जून के तपते दिनों में जयपुर में था। वहां दो लगातार दिन दिगन्तर और संधान संस्थाओं में जाना हुआ। दोनों ही संस्था एं शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं। दिगन्तर में शिक्षकों की एक कार्यशाला चल रही थी। उसमें लगभग 30 शिक्षक भाग ले रहे थे। अपना परिचय देने के क्रम में मैंने पूछा कि कितने शिक्षकों ने आलू,मिर्ची,चाय जी गीत गाया है। 15 ऐसे शिक्षक थे जो इस गीत को गाते रहे हैं। हालांकि वे यह नहीं जानते थे कि इसका लेखक कौन है। फिर भी मुझे इस बात की खुशी थी कि मेरा लिखा गीत यहां गाया जा रहा है।
अगले दिन संधान में जाना हुआ। वहां लोगों ने मुझे इस रूप में पहचाना कि मैं आलू,मिर्ची,चाय जी गीत का लेखक हूं। इन दोनों अनुभवों ने मुझे बताया कि रचना अमर होती है। और उसके साथ उसका लेखक भी अमर हो जाता है।
संधान की बैठक में मेरे साथ एकलव्य में मेरे सहकर्मी रहे और अब अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में राजस्थान प्रमुख गौतम पांडेय भी थे। गीत के बारे में वे पहले से जानते रहे हैं। उसकी लोकप्रियता का एक उदाहरण उन्होंने यहां देखा।
राजस्थान से लौटने के कुछ समय बाद उनका फोन आया कि वे उस गीत को अपने न्यूजलैटर में छापना चाहते हैं। कहां मिलेगा। मैंने उन्हें स्रोत बता दिए। फिर सोचा क्यों न गुल्लक में भी दे दूं। वैसे गुल्लक में पहली ही पोस्ट इस गीत की है। पर वह संशोधित गीत है। चकमक के प्रवेशांक यानी जुलाई,1985 में जो गीत छपा था वह इस तरह है-
आलू,मिर्ची,चाय जी
कौन कहां से आए जी
सात समुंदर पार से
दुनिया के बाजार से
व्यापार से,उपहार से
जंग-लड़ाई मार से
हर रस्ते से आए जी
आलू,मिर्ची,चाय जी
दक्षिण अमरीकी मिर्चीरानी
मसालों की है पटरानी
मूंगफली,आलू,अमरूद
धूम मचाते करते उछलकूद
साथ टमाटर आए जी
आलू,मिर्ची,चाय जी
भिंडी है अफ्रीका की
भूरी-भूरी कॉफी भी
नक्शे में है यूरोप किधर
वहीं से आए गोभी मटर
चाय असम की बाई जी
आलू,मिर्ची,चाय जी
चीन से सोयाबीन चली
अमरीका को लगी भली
घूम-घाम कर लौटी देश
उसमें हैं गुण कई विशेष
रोब जमाकर आई जी
आलू,मिर्ची,चाय जी
बैंगन,मूली,सेम,करेला
आम,संतरा,बेर और केला
पालक,परवल,टिंडा,मैथी
हैं भाई-बहन ये सब देशी
भारत की पैदायश जी
आलू,मिर्ची,चाय जी
कौन कहां से आए जी
*राजेश उत्साही
अगर यह फिल्म में ली जाती तो इसे अशोक कुमार जी ने गाया होता। बहुत सुंदर गीत।
ReplyDeleteआलू मिर्ची चाय जी
जो चाहे पी जाए जी
अविनाश जी शुक्रिया।
ReplyDeleteAaloo mirchi chaye ji
ReplyDeletelekhak Rajesh Utsaheeji
Bhashaa sunder aur saral hai
mujhe bahut hi bhaee jee.
I am singing this song since i was in Bal sahitya kendra. We also made a poster on this song at that time. Such a nice experience for remembering this.Thank u.
ReplyDeleteक्या मिस धीरज से मुलाकात हुई वो वही कार्यरत है
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