो हाथ। 

टिकट चेकर की आंखों में कृतज्ञता झलक आई। दूसरे ने एक नजर पहले को देखा और फिर टिकट चेकर को दूसरे दरवाजे की ओर ले जाकर धीरे से कहा, ‘बाबूजी,टिकट तो मेरे पास भी नहीं है।’
                                                                                                        0 राजेश उत्‍साही 

बम्‍बई यानी आज की मुम्‍बई से रामावतार चेतन के संपादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिका रंग-चकल्‍लस के नवम्‍बर-दिसम्‍बर,1981 अंक में प्रकाशित । 

18 comments:

  1. एगो कवि सम्मेलन में आयोजक एगो पहलवान थे. सुरुए में आकर बता दिए कि कोई भी अस्लील कबिता सुनाएगा तो उसको मंच से उठाकर फेंक दिया जाएगा.. सब कबि के बाद ऊ स्वयम् कबिता पाठ करने आए त स्रोता गन के बीच से एक स्वर में आवाज आया कि पहलवान जी आप त खुद ही कूद जाइए मंच से...
    रेलवे में इस तरह का घटना आम है!! मगर अच्छा लगा पढकर!!!

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  2. दूसरा चाकू 'अहसान' का.
    बहुत सुन्दर लघुकथा

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  3. आपके प्रोफाइल के ऊपर लिखा है "थोड़ा लिखा,बहुत समझना"!
    यह इस लघुकथा में कूट-कूट कर भरा है।
    यदि हम गलती करके स्‍वयं को सही सिद्ध करने का प्रयास करते हैं तो समय हमारी मूर्खता पर हँसा करेगा।

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
    या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
    नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!, राजभाषा हिन्दी पर कहानी ऐसे बनी

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  4. अच्छी लघुकथा है ... व्यंग्य भी है और हकिक़त भी ...

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  5. उत्साही जी
    बहुत अच्छी लघुकथा. यहां तो एहसान भी रामपुरी से कम नहीं निकला.

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  6. बहुत अन्तर और कुछ भी नहीं।

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  7. इस लघुकथा में एक बहुत बड़ी कथा छिपी हुई है।...पसंद आई।

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  8. कथा पसंद आई।

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  9. हा..हा..हा.
    इस लघुकथा के माध्यम से आपने ऐसे दो चरित्रों पर प्रकाश डाला है जिनसे सामना अक्सर हो ही जाता है।
    ..बहुत खूब।

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  10. कमाल की रचना है राजेश भाई ! शुभकामनायें

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  11. दोनों बातें समान भी हैं और अलग भी..... कुछ ही शब्दों में
    हकीकत कह डाली आपने....

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  12. ज़िंदगी के लम्बे सफ़र में
    अलग-अलग मोड़ पर
    अचानक मिल जाने वाले
    पात्रों का सार्थक चित्रण ...
    बहुत अच्छी लघु-कथा .

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  13. दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!

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  14. RAJESH JI,
    CHHOTISI GHATANA KO KAVYA / KATHA BANANA KOI AAPSE SIKHE.
    UDAY TAMHANEY.
    BHOPAL.
    9200184289

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