यह तस्वीर 1980 के आसपास की है। इन छह लोगों में से हम तीन बहुत गहरे दोस्त रहे हैं। तीन यानी बाएं से पहले बीआर यानी बाबूराव अलवणे और दाएं से पहले आनंद गुप्ता और मैं चिलमधारी।
अलवने हम सब उसे इसी नाम से ही बुलाते और याद करते रहे हैं, बैतूल जिले के जौलखेड़ा गांव का रहने वाला था, यानी है। वह पढ़ाई के सिलसिले में होशंगाबाद आ गया था। उसने नर्मदा महाविद्यालय से पहले बीकाम और फिर एमकाम परीक्षाएं पास कीं। हमारी मित्रता उसी दौरान हुई थी। पर कालेज में नहीं कालेज के बाहर। फिर हम दोनों ने होशंगाबाद के नेहरू युवक केन्द्र में साथ-साथ नौकरी भी की। मैं एकलव्य में आ गया। बाद में उसे भी इटारसी के पास ऑर्डनेंस फैक्टरी में काम मिल गया। अलवने तब से अब तक वहीं है। मजे में। पत्नी,एक बेटी और एक बेटे के साथ। 1980 से 1985 के बीच अलवने हमारे परिवार का जैसे एक सदस्य ही बन गया था। वह मेरी बारात में गया था और मैं उसकी बारात में। उन दिनों तो पक्के दोस्त एक-दूसरे की बारात में जरूर जाते थे। वरना दोस्ती खत्म समझो। शादी के बाद कुछ दिनों तक मेल-मुलाकात चलती रही फिर सब अपनी-अपनी दुनिया में खो गए।
आनंद गुप्ता होशंगाबाद के सराफा मोहल्ले में रहता था अपने मामा के यहां। उसके पिता का निधन हो गया था। उसके मामा की हार्डवेयर की दुकान थी वहां,शायद अब भी है। आनंद भी कालेज में बीकाम और फिर एमकाम की पढ़ाई कर रहा था। पता नहीं हम तीनों की दोस्ती कैसे हो गई। शाम को मिलना हम लोगों का नियमित काम था। और फिर देर रात तक सतरास्ते के जयस्तंभ पर बैठकर देर तक दुनिया जहान की बातें करना हमारा शगल। आनंद पढ़ने-लिखने में हम तीनों में तेज था। लगातार फेल होते रहने के कारण मैं तो खैर कालेज का नियमित छात्र नहीं था। बल्कि पढ़ने-लिखने से उकता कर नेहरू युवक केन्द्र में नौकरी करने लगा था। मुझे अखबारों में लिखने और कविता-कहानी करने का शौक था। आनंद कभी-कभी कहता कि उसके एक अंकल का कहना है कि अखबार वे लोग ही पढ़ते हैं जिनके पास कोई काम नहीं होता। मैं बस सुनकर चुप रह जाता। कभी-कभी दोनों मिलकर मेरी कविता की खिल्ली उड़ाते तो मैं चिढ़कर कहता कि एक दिन ऐसा आएगा जब तुम्हारे बच्चे मेरी कविताएं अपनी पाठ्यपुस्तकों में पढ़ेंगे।
आनंद की शादी भी हो गई। हां मैं उसकी बारात में नहीं गया। जहां तक मुझे याद है वह मेरी बारात में जरूर गया था। पर हमारी दोस्ती पर कोई आंच नहीं आई। वह आजकल छिंदवाड़ा में है भारत सरकार के नेशलन सेम्पल सर्वे ऑरगनाइजेशन में। मजे में। पत्नी, एक बेटा और एक बेटी के साथ। फोन पर कभी-कभार बात होती रहती है।
फोटो में जो बाकी तीन लोग हैं उनमें से बस मुझे एक का नाम याद है। वह है अलवने के बाजू में अरविंद जैन। अरविंद इटारसी का रहने वाला था और पढ़ने के लिए होशंगाबाद आया करता था। बाद में वह फेरी लगाकर कपड़े बेचने का काम भी करने लगा था। बाकी दो के नाम याद नहीं।
यह फोटो हमने होशंगाबाद के सराफा मोहल्ले के विंध्या स्टूडियो में उतरवाई थी। उन दिनों बेलबॉटम का जमाना था और हरे रामा हरे कृष्णा की धूम। इस फोटो में मैं चिलम पी रहा हूं। पर हकीकत तो यह है कि मैंने आज तक उसे हाथ भी नहीं लगाया। हां भई उस दिन तो लगाया ही था। जब कोई इस बारे में पूछता है तो बस पुरानी फिल्म का एक डायलाग सुना देता हूं-
पान,बीड़ी,सिगरेट, तम्बाकू न शराब
अपन को तो मोहब्बत का नशा है जनाब
आज की हकीकत भी यही है।
और यह भी बता दूं कि संयोग से मेरी दो कविताएं अब सचमुच पाठ्यपुस्तकों में चल रहीं हैं। आलू मिर्ची चाय जी,कौन कहां से आए जी को एनसीईआरटी की कक्षा पांच की आसपास का विज्ञान में शामिल किया गया है। यही कविता उत्तराखंड की कक्षा पांच की पर्यावरण विज्ञान हमारे आसपास में भी है। एक और कविता खिड़की वाला पेट एनसीईआरटी की आसपास का विज्ञान में शामिल है। हां यह अलग बात है कि अलवने और आनंद के बच्चों ने इन्हें अपनी पाठ्यपुस्तकों में नहीं पढ़ा।
** राजेश उत्साही
** राजेश उत्साही
जरूर किसी श्वेत श्याम चलचित्र का दृश्य है
ReplyDeleteमेरा गिमाग नहीं काम कर रहा है...
ReplyDelete.
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_26.html
गांजा चल रहा है.
ReplyDeleteपान,बीड़ी,सिगरेट, तम्बाकू न शराब
ReplyDeleteinme bhi aachchhi dosti hai.
jahaan chaar yaar na na three idiot mil jaye wahaan jiwan de gujaar.....
ReplyDeletersthawait.blogspot.com
mujhe laga kisi natak ka drishya hai . aapko bahut din se dekh rahaa hoon vishvaas nahi hota ki is hippi cut ka asar aap par bhi raha hoga . hum intejaar kar rah hain ki aap 26th yaani nirmala ji waale adhyaay per kab aanewaale hai .aap dono ko shaadi ki 25th salgirah ki bahut bahut badhaai advance me .
ReplyDeleteapka blog padke achcha laga apke bare main suna tha pada pehli bar
ReplyDeleteआलू मिर्ची चाय जी.....बहुत अच्छी तरह याद थी .. आज भी १-२ पैरे आराम से सुना सकता हूँ..:)
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