Thursday, April 22, 2010

पृथ्‍वी दिवस :शरद बिल्‍लौरे की दो कविताएं


आज यानी 22 अप्रैल को पृथ्‍वी दिवस है। ऐसे में शरद बिल्‍लौरे की दो कविताएं बहुत याद आ रही है। पहली कविता सहजता से एक सवाल करती है और उसका जवाब देती है। दूसरी कविता हमें धरती के नायाब अंग से परिचित कराती है।



धरती
दो बरस की नीलू
आसमान तकती है
पापा से कहती है
पापा मुझे आसमान चाहिए।

पापा ने कभी आसमान जैसी चीज़
अपने बाप से नहीं माँगी
एक बार तारे ज़रूर मांगे थे।

पापा डरे हुए हैं सोचते हैं
मैं धरती पर खेल कर बड़ा हुआ
क्या नीलू आसमान ताककर बड़ी होगी
और यह
कि मैंने अपने बाप से और
नीलू ने मुझसे
धरती क्यों नहीं माँगी

क्या सचमुच धरती
बच्चों के खेलने की चीज़ नहीं !
                0  शरद बिल्‍लौरे

पहाड़        
ये पहाड़ वसीयत हैं
हम आदिवासियों के नाम
हज़ार बार
हमारे पुरखों ने लिखी है
हमारी सम्पन्नता की आदिम गंध हैं ये पहाड़।
आकाश और धरती के बीच हुए समझौते पर
हरी स्याही से किए हुए हस्ताक्षर हैं
बुरे दिनों में धरती के काम आ सकें
बूढ़े समय की ऎसी दौलत हैं ये पहाड़।
ये पहाड़ उस शाश्वत गीत की लाइनें हैं
जिसे रात काटने के लिए नदियाँ लगातार गाती हैं।
हरे ऊन का स्वेटर
जिसे पहन कर हमारे बच्चे
कड़कती ठण्ड में भी
आख़िरकार बड़े होते ही हैं।
एक ऎसा बूढ़ा जिसके पास अनगिनत किस्से हैं।
संसार के काले खेत में
धान का एक पौधा।
एक चिड़िया
अपने प्रसव काल में।
एक पूरे मौसम की बरसात हैं ये पहाड़।
एक देवदूत
जो धरती के गर्भ से निकला है।
दुनिया भर के पत्थर-हृदय लोगों के लिए
हज़ार भाषाओं में लिखी प्यार की इबारत है।
पहाड़ हमारा पिता है
अपने बच्चों को बेहद प्यार करता हुआ।

तुम्हें पता है
बादल इसकी गोद में अपना रोना रोते हैं।
परियाँ आती हैं स्वर्ग से त्रस्त
और यहाँ आकर उन्हें राहत मिलती है।

हम घुमावदार सड़कों से
उनका शृंगार करेंगे
और उनके गर्भ से
किंवदन्तियों की तरह खनिज फूट निकलेगा।

                       0  शरद बिल्‍लौरे
 (लेखक के कविता संग्रह तय तो यही हुआ था  से साभार। लेखक अब इस दुनिया में नहीं हैं। पर वे अपनी कविताओं के जरिए इस धरती पर हमारे आसपास मौजूद हैं।)

4 comments:

  1. क्या आसमान ताक कर बडी होगी......यह एक पंक्ति कितना कुछ कह रही है ।उत्साही जी ने अपने ब्लाग्स के माध्यम से श्री शरद जी की रचनाओं (यात्रा,धरती व पहाड) से रूबरू कराया है यह एक उपलब्धि है ।ये दिल को छूकर ही नही खरोंच कर निकलतीं हैं और बेशक यह सुखद अनुभूति है ।धन्यवाद उत्साही जी

    ReplyDelete
  2. शरद बिल्लोरे जी रचनाएँ पढ़ना बहुत सुखद रहा. आपका आभार इन्हें प्रस्तुत करने का.

    ReplyDelete
  3. दुनिया भर के पत्थर-हृदय लोगों के लिए
    हज़ार भाषाओं में लिखी प्यार की इबारत है।
    पहाड़ हमारा पिता है
    अपने बच्चों को बेहद प्यार करता हुआ।
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ........ पहले बार ब्लॉग पर आना हुए बहुत अच्छा लगा .....
    हार्दिक शुभकामनाएँ

    ReplyDelete

जनाब गुल्‍लक में कुछ शब्‍द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...