( यह लेख मुझे http://apkikhabar.blogspot.com पर पढ़ने को मिला। रस्किन बॉण्ड् ऐसे रचनाकार हैं,जिनका लेखन दिल की गहराईयों तक उतर जाता है। उनके इस छोटे से लेख को मैं जितनी बार पढ़ता हूं,मुझे वह नए अर्थ देता है,नई उर्जा देता है। मैं यहां उसका संपादित अंश दे रहा हूं।)
खुशी उतनी ही दुर्लभ है, जितनी कि तितली। हमेशा खुशी के पीछे-पीछे नहीं भागना चाहिए। अगर आप शांत, स्थिर बैठे रहेंगे तो हो सकता है कि वह आपके पास आए और चुपचाप आपकी हथेलियों पर बैठ जाए। लेकिन सिर्फ थोड़े समय के लिए। उन छोटे-छोटे कीमती लम्हों को बचाकर रखना चाहिए क्योंकि वे बार-बार लौटकर नहीं आते।
इस पृथ्वी ग्रह पर अपने 75 वर्षो के जीवन में मैंने क्या सीखा बिलकुल ईमानदारी से कहूं तो बहुत थोड़ा। बड़ों और दार्शनिकों पर भरोसा मत करो। प्रज्ञा उम्र के साथ नहीं आती है। यह आपके साथ ही पैदा होती है। या तो आपके पास प्रज्ञा होती है या नहीं होती है। ज्यादातर समय मैंने बुद्धि की जगह हमेशा अपने मन, अपने संवेगों की आवाज सुनी है और इसकी परिणति हुई है खुशी में।
सुबह सूरज का उगना, दिन का गुजरना और फिर सूरज का ढल जाना। सब बिलकुल अलग होता है। गोधूली, शाम और फिर रात का उतरना। सब एकदम जुदा-जुदा। हमारे चारों ओर ये जो कुछ भी फैला हुआ है, उसके बारीक, गहरे फर्क को हमें समझना चाहिए क्योंकि हम यहां जिंदगी से प्रेम करने, उसे गुनने-बुनने के लिए हैं। किसी दफ्तर के अंदर बैठकर पैसे कमाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन कभी-कभी अपनी खिड़की से बाहर देखना चाहिए और देखना चाहिए बाहर बदलती हुई उन रोशनियों की तरफ। रात की हजार आंखें होती हैं और दिन की सिर्फ एक। लेकिन लाखों लोगों की जिंदगियों में रोशनी बिखेरने वाला वही चमचमाता हुआ सूरज है।
खुशी का रिश्ता मनुष्य के स्वभाव और संवेगों से भी होता है और स्वभाव एक ऐसी चीज है, जिसके साथ आप पैदा होते हैं, जिसे हमने अपने नजदीक या दूर के पुरखों से पाया होता है और प्राय: हम उनके सबसे खराब जीन को ही अपनी जिंदगी में ढोते हैं : चिड़चिड़ा स्वभाव, अनियंत्रित अहंकार, ईष्र्या,जलन, जो अपना नहीं है उसे हड़प लेने की प्रवृत्ति।
और भाग्य, क्या भाग्य जैसी कोई चीज होती है,लगता है कि कुछ लोगों के पास दुनिया का सारा सौभाग्य है। या यह भी आपके स्वभाव और संवेगों से जुड़ी बात ही है, जो स्वभाव ऐसा है कि खुशी के पीछे भागता नहीं फिरता है, उसे ढेर सारी खुशी मिल जाती है। नर्म, संतोषी और कोई अपेक्षा न करने वाले स्वभाव को तकलीफ नहीं होती। वहीं दूसरी ओर जो अधीर, महत्वाकांक्षी और ताकत की चाह रखने वाले हैं, वे कुंठित होते हैं। भाग्य उन लोगों के साथ-साथ चलता है, जिनका मन थोड़ा स्वस्थ होता है और जो रोजमर्रा की जिंदगी के संघर्ष से टूट-बिखर नहीं जाते,जिनमें उसका सामना करने की हिम्मत होती है।
मैं बहुत ज्यादा किस्मतवाला हूं। तकदीर का धनी रहा हूं मैं। मुझे सभी भगवानों का पूरा आशीर्वाद मिला है। मैं किसी खास गहरी निराशा, अवसाद और दुख के बगैर ही पचहत्तर साल की इस बूढ़ी और प्रौढ़ अवस्था तक आ चुका हूं। मैंने सीधा-सादा, साधारण और ईमानदार जीवन जिया है। मैंने वे काम किए, जिसमें मुझे सबसे ज्यादा आनंद आता था। मैंने शब्दों को आपस में जोड़-जोड़कर कहानियां गढ़ी और सुनाईं। मैं जिंदगी में ऐसे लोगों को पाने में सफल रहा, जिनसे मैं प्रेम कर सकता और जिनके लिए जी सकता।
क्या यह सब बस यूं ही अचानक हो गया, सब सिर्फ अचानक ही घट गई किस्मत की बात थी या सबकुछ पहले से ही नियत और तयशुदा था या फिर यह मेरे स्वभाव में ही था कि मैं किसी दुख,घाव या चोट के बिना अपनी जिंदगी की यात्रा में इस आखिरी पड़ाव तक पहुंच पाया।
sundar lekh!!
ReplyDeleteshubhkamnaye!!!
likhate rahiye.....
आपकी तस्वीर बड़ी स्पष्ट है, बेहद उत्साह भरी। लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeletebahut hi sahi baat kahi..........santoshi ke pass sab hota hai kyunki usse bada dhan aur kuch nhi hota.
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