Sunday, August 5, 2012

सायना : कहना था ‘न'

                                                                         राजेश उत्‍साही 

सायना तुमने जिंदगी में पता नहीं कितनी बार अनचाही चीजों के लिए न कहा होगा। एक दृढ़निश्‍चय के साथ न कहा होगा। तभी तुम इस मुकाम पर पहुंच सकी हो।
*
तुम्‍हें इस बार भी न कहना चाहिए था।
तुमने शायद कहा भी।
पर तुम्‍हें स्‍पष्‍ट रूप से न कहना चाहिए था।
*
तुम्‍हें यह पदक स्‍वीकार नहीं करना चाहिए था।
तुम वह नहीं जीती हो जिसके जीतने पर यह पदक मिलता है।
यह पदक केवल भारत के लिए एक संख्‍या है।
जहां तक इतिहास की बात है तो तुम वह तो पहले ही रच चुकी थीं,जब सेमीफायनल में पहुंची थीं। ओलम्पिक खेलों में भारत की तरफ से बैडमिंटन प्रतियोगिता के सेमीफायनल में पहुंचने वाली तुम पहली खिलाड़ी बन ही गईं थीं।
*
एक खिलाड़ी,भारतीय खिलाड़ी,के तौर पर तुम सचमुच सर्वश्रेष्‍ठ हो। पदक न लेंती, तब भी रहतीं।
एक व्‍यक्ति के तौर पर तुम्‍हारा कद कहीं और ऊंचा होता,काश तुमने न कहा होता।
न कहना तुम्‍हें और गौरव देता सायना।                0 राजेश उत्‍साही   

13 comments:

  1. हार के पहले तक तो हर क्षण में जीत होनी चाहिये..

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  2. एक मानव से कुछ ज्यादा ही उच्चता की अपेक्षा नहीं कर ली राजेश भाई?

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  3. खेल के कुछ नियम भी होते हैं...कभी कोई प्रतिपक्षी खिलाड़ी उपस्थित ही नहीं होता और पहले खिलाड़ी को walk over मिल जाता है..फिर उसे क्या कहेंगे...कि उसे जीत नहीं दर्ज करानी चाहिए क्यूंकि उसने खेला ही नहीं??
    खेल के नियम तो हर हाल में मानने ही पड़ते हैं.

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  4. खेल भावना सर्वोपरि.

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  5. राजेश जी
    आप की इस बात से सहमत हूं की सायना को कुछ भी साबित करने की जरुरत नहीं थी , किन्तु उस दिन जब वो कोर्ट में उतरी तो मैंने पति देव से कहा की वो खुश नहीं है क्योकि वो गोल्ड या रजत की सोच कर आई थी ये मैच देख कर ऐसा लगा रहा है की जैसे वो अभी रैकेट फेक कर चली जाएँगी उन्हें मैच खेलने की इच्छा ही नहीं है वो ब्रोंच के लिए नहीं खेलना चाहती है वरना वो उस खिलाडी को एक दो बार नहीं पांच बार हरा चुकि है और आज उससे एक गेम हार गई वो बहुत ही निराश थी , मैडल जितने के बाद भी वो तुरंत खुश नहीं थी जब उन्हें मीडिया और कैमरों ने बुलाया तुरंत तो वो बनावटी हंसी दे कर मना कर चली गई | पर जिस तरह चीनी खिलाडियों के जानबूझ कर हराने की खबर आ रही थी तो इस बात पर भी शक हो रहा था आखिर सेमी फाईनल में तीन चीनी खिलाडी थे तो वहा सायना का मुकाबला नंबर १ के साथ क्यों हुआ क्या ये वाकई संयोग है |

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    1. मुकाबला तो यहां भी दुनिया की नंबर दो खिलाडी से था सायना का।
      और जहां तक मेरी समझ है, कौन किसके साथ खेलेगा यह तो लॉटरी डालकर तय किया जाता होगा। अब सेमीफायनल में लॉटरी नंबर एक के साथ ही निकली होगी।

