Monday, April 14, 2008

एक गीत के तेईस साल

आलू मिर्ची चाय जी  गीत को लिखे तेईस साल से ज्यादा समय हो गया है। यह चकमक के प्रवेशांक जुलाई 1985 में प्रकाशित हुआ था। इस अंक में आलू मिर्ची चाय जी, कौन कहाँ से आए जी शीर्षक से सीएन सुब्रहमण्‍यम का एक लेख था। चकमक के संपादक मंडल ने तय किया था की हर अंक में मुख्य लेख पर आधारित एक कविता या गीत भी दिया जाएगा। यह गीत उक्त लेख पर आधारित है। चकमक के पहले तीन अंकों तक यह क्रम चला लेकिन फिर यह क्रम टूट गया। 
आलू मिर्ची गीत बच्‍चों के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ। इसे लोकप्रिय बनाने में मप्र के देवास जिले के चकमक क्‍लबों की बड़ी भूमिका है। उनके हर कार्यक्रम में यह गीत अनिवार्य रूप से गाया जाता था। बच्‍चे कार्यक्रम की शुरुआत ही इस गीत से करते थे। आज भी यह गीत बच्‍चों के बीच उतना ही लोकप्रिय है। मैं उन सब साथियों का बहुत आभारी हूँ,जिन्‍होंने इसे लोकप्रिय बनाने में योगदान दिया। इस गीत का उपयोग शिक्षक अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी करते हैं। एकलव्‍य के मेरे पुराने साथी,जो अब समावेश में हैं, रामनारायण स्‍याग जिन्‍हें मैं स्‍याग भाई कहता हूं। जब भी मेरा किसी से परिचय करवाते हैं इस गीत का जिक्र जरूर करते। और यह शिकायत भी करते हैं कि मैंने ऐसे गीत और क्‍यों नहीं लिखे। मैं उसने कहा था  के लेखक गुलेरी जी के पांव की धूल भी नहीं हूं। पर गुलेरी जी की ही तरह मैं भी एक गीत लिखकर यादगार बन गया हूं। ‍

1987 में भोपाल हुए जनविज्ञान जत्‍था सम्‍मेलन के अवसर जारी जनविज्ञान गीतों के ऑडियो कैसेट में यह गीत था। बाद में हरियाणा विज्ञान मंच द्वारा बनाए गए ऐसे ही एक अन्‍य कैसेट में भी यह गीत शामिल था। 2007 में इस रूमटूरीड ने पोस्‍टर के रूप में छापने की इच्‍छा व्‍यक्‍त की। जैसा कि जाहिर है गीत मोटे रूप में विभिन्‍न सब्‍जियों के इतिहास को बताता है।‍ रूमटूरीड ने गीत में दिए गए कुछ तथ्‍यों पर सवाल उठाए। वास्‍तव में 1985 से 2007 के बीच तमाम नई खोजें हुई हैं और नए तथ्‍य सामने आए हैं। रू‍मटूरीड ने कहा कि अगर नए तथ्‍यों को ध्‍यान में रखकर गीत को पुन: रचा जाए तो बेहतर रहेगा। यह मेरे लिए एक चुनौती थी। मैंने इस चुनौती को स्‍वीकार किया। इंटरनेट पर अपने छोटे बेटे उत्‍सव पटेल की मदद से तथ्‍यों की जॉंच की और पाया कि सचमुच नए तथ्‍य सामने आए हैं। इन तथ्‍यों को लेकर सीएन सुब्रहमण्‍यम से भी बात की । पूरी तरह संतुष्‍ट होने के बाद मैंने गीत में कुछ परि‍वर्तन किए। परिवर्तित गीत भी रूमटूरीड को उतना ही अच्‍छा लगा। उन्‍होंने इसे 23/36 के साइज में प्रकाशित किया है। इसके चित्र बनाए हैं बंजारा ने। लेकिन मजेदार बात यह है कि बच्‍चों को अभी भी पुराना गीत ही ज्‍यादा पसन्‍द है। मुझे भी।


राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद ने 2008 में अपनी पाठय पुस्‍तकों में बदलाव किए हैं। आलू मिर्ची को कक्षा पांच की पर्यावरण पुस्‍तक आसपास में शामिल किया गया है। इस किताब में चकमक के दूसरे अंक में प्रकाशित मेरे एक अन्‍य गीत खिड़की वाले पेट को भी शामिल किया गया है।यह गीत अब उत्‍तराखंड शिक्षा विभाग की कक्षा पांच की पर्यावरण अध्‍ययन किताब में भी है और बिहार शिक्षा विभाग की कक्षा पांच की किताब में भी। इस गीत के यानी आलू मिर्ची के किस्‍से और भी हैं। ‍


