राजेश उत्साही |
इतवार। मई का गर्म
इतवार। इतवार यानी आराम का दिन। पर पिछले कुछ दिनों से रूप का इतवार काम या झंझटों
का दिन ही बना जा रहा था। जैसे गए शनिवार पास के शहर में एक बैठक थी। बस की
भीड़-भाड़ से बचने के लिए रूप स्कूटर से चला गया था। धूप तेज थी। अगले दिन इतवार
को वापस लौटते समय स्कूटर का पिस्टन बैठ गया। आधा दिन स्कूटर खींचते और आधा दिन
स्कूटर ठीक कराते बीता। रूप सोच रहा था कि यह इतवार तो कम से कम आराम से बीते।
बच्चों के स्कूल में
छुट्टियां लग गई थीं। बच्चे मां के साथ अपनी ननिहाल जा रहे थे। किसी बात पर पत्नी
से तू-तू मैं-मैं हो गई थी। सुबह-सुबह मूड खराब।
स्टेशन जाने के लिए
आटो की जरूरत थी। रूप पास के स्टैंड से आटो लेने गया। वहां एक ही आटो था। आटो
वाले से संवाद कुछ इस तरह से हुआ,
-
स्टेशन
चलना है कॉलेज के पीछे से।
-
हां जी
चलो।
-
क्या
लोगे।
-
पैंतीस
होते हैं, तीस दे देना।
-
पच्चीस
ले लेना। आ जाओ।
-
अरे साब, आप लोगों की कुछ आदत ही हो गई, कम करने की।... आटो वाला झल्लाया।
-
चलना है
कि नहीं। पच्चीस ही दूंगा।.... रूप भी ताव खा गया।
-
नहीं
चलना है।.... आटो वाला लगभग चिल्लाया।
आटो वाले ने जिस
अंदाज में उत्तर दिया, रूप को लगा कि वह मजबूरी का
फायदा उठाना चाहता है। रूप की इच्छा हुई दो-चार खरी-खरी सुना दे। पर घर में पत्नी
और बच्चे इंतजार कर रहे थे। ट्रेन का समय हो रहा था। रूप बड़बडाता हुआ लौट आया।
पत्नी और बच्चों को स्कूटर से ही दो चक्कर लगाकर स्टेशन छोड़ा।
ऐसा कितनी बार होता
है कि मन करता है कि सामने वाले को उसी टोन में जवाब दिया जाए, जिसमें वह बात कर रहा है। पर बात बढ़ने की कल्पना करके
रूप मन ही मन जल-भुनकर रह जाता है।
पत्नी टिकट ले चुकी थी।
बच्चे और पत्नी सामान लेकर प्लेटफार्म पर जा चुके थे। रूप स्कूटर पार्क करने चला
गया। लौटा तब तक पत्नी तथा बच्चे ओव्हरब्रिज लगभग पार कर चुके थे।
रूप के आगे एक नवयुवती
ओव्हरब्रिज की ढलान पर चढ़ रही थी। नवयुवती ने बड़े-बड़े फूलों के प्रिंट वाली हल्के
आसमानी रंग की साड़ी पहनी थी। एक बड़ा फूल उसके नितंबों पर कदमताल के साथ दाएं-बाएं
आ-जा रहा था। कलाईयां चूडि़यों से भरी हुई थीं। हाथों में फूलों का एक गुलदस्ता था।
ओव्हरब्रिज पर ऊपर पहुंचकर जब वह मुड़ी तो रूप ने अंदाजा लगाया, वह नवविवाहिता थी। पर यह क्या कहीं कुछ खटक रहा था। चप्पल
की खट-खट कुछ अजीब-सी ध्वनि पैदा कर रही थी। हां उसने ऊंची एड़ी की चप्पल पहन रखी
थी। ऊंची एड़ी में एडी़ के नाम पर पतली कीलनुमा रचना थी। इसकी वजह से उसे चलने में
भी असुविधा हो रही थी। बार-बार उसकी साड़ी भी उसमें फंस-फंस जा रही थी।
रूप का मन हुआ, नवयुवती को रोककर कहे, ‘आप बहुत सुंदर लग रही हैं। पर अच्छा होता कि आपने यह ऊंची एड़ी
की चप्पल नहीं पहनी होती।’
पर नवयुवती क्या सोचेगी।
कहीं कुछ उल्टा-सुल्टा बोलने लगी तो बेकार में मिट्टी पलीद हो जाएगी। फिर अगले ही
पल रूप ने तय किया आज तो वह बोलकर ही रहेगा। चाहे जो हो जाए।
रूप तेज कदमों से नवयुवती
से थोड़ा आगे निकला। एक क्षण को ठिठका। बोला, ‘आप सुंदर लग रही हैं। पर ये ऊंची एड़ी की चप्पलें। कुल मेल
नहीं खा रहीं हैं।’
नवयुवती ने अचकचाकर उसे
देखा। नवयुवती वहीं ठिठककर रह गई थी। रूप उसकी प्रतिक्रिया का इंतजार किए बगैर तेज
कदमों से ओव्हरब्रिज की ढलान पर उतर गया। ट्रेन आने में अभी समय था। रूप बुकस्टाल
पर पत्रिकाएं पलटने लगा।
‘धन्यवाद।’ अचानक रूप के कानों
में एक सुरीली आवाज गूंजी।
रूप ने चौंककर देखा ।
नवयुवती उसके सामने खड़ी थी।
‘धन्यवाद। आपके इस फीडबैक के
लिए। मुझे भी लगता है ये चप्पलें इस परिधान के साथ मेल नहीं खा रही हैं।’
रूप नवयुवती को सामने
देखकर झेंप-सा गया था। जब तक वह कुछ कहता, वह आगे बढ़ गई थी। भोपाल
एक्सप्रेस प्लेटफार्म पर आ चुकी थी।
उसके परिवार को जिस ट्रेन
से जाना था, वह भी आ चुकी थी। परिवार को विदाकर वह वापस लौट रहा था। नवयुवती
एक नवयुवक की बांह में अपनी बांह डाले लौट रही थी। गुलदस्ता युवक के हाथों में था।
नवयुवती की प्रतिक्रिया
ने रूप में जैसे एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया था। उसे महसूस हुआ जैसे वह कह रही हो
सही बात कहने का साहस होना चाहिए। बाकी सारी परिस्थितियां उसके अनुकूल हो जाती हैं।
रूप ने देखा नाले पर बने
स्टैंड पर वह आटो अब भी खड़ा था। रूप ने स्कूटर उसके करीब रोका और आटो वाले से कहा, ‘सुनो। दुनिया
तुम्हारे कंधे पर ही नहीं टिकी है।’
आटो वाले को कुछ भी समझ
नहीं आया। जब तक वह समझने की कोशिश करता, तब रूप वहां
से जा चुका था।
0 राजेश उत्साही
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एकदम सटीक और सार्थक प्रस्तुति आभार
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे
बिल्कुल दुरुस्त ..पर नए बिल की वजह से अब कहने का साहस नहीं रह जाएगा...
ReplyDeleteघटनाओं से भरा इतवार, पर अन्त में कुछ भी नहीं घटा।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति....
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें..