Saturday, January 5, 2013

कल, आज और कल



यह जैसे कल ही की तो बात है। कुछ भी तो नहीं बदला है।
**
यह 1978 की फरवरी की रात है। बहुत ठंड है। बाहर भी और घर में भी। रेल्‍वे कॉलोनी में एस्बस्‍टास की छत वाले इस घर में तो और भी ज्‍यादा ठंड लगती है।  छोटी बहन रीता को अस्‍थमा की शिकायत है। ठंड बढ़ती है तो उसकी तकलीफ भी बढ़ने लगती है। शाम से बढ़ने लगी है। कोयले की सिगड़ी के चारों तरफ जमा हम सब भाई-बहन रीता को संभालने की कोशिश कर रहे हैं। दादी कह रही है, अरे विक्‍स मल दो छाती में। न हो तो जरा ब्रांडी की मालिश कर दो। अभी आराम लग जाएगा। मां कह रही हैं, मुन्‍ना कुछ कर भैया। इसकी हालत ठीक नहीं है।

पिताजी घर में नहीं हैं। घर में क्‍या वे शहर में ही नहीं हैं। वे अपनी एक ट्रेंनिग के सिलसिले में भुसावल गए हैं।  

रात के आठ बज रहे हैं। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है। ठंड के कारण सब लोग सई शाम से घरों में बंद हो जाते हैं। मैं साइकिल लेकर अपने एक दोस्‍त से सलाह करने निकल पड़ा हूं। उसने सलाह दी है कि रीता को अस्‍पताल ले जाना चाहिए, तुरंत सरकारी अस्‍पताल। अब प्राइवेट अस्‍पताल तो कोई है ही नहीं।  

मैं दोस्‍त के साथ घर वापस आता हूं। तांगा करता हूं। मां और मैं दोनों रीता को तांगे में बिठाकर जिला चिकित्‍सालय ले जा रहे हैं। अस्‍पताल में जगह नहीं है। पहली मंजिल के बरामदे में उसे फर्श पर भरती कर लिया गया है। डॉक्‍टर ने परचा बना दिया है। नर्स ने दवा बाजार से लाने के लिए परची बना दी है।

मां और दोस्‍त को वहां छोड़कर, दवा लेने दौड़ पड़ा हूं। दवा की दुकान में भीड़ है। दुकानदार कह रहा है, जरा सब्र रखो। जल्‍दी है तो दूसरी दुकान पर चले जाओ।

लौटकर देखता हूं रीता चुपचाप लेटी है। ऑक्‍सीजन की नली उसकी नाक में ठुंसी हुई है। दोस्‍त अपने दोनों हाथ सीने पर बांधकर एक किनारे खड़ा हुआ है। दोस्‍त बताता है नली की अकबकाहट ने रीता की सांस को और उखाड़ दिया था। और वह ऐसी उखड़ी कि उसके प्राण ले उड़ी। मां, उसके सिरहाने बैठीं अपनी रूलाई रोकने की कोशिश कर रही हैं।

डाक्‍टर कह रहा है..घर ले जाओ..कुछ नहीं बचा है अब। रोना,गाना घर जाकर करो। यहां और मरीजों को तकलीफ होगी।

मैं अपनी आंख में अंगारे भरे, तेरह साल की रीता की ठंडी देह को अपने दोनों हाथों में उठाए सीढि़यां उतर रहा हूं। मां रेलिंग का सहारा लेकर उतर रही हैं।

दोस्‍त सीने पर हाथ बांधे आगे-आगे दूरी बनाकर चल रहा है।  

मृतदेह को ले जाने के लिए तांगेवाले भी तैयार नहीं हैं। मां को रीता के शव के पास बिठाकर कुछ इंतजाम करने निकलता हूं। आखिर एक परिचित का हाथ ठेला मिलता है, उसी पर उसका शव लेकर लौटता हूं।
**
कल की तो बात है।
इन बीते सालों में कितनी बार यह घटना याद आती रही। हर बार मैं सोचता हूं, आखिर दोस्‍त ने रीता की मृत देह को हाथ क्‍यों नहीं लगाया? उसे अस्‍पताल की पहली मंजिल से नीचे लाने में मेरी मदद क्‍यों नहीं की? क्‍यों नहीं उसने डाक्‍टर को उसकी असंवेदनशीलता के लिए बुरा-भला कहा? क्‍यों उसने किसी तांगे वाले को डांटकर अपने कर्त्‍तव्‍य की याद नहीं दिलाई? क्‍यों नहीं वह कुछ और इंतजाम होने तक वहां रूका ?

आज फिर से सोच रहा हूं। जैसे यह कल की नहीं आज ही की तो बात है।                            0 राजेश उत्‍साही
                                                             
  

14 comments:

  1. समाज की असंवेदना अन्दर तक झंकझोर देती है, सच में अभी भी कुछ नहीं बदला है।

    ReplyDelete
  2. और उसे आप आज भी दोस्त कह रहे हैं ??

    ReplyDelete
  3. दर्दनाक !
    जब किस्मत ही साथ न दे तो दोष किसे दें।

    ReplyDelete
  4. संवेदनहीनता को ही मैं इस सबके लिये जिम्मेदार मानती हूँ. हम सबको अपने अंदर की अवाज़ को दबा नहीं देना है.

    ReplyDelete
  5. कुछ लोग परामर्श देते हैं,अपनी उपस्थिति भी दर्ज करते हैं ............ पर सच प्रश्न बनकर ठिठुरता है . आपको मैं भागते देखती रही और रुलाई रोके माँ को .... ज़िन्दगी बहुत कुछ देखना सीखा देती है

    ReplyDelete
  6. bahut achchha lika hai Rajesh bhai, bina kisi raag lapet ke humare samaj ki kadvi sachchaai tikhi sui ki tarah chubh gayi.

    ReplyDelete
  7. बेहद कष्टदायक ...

    ReplyDelete
  8. कुछ यादें जिंदगी भर साथ रहती हैं। हौसला रखो मेरे दोस्त।

    ReplyDelete
  9. दयानिधि वत्सJanuary 11, 2013 at 7:35 PM

    नैतिकता से भरे इस देश में सब कुछ सम्भव है।

    ReplyDelete
  10. बुरे दिन कभी जेहन से नहीं जाते ..ऐसे दोस्त दोस्त कहाँ होते हैं ....
    ऑंखें नम कर गयी पोस्ट

    ReplyDelete
  11. क्या कहूं...इतने साल गुजर गए...मगर दर्द अपनी जगह कायम है। कुछ सवालों के जवाब आप हमेशा ही तलाशते रहते हैं...

    ReplyDelete
  12. ऐसे पलों में साथ देने वाले और साथ न देने वाले दोनों जीवन भर याद रहते हैं। भाई और बहन तो कभी नहीं भूल सकते हैं।

    ReplyDelete

जनाब गुल्‍लक में कुछ शब्‍द डालते जाइए.. आपको और मिलेंगे...