Saturday, October 30, 2010

नुमाइंदे : एक लघुकथा

शहर के लगभग बाहर पत्‍थर तोड़ने वालों की बस्‍ती में मजदूरों की दयनीय स्थिति देखकर उनके बीच कुछ काम करने की इच्‍छा हुई।
*
बस्‍ती के हमउम्र लड़के और उनसे छोटे बच्‍चे मेरी बातें रुचि और ध्‍यान से सुन रहे थे। शायद कुछ कल्‍पनाओं में अपने आपको फुटबाल,व्‍हालीबॉल खेलते हुए,पढ़ते हुए भी देखने लगे थे। उनकी सपनीली आंखों में मुझे भी वह सब नजर आ रहा था।

Tuesday, October 26, 2010

मैं कहता हूं

साधारणतया 
मौन अच्‍छा है,
किन्‍तु मनन के लिए 
जब शोर हो चारों ओर
सत्‍य के हनन के लिए 

तब तुम्‍हें अपनी बात 
ज्‍वलंत शब्‍दों में कहनी चाहिए  

सिर कटाना पड़े या न पड़े  
तैयारी तो उसकी होनी चाहिए ।  
                                                               0   भवानी प्रसाद मिश्र

Friday, October 22, 2010

विकल्‍प : एक और लघुकथा

‘डॉक्‍टर साहब!’
‘हूं।’
‘क्‍या आपको ऐसा कोई अधिकार नहीं है ?’
‘कैसा?’ डॉक्‍टर ने इंजेक्‍शन लगाते हुए पूछा।
‘कि आप मुझे दिसम्‍बर के पहले मार डालें।’

Saturday, October 16, 2010

नवरात्र, कमलेश्‍वर की याद और दो लघुकथाएं

साहित्‍य,पत्रकारिता,सिनेमा और टीवी से सरोकार रखने वाला हर व्‍यक्ति कमलेश्‍वर के नाम से वाकिफ होगा। वे सारिका के संपादक, राष्‍ट्रीय सहारा अखबार के संपादक, ‘आंधीजैसी फिल्‍म के लेखक और दूरदर्शन के महानिदेशक रहे हैं। अपने आखिरी के कुछ सालों में भी वे कितने पाकिस्‍तान लिखकर एक कालजयी रचना दे गए हैं।

Saturday, October 9, 2010

अहसान : एक लघुकथा

पठानकोट एक्सप्रेस का साधारण कम्पार्टमेंट । दरवाजे पर खड़े दो नौजवान। एक-दूसरे से अपरिचित। लेकिन एक, दूसरे की अपेक्षाकृत अधिक ताकतवर।

‘टिकट दिखाइए।’ एक आवाज गूंजी।

दूसरे ही क्षण रामपुरी सामने था। यह पहले का टिकट था। वह आगे कुछ करता, इससे पहले ही दूसरे ने तुरंत चाकू छीनकर जेब के हवाले किया और रसीद किए दो हाथ। 

टिकट चेकर की आंखों में कृतज्ञता झलक आई। दूसरे ने एक नजर पहले को देखा और फिर टिकट चेकर को दूसरे दरवाजे की ओर ले जाकर धीरे से कहा, ‘बाबूजी,टिकट तो मेरे पास भी नहीं है।’
                                                                                                        0 राजेश उत्‍साही 

बम्‍बई यानी आज की मुम्‍बई से रामावतार चेतन के संपादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिका रंग-चकल्‍लस के नवम्‍बर-दिसम्‍बर,1981 अंक में प्रकाशित ।