Thursday, December 5, 2013

शुक्रिया कबीर



अमरूदों का मैं दीवाना हूं और वे मेरे गले के दुश्‍मन। पिछले हफ्ते चालीस रुपए के आधा किलो खरीदे थे। बस दो ही खा पाया और गले में खराश और कांटे चुभना शुरू हो गए। बंगलौर का मौसम भी बदल रहा है। हल्‍की ठंड के साथ हल्‍की सी बारिश कभी-कभी। सुबह-शाम विश्‍वविद्यालय जाने के रास्‍ते में धूल,धुआं और यूकिलिप्‍टस के परागकण यानी कि एलर्जी का पक्‍का इंतजाम। अब इस सबसे बचकर जाएं तो कहां जाएं। गले ने अपना स्‍वर बदला तो सामने वाले को यह समझते देर नहीं लगती कि गले के मालिक की तबीयत नासाज है।
परसों, हर रोज की तरह कबीर को फोन लगाया तो मेरा गला घरघरा रहा था। उसने तुरंत भांप लिया पूछा, तबीयत ठीक है। मैंने कहा, हां ठीक है।
जब कल रात फोन लगाया तो गला थोड़ा अधिक घरघरा रहा था और बीच-बीच में मुझे गला साफ करना पड़ रहा था। फिर इस तरह हमारा संवाद हुआ-
-गला खराब है।
-हां।
-तो गरारे करो।
-कर रहा हूं।
फिर कुछ इधर-उधर की बात हुई। वह फिर बोला,
-बुखार भी है क्‍या।
मैं आमतौर पर ऐसे सवालों से झुंझुला जाता हूं।
मैंने लगभग उसे झिड़कते हुए कहा,
-अगर होगा भी तो तुम क्‍या करोगे।
-तो डॉक्‍टर को दिखाओ।
-हां, जरूरत होगी तो दिखा दूंगा। अपना ख्याल तो मुझे ही रखना होगा न, वरना यहां कौन है देखभाल करने वाला।
वह चुप हो गया और फोन भी।

मुझे लगा यह कुछ ज्‍यादा ही हो गया। मुझे इस तरह से प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए थी। मैंने सोचा आखिर ऐसा क्‍यों हुआ। ध्‍यान आया कि कल ही मेरी मां और कबीर की दादी भोपाल आई हुईं हैं। किसी के बीमार होने की बात उनके कानों में पड़ती है तो वे परेशान हो जाती हैं। शायद अनजाने में मैं इसी वजह से इस पर ज्‍यादा बात करने से बच रहा था।
मुझ से रहा नहीं गया,पांच मिनट बाद मैंने कबीर को दुबारा फोन लगाया। उसकी आवाज से लग रहा था कि वह मेरे व्‍यवहार से खुश नहीं है। मैंने उससे बात कहा, कि दादी के सामने इस तरह की बात न किया करो वे जबरन फिकर करने लगतीं हैं। वह बोला,
-पापा जैसे आपको हम लोगों की चिंता होती वैसे ही हमें भी आपकी चिंता होती है।
-यहां मौसम बदल रहा है इसलिए थोड़ा गला खराब है। बुखार नहीं है। जरूरत होगी तो डॉक्‍टर को दिखा दूंगा।
-गर्मपानी में नमक डालकर गरारे कर लेना।
-हां कर लूंगा।
-पास में किराने की दुकान हो तो वहां से मुलेठी ले लेना।
-हां ले लूंगा। तुम चिंता मत करो मैं ठीक हूं।
उसके बाद मैं चैन की नींद सोया, कबीर भी सोया होगा। 
                                                  0 राजेश उत्‍साही

4 comments:

  1. ये संवाद कहने सुनने के नहीं.. बस दिल से महसूस करने के लिये हैं.. लगभग यही संवाद मेरे साथ भी चलते हैं इन दिनों!!

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  2. कहते तो हैं भले की लेकिन बुरी तरह ।

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  3. दोनों को ही एक दूसरे की चिन्ता होती है, दूर हों तो और भी अधिक।

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  4. बच्चे जब ख्याल रखते हैं तो बहुत अच्छा लगता है ..हमें उन्हें भी समझना पड़ता है ..
    ..गरारे यदि नमक की जगह थोडा सोडा डालकर किये जाएँ तो बहुत अच्छा होता है.... क्योकि मैं तो यही करती हूँ इससे मुझे जल्दी आराम मिलता है ...

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