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    2. नहीं सेमीफाइनल में ऐसा नहीं होता है लाटरी प्रारंभ के मैचो के लिए निकलता है उसके बाद नंबर १ मैच के विजेता के साथ नंबर २ मैच के विजेता का मैच होगा ऐसा होता है , जो मैच हारे गये थे उसमे यही था की चीनी खिलाडी अगले दौर में अपने ही हमवतन खिलाडी से नहीं खेलना चाहते थे इससे उनके देश की एक टीम बाहर हो जाती इसलिए वो मैच हार गये और अपने ग्रुप में दूसरे नंबर पर आ गये ताकि वो दूसरे ग्रुप के किसी अन्य देश की टीम के साथ खेल सके , जबकि दूसरे ग्रुप में कोरियाई खिलाडियों ने भी वही किया वो भी हार गई क्योकि वो भी फ़ाइनल से पहले चीनी खिलाडियों से नहीं खेलना चाहती थी, उन सभी को ओलम्पिक से निकल दिया गया | आप खुद देखीये की सेमीफाइनल में एक भारतीय और तीन चीनी खिलाडी थे और फ़ाइनल में दोनों चीनी खिलाडी ही पहुंचे यानी गोल्ड और सिल्वर दोनों पक्का हो गया | वैसे सच कहूँ तो अब इन चीनी खिलाडियों को देख कर चिढ हो रही है जब भी टीवी देखो कोई भी खेल हो वहा बस चीनी खिलाडी ही नजर आ रहे है वो भी एक नहीं दो चार |

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  6. कुछ ऐसे ही ख्याल मेरे भी मन में आये थे.. लेकिन अपनी रूचि खेलों में कम होने के कारण बस सिर झटक कर उस विचार को हटा दिया!!

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    1. फिलहाल भारत में विचार व्‍यक्‍त करने पर तो पाबंदी नहीं है। इसलिए मौका न गंवाएं।

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  7. http://navbharattimes.indiatimes.com/medal-is-of-saina-only/articleshow/15378300.cms
    ise padhe

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  8. खेल पूरा होता, और उसे क्या मिलता यह बहस का मुद्दा हो सकता है।

    सेकेण्ड के दसवें भाग से पीटी उषा को न मिला, हम आज भी अफ़सोस करते हैं। खेल का मैदान उदारता दिखाकर महान बनने के लिए नहीं होता। विश्वनाथ ने, आउट हुए खिलाड़ी को बुला लिया। उस खिलाड़ी ने ऐसा धमाल मचाया कि हम मैच हार गए।
    जो मिला है, लेना ही चाहिए था। कितने लोग की आशाएं पूरी हुई, एक आदर्श मिला ...

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    1. अगर खेल का मैदान हमें उदारता भी नहीं सिखा सकता तो खेल का मतलब ही क्‍या। अगर आपकी बात मान भी लें कि उदारता दिखाकर महान बनना अच्‍छी बात नहीं है, तो क्‍या यूं ही मिल गए पदक से महान बना जा सकता है।
      और जहां तक आदर्श की बात है तो मेरे लिए तो विकास गौड़ा,कृष्‍णा पूनिया या वे सब खिलाड़ी भी उतने ही आदर्श हो सकते हैं जिन्‍होंने ओलम्‍पिक में अपने खेलों में बेहतर स्‍थान प्राप्‍त किया। भले ही उन्‍हें पदक न मिला हो।
      एक तरफ हम सार्वजनिक जीवन में स्‍वस्‍थ प्रतिस्‍पर्धा की बात करते हैं और दूसरी तरफ इस तरह के मानदंड भी बनाते हैं।
      पीटी उषा ही नहीं, मिल्‍खासिंह भी उसी श्रेणी में हैं। पर मेरा सवाल है कि क्‍या पदक नहीं मिलने से उनकी काबलियत कम हो जाती है।
      ऐसे बहुत से सवाल हैं, जिन पर बात करनी चाहिए।

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  9. न न बोल पाने की उसकी कोई न कोई वजह रही होगी..
    हाँ यह सच है कभी-कभी न बोलकर आदमी और महान बन जाता है .
    बहुत बढ़िया चिंतनशील प्रस्तुति ..

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