आलू मिर्ची  जिंदगी में सबसे अधिक गाया : संदीप नाईक
जैसा कि मैंने लिखा था आलू मिर्ची गीत के किस्‍से और भी हैं। तो किस्‍से आने शुरू हो गए हैं। संदीप नाईक ने यह राज खोला है कि अपनी 42 साल की जिंदगी में उन्‍होंने बहुत सारे गीत याद किए और तमाम जगह गाए। लेकिन उनमें सबसे ज्‍यादा बार आलू मिर्ची चाय जी गाया। संदीप मेरे बहुत अच्‍छे मित्र हैं। वे बहुत अच्‍छे गायक हैं। एकलव्‍य की ग्रुप मीटिगों में उनकी म‍हफिल रात-रात भर चलती थी। पिछले आठ-दस सालों से वे भोपाल में हंगर प्रोजेक्‍ट के मप्र के राज्‍य समन्‍वयक हैं। जहां तक मैं जानता हूं उन्‍होंने अपना कैरियर एकलव्‍य के देवास केन्‍द्र से ही शुरू किया था। बल्कि वे देवास केन्‍द्र में पुस्‍तकालय आदि में आने वाले युवाओं में शामिल थे। फिर उन्‍होंने एकलव्‍य में कोई दस-बारह साल काम‍ किया। यह वही समय था जब आलू मिर्ची चाय जी देवास,उज्‍जैन के आसपास के गांवों में बच्‍चे-बच्‍चे की जुबान पर था। संदीप ने लिखा है कि जब वे गांव में जाते थे, तो बच्‍चे कहते थे आलू मिर्ची वाले आ गए। यह इसलिए क्‍योंकि संदीप बच्‍चों के बीच इस गीत को जरूर गाते थे। बहुत से बच्‍चे जो अब युवा हो गए हैं संदीप को अब भी मिर्ची वाला कहते हैं। शुक्रिया संदीप भाई। 


आलू मिर्ची के चाहने वाले और भी हैं...
मुझे पता है संदीप की तरह और भी कई मित्र हैं जो इस गीत को बच्‍चों के बीच लगातार लोकप्रिय बनाने में लगे रहे हैं। इनमें देवास एकलव्‍य के रविकांत मिश्र और उज्‍जैन एकलव्‍य के प्रेम मनमौजी का नाम तो मैं ले ही सकता हूं। होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम के एक स्रोत शिक्षक कमलनयन चांदनीवाला इस गीत को इस अदा से गाते थे कि सुनते ही नहीं देखते भी बनता था। चकमक क्‍लब से निकले गजानंद और शाकिर पठान अब भी इस गीत का उपयोग करते ही रहते हैं। परासिया,छिदंवाड़ा में होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम के स्रोत प्राध्‍यापक डॉ विजय दुआ का यह प्रिय गीत है। तो मैं आप सबको आमंत्रित करता हूं कि जिसके पास जो भी किस्‍सा हो इस गीत का, कृपया मुझे भेजें। संदीप ने शुरुआत कर दी है।

चाहने वाले जयपुर में भी हैं....
जून के तपते दिनों में जयपुर में था। वहां दो लगातार दिन दिगन्तर और संधान संस्थाओं में जाना हुआ। दोनों ही संस्थाएं शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं। दिगन्तर में शिक्षकों की एक कार्यशाला चल रही थी। उसमें लगभग 30 शिक्षक भाग ले रहे थे। अपना परिचय देने के क्रम में मैंने पूछा कि कितने शिक्षकों ने आलू,मिर्ची,चाय जी गीत गाया है। 15 ऐसे शिक्षक थे जो इस गीत को गाते रहे हैं। हालांकि वे यह नहीं जानते थे कि इसका लेखक कौन है। फिर भी मुझे इस बात की खुशी थी कि मेरा लिखा गीत यहां गाया जा रहा है।
अगले दिन संधान में जाना हुआ। वहां लोगों ने मुझे इस रूप में पहचाना कि मैं आलू,मिर्ची,चाय जी गीत का लेखक हूं। इन दोनों अनुभवों ने मुझे बताया कि रचना अमर होती है। और उसके साथ उसका लेखक भी अमर हो जाता है।

