Saturday, August 11, 2012

एक या अधिक !

                                                                                     राजेश उत्‍साही 

एक आवासीय स्‍कूल में बच्‍चों के लिए फल रख हुए थे। वहां एक तख्‍ती लगी थी कि,‘केवल एक ही फल लें। क्‍योंकि भगवान इस बात की निगरानी कर रहे हैं कि कौन एक से अधिक से लेता है।’

एक दूसरी जगह बच्‍चों के लिए चॉकलेट रखीं थीं। वहां भी यही चेतावनी लिखी थी। लेकिन वहां किसी बच्‍चे ने अपनी तोतली हस्‍तलिपि में लिखकर लगा दिया था,'एक से अधिक चॉकलेट ली जा सकती हैं,क्‍योंकि भगवान फिलहाल फल की निगरानी में व्‍यस्‍त हैं।’
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एक दोस्‍त ने यह एसएमएस भेजा था। पढ़ने में वह एक चुटकुले की तरह और मासूमियत भरा लगता है।पर उसमें कितनी तर्कसंगत बात छुपी है,जिसे हम धीरे-धीरे भूलते जाते हैं। और बस मान लेते हैं कि जो कहा जा रहा है वह सही है।
                                       0 राजेश उत्‍साही

Sunday, August 5, 2012

सायना : कहना था ‘न'

                                                                         राजेश उत्‍साही 

सायना तुमने जिंदगी में पता नहीं कितनी बार अनचाही चीजों के लिए न कहा होगा। एक दृढ़निश्‍चय के साथ न कहा होगा। तभी तुम इस मुकाम पर पहुंच सकी हो।
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तुम्‍हें इस बार भी न कहना चाहिए था।
तुमने शायद कहा भी।
पर तुम्‍हें स्‍पष्‍ट रूप से न कहना चाहिए था।
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तुम्‍हें यह पदक स्‍वीकार नहीं करना चाहिए था।
तुम वह नहीं जीती हो जिसके जीतने पर यह पदक मिलता है।
यह पदक केवल भारत के लिए एक संख्‍या है।
जहां तक इतिहास की बात है तो तुम वह तो पहले ही रच चुकी थीं,जब सेमीफायनल में पहुंची थीं। ओलम्पिक खेलों में भारत की तरफ से बैडमिंटन प्रतियोगिता के सेमीफायनल में पहुंचने वाली तुम पहली खिलाड़ी बन ही गईं थीं।
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एक खिलाड़ी,भारतीय खिलाड़ी,के तौर पर तुम सचमुच सर्वश्रेष्‍ठ हो। पदक न लेंती, तब भी रहतीं।
एक व्‍यक्ति के तौर पर तुम्‍हारा कद कहीं और ऊंचा होता,काश तुमने न कहा होता।
न कहना तुम्‍हें और गौरव देता सायना।                0 राजेश उत्‍साही   

Saturday, August 4, 2012

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                                                                                 राजेश उत्‍साही 

-अन्‍ना ने बहुत बुरा किया।
-हां यार सचमुच।
-अब कैसे मिटेगा भ्रष्‍टाचार इस देश से।
-उनसे ही कुछ उम्‍मीद थी।
दोनों राज्‍य परिवहन की बस में सवार थे। टिकट टिकट.... कंडक्‍टर ने आवाज लगाई।
-दो टिकट कोदंडराम नगर।
-चौदह रूपए।
पहले ने बीस का नोट आगे किया।
कंडक्‍टर ने दस का नोट वापस किया और आगे बढ़ गया।
-भाई साहब टिकट..।
-अरे छोड़ो न यार,क्‍या करोगे।...कंडक्‍टर मुस्‍कराया।
और दोनों फिर से चर्चा में डूब गए।
-बहुत भ्रष्‍टाचार है इस देश में।...पहला बड़बड़ाया।
-कैसे जाएगा ये।...दूसरे ने फिर चिंता जताई।
                               0 राजेश उत्‍साही