Sunday, December 23, 2012

चन्‍द्रकान्‍त देवताले : समय का बयान


।। दो लड़कियों का पिता होते हुए ।।
पपीते के पेड़ की तरह मेरी पत्नी
मैं पिता हूं
दो चिड़ियाओं का जो चोंच में धान के कनके दबाए
पपीते की गोद में बैठी हैं
सिर्फ़ बेटियों का पिता होने से भर से ही
कितनी हया भर जाती है
शब्दों में


मेरे देश में होता तो है ऐसा
कि फिर धरती को बाँचती हैं
पिता की कवि-आंखें.......
बेटियों को गुड़ियों की तरह गोद में खिलाते हैं हाथ
बेटियों का भविष्य सोच बादलों से भर जाता है
कवि का हृदय
एक सुबह पहाड़-सी दिखती हैं बेटियाँ
कलेजा कवि का चट्टान-सा होकर भी थर्राता है
पत्तियों की तरह

और अचानक डर जाता है कवि चिड़ियाओं से
चाहते हुए उन्हें इतना
करते हुए बेहद प्यार।


।। ठण्‍डी पड़ गई आग ।।
एक घर में आग लगी
तो इकट्ठा हो गए
आसपास बस्‍ती के लोग
पूछने लगे-
आग कैसे लगी?
आग किसने लगाई?
आग क्‍यों लगाई?
तभी एक नेता आए
और आगजनी पर भाषण देने लगे
एक ज्ञानी बताने लगे
आग लगाने से लगेगा कौन-सा पाप।

आग भड़क रही थी
और लोग देख रहे थे।

इतने में आया वह
जिसे बस्‍ती वाले
कहते थे पागल

कहा कुछ नहीं
बस दौड़ पड़ा
कहीं से उठाई बाल्‍टी
बावड़ी से भरा पानी
और बुझाने लगा आग।

पूछने वाले
भाषण और ज्ञान बघारने वाले
देखते रहे खड़े हक्‍के-बक्‍के ।

बस्‍ती वाले भी दौड़े
पागल का दिया साथ
और देखते के देखते
ठण्‍डी पड़ गई आग।

।। दगाबाज बागड़ ।।
आपने बहस की
घंटों की हमारे पेट की झुर्रियों के बारे में
पेट भर बहस कर हम पर कृपा की

आप जो कर सकते हैं वही तो आप करेंगे
वही आपने किया सराहना हुई आपकी
आपका मोतियाबिंद अनदेखा रह गया शुक्रिया

शुक्रिया हमें भी दीजिए
क्‍योंकि हम जो कर सकते नहीं करते
और इसी से आपको मिलता है बहस करने का मौका

डरने का कारण नहीं इसके पीछे
बस यही है कि हम सियारों का झुण्‍ड नहीं
देशवासी हैं- धरती-खेत हैं हम
बागड़ तो पेट भर सकती है बहस करके खेत खा सकती है
पर खेत, खेत को कभी नहीं खाता

इसलिए आप बहस तो खाइये इत्‍मीनान से
पर मत कीजिए विश्‍वासघात धरती के नमक के साथ इतना
बहुत महंगा पड़ेगा
क्‍योंकि खेत तो खेत ही रहेगा हमेशा
अलबत्‍ता मुट्ठी भर राख को देखकर
पूछेगी एक दिन चकित हवा-'कहां गई बागड़ '
तो कहेंगे हम हंसते-'भूखी हिंसक दगाबाज बागड़ कब थी यहां?'
0  चन्‍द्रकान्‍त देवताले  


(लेखक के कविता संग्रहों से साभार। चन्‍द्रकान्‍त जी को हाल ही में साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार देने की घोषणा हुई है। सच तो यह है कि
उनकी कविता ऐसे किसी भी पुरस्‍कार से कहीं अधिक बड़ी है। वर्षों पहले लिखी गईं उनकी ये कविताएं आज भी हमारे समय का जैसे ताजा बयान हैं। इनमें चिंता भी है,चेतावनी भी और समाधान भी।)
 

5 comments:

  1. दोनो कविताएं आज का सच उजागर करती है।

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  2. समाज का यथार्थ व्यक्त करती कवितायें।

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  3. KAVITAO SE PARICHAY KARAYA. AABHAAR.

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  4. चन्‍द्रकान्‍त देवताले जी की प्रेरक रचनाओं के साथ परिचय प्रस्तुति के लिए आभार!

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