आज यानी 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस है। ऐसे में शरद बिल्लौरे की दो कविताएं बहुत याद आ रही है। पहली कविता सहजता से एक सवाल करती है और उसका जवाब देती है। दूसरी कविता हमें धरती के नायाब अंग से परिचित कराती है।
Thursday, April 22, 2010
Thursday, April 15, 2010
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