Saturday, September 4, 2010

जीवन शिक्षा

दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर कक्षा में आए। उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं।
उन्होंने एक कांच की बडी़ बरनी को मेज पर रखा।  उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालना शुरू किया और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची। उन्होंने छात्रों से पूछा , ‘ क्या बरनी पूरी भर गई ?’
‘ हां ..।‘. आवाज आई।
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प्रोफ़ेसर ने उसमें कंकड़ डालने शुरू किए। धीरे - धीरे बरनी को हिलाया। काफ़ी सारे कंकड़ उसमें समा गए।
प्रोफ़ेसर ने पूछा , ‘ क्या अब बरनी भर गई है?’ छात्रों ने एक बार फिर ' हां' कहा।
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अब प्रोफ़ेसर ने हौले-हौले बरनी में रेत डालना शुरू किया ।  रेत भी उस जार में जहां जगह थी बैठ गई । छात्र अपनी समझ पर हंसे। फिर प्रोफ़ेसर ने पूछा ,’ क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ?'
हां.. अब तो पूरी भर गई है। सभी ने एक स्वर में कहा।
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प्रोफेसर कक्षा से बाहर गए और दो कप चाय लेकर लौटे। कपों की चाय उन्होंने जार में डाली । चाय भी बरनी में समा गई। प्रोफेसर ने पूछा, 'कुछ समझे?'
कक्षा में सन्नाटा था। प्रोफेसर ने सन्नाटा तोड़ा।
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प्रोफ़ेसर ने समझाना शुरू किया,' बरनी को जीवन समझो। टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान ,परिवार , बच्चे , मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं । कंकड़ मतलब नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं। रेत छोटी-छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ हैं।

अब यदि हमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकड़ों के लिए जगह ही नहीं बचती । या कंकड़ भर दिए होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ।

ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि हम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहेंगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करेंगे तो हमारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिए क्या जरूरी है ये हमें तय करना है । अपनी टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है।
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छात्र  ध्यान से सुन रहे थे। अचानक एक ने पूछा , 'सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं?'

प्रोफ़ेसर मुस्कुराए । बोले ,' मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया।'
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्रों,परिचितों के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिए ।
                                                                                                                
( हो सकता है आपने इसे पहले भी पढ़ा हो। लेकिन दुबारा पढ़ने में कोई नुकसान तो नहीं हुआ होगा। यह कथा कुछ समय पहले मुझे भोपाल से पारुल बत्रा ने एक ईमेल को फारवर्ड को करते हुए भेजी थी। हम दोनों नहीं जानते कि इसे किसने लिखा है। इसलिए नाम नहीं है। जिन्होंने भी इसे लिखा है हम आभारी हैं। हां, मैंने इसे संपादित किया है। पर इतना तय है कि कथा की आत्मा को दूषित नहीं किया है। -राजेश उत्‍साही )

8 comments:

  1. सर आर्थर कॉनन डॉयल ने शर्लॉक होम्स के मार्फत कहलवाया है कि आदमी का दिमाग़ घर के अंदर बना हुआ मचान के तरह होता है जिसपर आप फालतू का सामान जब चाहिए फेंकते रहते हैं.. सब सामान ऊपर जाकर ऐड्जस्ट हो जाता है..फिर एगो टाइम अईसा आता है कि हर नया सामान कोनो न कोनो पुराना सामान को बाहर हटाकर जम जाता है...
    कुछ टेनिस बॉल हम भी समेटने का कोसिस किए थे..कुछ समय में जमा भी कर लिए थे, लेकिन लगता है बिछड़े सभी बारी बारी... खैर हँसुआ के बिआह में खुरपी का गीत, जाने दीजिए..
    हमको भी मिला था ई वाला ई मेल..लेकिन मज़ा आ गया आपका लिखा पढकर... थकान के बाद दो कप चाय का मजा...

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  2. मजा आ गया। कितने मस्त अंदाज में बात दिया जीवन का सच।

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  4. जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्रों,परिचितों के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिए ।
    ....बहुत भावपूर्ण सार्थक प्रस्तुति
    शिक्षक दिवस की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ

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  5. बेहतरीन पोस्ट है...हालाँकि पहले पढ़ी हुई है लेकिन प्रेरक बातें जितनी बार भी पढो अच्छी लगती हैं...शुक्रिया आपका...
    नीरज

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