Tuesday, October 26, 2010

मैं कहता हूं

साधारणतया 
मौन अच्‍छा है,
किन्‍तु मनन के लिए 
जब शोर हो चारों ओर
सत्‍य के हनन के लिए 

तब तुम्‍हें अपनी बात 
ज्‍वलंत शब्‍दों में कहनी चाहिए  

सिर कटाना पड़े या न पड़े  
तैयारी तो उसकी होनी चाहिए ।  
                                                               0   भवानी प्रसाद मिश्र

17 comments:

  1. सभी ही अच्छे शब्दों का चयन
    और
    अपनी सवेदनाओ को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने.
    आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं

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  2. प्रेरक काविता!!

    राजेश जी,
    एक कविता यहाँ भी बोल रही…
    एक सामयिक रूपक
    http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/10/blog-post_26.html

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  3. भवानी प्रसाद मिश्र जी की सच्चाई के लिए प्रतिबद्ध और निरंतर संघर्षरत रहने की प्रेरणा देने वाली रचना आज भी प्रासंगिक है. ऐसी खूबसूरत रचना पढ़वाने के लिए आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  4. भवानी प्रसाद जी की कविता का रसास्वादन कराने के लिए आभार।

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  5. बहुत अच्छी कविता।

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  6. गीत बेचने वाले भवानी दादा का स्मरण,गुल्लक के माध्यम से चिरस्मरणीय हो गया... और मेरी प्रतिक्रिया श्राद्धावनत माथा!

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  7. सौ टका सच्ची बात!
    ....इसीलिये तो हम अपनी आवाज को धार दिए रहतें हैं !

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  8. आजकल ये भाव सिर्फ़ कविताओं मे ही रह गये बाकि तो लोग देश को क्या क्या कह रहे हैं दिख ही रहा है और कोई सिर काट्ने या कटाने को तैयार भी नही है…………सबको नाम चाहिये होता है जैसे अरुंधति राय्।

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  9. अप्रतिम रचना...प्रस्तुत करने पर बधाई...

    नीरज

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  10. @ वंदना जी मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूं। मैं भी जब कविताएं लिखता हूं तो उसमें कही गई बात पर न केवल अमल करता हूं बल्कि उसमें व्यक्त मूल्यों में विश्वास रखता हूं। माफ करें कविता मेरे लिए केवल मन बहलाने का साधन नहीं है।

    जिन भवानी प्रसाद मिश्र की यह कविता है उन्होंने यह तब लिखी थी जब हममें से शायद कई पैदा भी नहीं हुए थे। खांटी गांधीवादी जीवन जीने वाले कवि रहे हैं वे।

    अरुंधति राय ने सही कहा या गलत कहा है मैं इस पर यहां बहस नहीं करूंगा। क्योंकि वे जो कह रही हैं उसके पीछे उनका कुछ आधार होगा। हां मैं यह जानता हूं कि अंरुधति राय कम से कम असामाजिक तत्व नहीं हैं। और वे सचमुच वह कह और कर रही हैं जिसका भाव इस कविता में है। ये वही अरुंधति राय हैं जो नर्मदा बचाओ आंदोलन में आदिवासियों के बीच नर्मदा के अंचल में घूमी हैं। ये वही अरुंधति राय हैं जो छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के बीच जाकर उनसे मिलकर उनका पक्ष सुनकर आईं हैं। और यह सब उन्होंने केवल नाम के लिए नहीं किया है।

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  11. सिर कटाना पड़े या न पड़े
    तैयारी तो उसकी होनी चाहिए ।

    बहुत सुन्दर कहा गया है ...always prepared for the worst

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  12. तब तुम्‍हें अपनी बात
    ज्‍वलंत शब्‍दों में कहनी चाहिए

    एक दम सही बात ! जोदी तोर डाक सुने केयू ना आसे, तोबे एकला चोलो रे ...

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  13. भवानी प्रसद मिश्र जी की पंक्तियाँ आज भी प्रासंगिक हैं।
    वंदना जी को संबोधित आपका वक्तव्य भी सराहनीय है।

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  14. RJAJESHJI,
    SAHI VICHAR.
    UDAY TAMHANEY.
    BHOPAL.

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जनाब गुल्‍लक में कुछ शब्‍द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...