Tuesday, October 15, 2013

पापा, मैं बूढ़ा नहीं होऊंगा..



छोटे बच्‍चे अपनी जिज्ञासा और कौतुहल में कई बार ऐसी बातें करते हैं कि हम चकित रह जाते हैं। वास्‍तव में वे उनकी स्‍वाभाविक बातें ही होती हैं। छोटा बेटा उत्‍सव पांच या छह साल का रहा होगा। मेरी दादी की मृत्‍यु उसके जन्‍म के लगभग पांच साल पहले हो गई थी। उनकी तस्वीर घर में लगी है। वह जब समझने लगा तो उसने पूछा कि ये कौन हैं और कहां हैं। मैंने उसे बताया कि यह हमारी दादी हैं और अब नहीं हैं, इनकी मृत्‍यु हो गई है।
- मृत्‍यु माने।
- मर जाना।
- तो वे क्‍यों मर गईं ?
- उनका शरीर बूढ़ा हो गया था।
- तो क्‍या हुआ।
- बूढ़े होने पर उनके अंग कमजोर हो गए थे।
- फिर?
- अंगों ने काम करना बंद कर दिया।
- और वे मर गईं?
- हां।  
- अच्‍छा।
मुझे नहीं मालूम 'मृत्‍यु' या 'मरने' का अर्थ वह किस तरह समझता था। पर उस समय उसने इसके आगे उसने कोई सवाल नहीं किया। बात आई गई होगी। उसका तरीका यही था, वह कोई चीज पूछता, उसके बारे में कुछ जानने की कोशिश करता और फिर एक हद पर पहुंचकर रुक जाता। शायद प्राप्‍त की गई जानकारियों को आपस में जोड़कर अपनी एक समझ बनाने की कोशिश कर रहा होता था। यह एक स्‍वाभाविक प्रक्रिया ही है।  

फिर एक और दिन आया। उत्‍सव ने अपने जन्‍मदिन पर अपनी दादी यानी मेरी मां के पैर छुए। मां आर्शीवाद स्‍वरूप उत्‍सव के सिर पर हाथ फेरते हुए कुछ बुदबुदाईं।

कुछ समय बाद हम किसी काम से बाजार जाना हुआ। स्‍कूटर पर पीछे कबीर बैठा था और आगे उत्‍सव हैंडिल में लगी रॉड पकड़े खड़ा था चुपचाप। अमूमन वह स्‍कूटर पर बैठते ही सवालों की झड़ी लगा देता था। यह क्‍यों हो रहा है, वह क्‍या है, हम कहां जा रहे हैं, क्‍या करेंगे, आदि आदि। आज वह चुप था। मैंने नोटिस किया था कि जब वह नाराज होता है तो चुप लगा जाता है। देर तक किसी से बात नहीं करता। और उससे ज्‍यादा पूछने की कोशिश करो,तो एकदम फट पड़ता है। इसलिए हमने भी यह तरीका निकाला था कि जब तक वह चुप रहना चाहे उसे रहने दिया जाए। मैं समझ गया था कि कुछ हुआ है जिससे महाशय नाराज हैं। अंतत: उसने अपनी चुप्‍पी तोड़ी। बोला,
-पापा मैं तो बूढ़ा नहीं होऊंगा। आप दादी को मना कर देना ऐसा कहने के लिए।
-क्‍यों, आप बूढे क्‍यों नहीं होओगे?
-बूढे़ होने पर तो मर जाते हैं न।
-ऐसा किसने कहा?
-आपने ही तो बताया था।
-कब?
-आपने बताया था कि आपकी दादी इसलिए मर गईं कि वे बूढ़ी हो गईं थीं।

मैं हतप्रभ था, उसके इस तर्क के लिए। उससे यह संवाद लगभग छह माह पहले हुआ था। उस संवाद से उसकी यह अवधारणा बनी थी कि बूढ़े होने पर मृत्‍यु हो जाती है। असल में आज जब वह अपनी दादी के पैर छू रहा था तो उन्‍होंने उसे आर्शीवाद देते हुए यही कहा था कि खुश रहो, बूढ़े होओ। उसने दोनों का संबंध आपस में जोड़ा और उससे यह निष्‍कर्ष निकाला।
उस समय मैं उससे बस यही कह पाया कि हां, कह दूंगा।  

हालांकि मुझे मालूम था कि मां के आर्शीवाद का मतलब यह है कि लम्‍बी उमर जियो।
                                                
                                         0 राजेश उत्‍साही


2 comments:

  1. बाल मन के अपने गणित होते हैं और उसी हिसाब से वो आकलन करते हैं ।

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  2. बच्चों की तर्क क्षमता सीधी होती है, कोई घुमाव नहीं।

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