शहर के लगभग बाहर पत्थर तोड़ने वालों की बस्ती में मजदूरों की दयनीय स्थिति देखकर उनके बीच कुछ काम करने की इच्छा हुई।
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बस्ती के हमउम्र लड़के और उनसे छोटे बच्चे मेरी बातें रुचि और ध्यान से सुन रहे थे। शायद कुछ कल्पनाओं में अपने आपको फुटबाल,व्हालीबॉल खेलते हुए,पढ़ते हुए भी देखने लगे थे। उनकी सपनीली आंखों में मुझे भी वह सब नजर आ रहा था।