संधान की बैठक में मेरे साथ एकलव्य में मेरे सहकर्मी रहे और अब अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में राजस्थान प्रमुख गौतम पांडेय भी थे। गीत के बारे में वे पहले से जानते रहे हैं। उसकी लोकप्रियता का एक उदाहरण उन्होंने यहां देखा।

राजस्थान से लौटने के कुछ समय बाद उनका फोन आया कि वे उस गीत को अपने न्यूजलैटर में छापना चाहते हैं। कहां मिलेगा। मैंने उन्हें स्रोत बता दिए। फिर सोचा क्यों न गुल्लक में भी दे दूं। वैसे गुल्लक में पहली ही पोस्ट इस गीत की है। पर वह संशोधित गीत है। 
चकमक के प्रवेशांक यानी जुलाई,1985 में जो गीत छपा था वह इस तरह है-

आलू,मिर्ची,चाय जी
कौन कहां से आए जी

सात समुंदर पार से
दुनिया के बाजार से
व्यापार से,उपहार से
जंग-लड़ाई मार से

हर रस्ते से आए जी
आलू,मिर्ची,चाय जी

दक्षिण अमरीकी मिर्चीरानी
मसालों की है पटरानी
मूंगफली,आलू,अमरूद
धूम मचाते करते उछलकूद

साथ टमाटर आए जी
आलू,मिर्ची,चाय जी

भिंडी है अफ्रीका की
भूरी-भूरी कॉफी भी
नक्शे में है यूरोप किधर
वहीं से आए गोभी मटर

चाय असम की बाई जी
आलू,मिर्ची,चाय जी

चीन से सोयाबीन चली
अमरीका को लगी भली
घूम-घाम कर लौटी देश
उसमें हैं गुण कई विशेष

रोब जमाकर आई जी
आलू,मिर्ची,चाय जी

बैंगन,मूली,सेम,करेला
आम,संतरा,बेर और केला
पालक,परवल,टिंडा,मैथी
हैं भाई-बहन ये सब देशी

भारत की पैदायश जी
आलू,मिर्ची,चाय जी
कौन कहां से आए जी
         *राजेश उत्साही

और यह रूमटूरीड द्वारा प्रकाशित संस्‍करण
आलू मिर्ची चाय जी
कौन कहाँ से आये जी

सात समुंदर पार से
दुनिया के बाजार से
व्यापार से, उपहार से
जंग-लड़ाई मार से

हर रस्ते से आये जी
आलू, मिर्ची, चाय जी

मेक्सिकन है अमरुद
मिर्ची ने जहाँ पाया रुप
दक्षिण अमेरिका में पली
आलू के साथ मूंगफली

साथ टमाटर भाये जी
आलू, मिर्ची, चाय जी

नक्शे में यूरोप है जो भी
जन्मे हैं वहाँ मूली- गोभी
भिंडी हरी अफ्रीका की
भूरी-भूरी कॉफी भी

दुनिया भर में छाए जी
आलू, मिर्ची,चाय जी

चीन से सोयाबीन चली
अमेरिकन को लगी भली
धूम मचा कर लौटी देश
उसमें हैं गुण कई विशेष

चाय चीन की ताई जी
आलू, मिर्ची,चाय जी

बेंगन,सेम,करेला,कटहल
गिल्की,अदरक,टिंडा,परवल
आम,संतरा,काली मिर्ची
भाई-बहन है सब देशी

भारत की पैदाइश जी
कौन-कहाँ से आये जी

आलू,मिर्ची,चाय जी!

  0 राजेश उत्साही (2007)

1 comment:

  1. GREAT RAJESH
    PLEASE KEEP IT UP.
    I WILL NOT SAY LAGE RAHO MUNNA BHAI.
    THIS PHRASE HAS BEEN GIVEN SOME DIFFRENT SHADES AND YOU KNOW LANGUAGE MATTERS TO ME!
    BUT I DO WISH THAT YOU SHOLD KEEP YOUR CREATIVITY ON THE HIGHEST PITCH.

    PLEASE ALWAYES KEEP A SAFE SPACE FOR YOUR OWN SELF TO THINK AND ACT.
    LOTS OF LOVE RAJESH
    RAMESH THANVI

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